Monday, May 28, 2018

ठोस हो समाधान


प्रसंगवश
पंजाब से राजस्थान आने वाली नहरों में प्रदूषित पानी प्रवाहित हो रहा है। इसके विरोध में जिस तरह से जनसमुदाय एकजुट हुआ और मुखरता के साथ अपनी बात रखी उसी का नतीजा है कि केन्द्रीय जल संसाधन मंत्रालय इस मुद्दे को लेकर गंभीर हुआ है। नदी जल के प्रदूषण को लेकर गठित कमेटी की अगले माह चंडीगढ़ में बैठक होने वाली है। उम्मीद की जा रही है कि इस बैठक में लाइलाज बनती जा रही इस समस्या का कोई ठोस और स्थायी समाधान निकल कर आएगा। वैसे नहरों व नदियों में औद्योगिक इकाइयों अपशिष्ट पानी छोडऩे का इतिहास पुराना है। देश भर की नदियां प्रदूषित पानी की समस्या से ग्रस्त हैं। विडम्बना देखिए, सरकारी स्तर पर नहरों की मरम्मत के नाम पर करोड़ों, अरबों रुपए खर्च किए जाते हैं। सरकार हर बार ठोस हो समाधान नहरों की सफाई का दावा करती है। लेकिन पानी की शुद्धता व स्वच्छता के लिए गंभीरता से प्रयास नहीं हो रहे। नहरों का पानी न केवल प्रदेश के नहरी क्षेत्रों के लिए सिंचाई का साधन है बल्कि राजस्थान के दस जिलों में तो नहरी पानी लोगों केे हलक भी तर कर रहा है। ऐसे में दूषित पानी बीमारियों को न्यौता दे रहा है। प्रदूषित पानी को लेकर इस बार विभिन्न राजनीतिक व सामाजिक संगठनों ने जो एकजुटता दिखाई उससे यकीनन सरकारों पर दबाव बनेगा। दबाव बनाने के साथ-साथ लोग कोर्ट की शरण में भी जा रहे हैं। श्रीगंगानगर में पंजाब सरकार के मुख्य सचिव कई अधिकारियों के खिलाफ इस्तगासा दायर हुआ है। राजस्थान हाइकोर्ट में भी इस मामले में जनहित याचिका दायर की गई है, जिसमें 29 मई तक पंजाब सरकार को जवाब देने को कहा गया है। इतना ही नहीं, नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी केन्द्र, राजस्थान व पंजाब सरकारों को तलब किया है। इन सबसे पहली बार यह उम्मीद बंध रही है कि इस समस्या का शायद कोई ठोस समाधान निकल जाए। स्वच्छ पानी मिलना लोगों का हक है। समय की मांग भी यही है कि इस समस्या का स्थायी समाधान हो ताकि लोगों का शुद्ध व स्वच्छ जल पीने का सपना पूरा हो सके।
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राजस्थान पत्रिका के राजस्थान के सभी संस्करणों में 26 मई 18 के अंक में संपादकीय पेज पर प्रकाशित 

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