Tuesday, May 8, 2018

नमूनों की नौटंकी कब तक?

टिप्पणी
सात सुखों में से पहला सुख निरोगी काया को माना गया है, लेकिन श्रीगंगानगर में आकर यह बात बेमानी हो जाती है। इसकी बड़ी वजह है शासन- प्रशासन का लोगों को स्वच्छ पेयजल उपलब्ध न करा पाना। गंगनहर में पखवाड़े भर से ज्यादा समय से काले रंग का पानी का आ रहा है। विभिन्न संगठन व राजनीति दल लगातार प्रशासन को ज्ञापन देकर इस मामले में कारगर कार्रवाई की गुहार लगा रहे हैं। कुछ किसान संगठन तो मौका भी देख आए लेकिन जिला प्रशासन अभी जांच करवाने के आश्वासन से आगे नहीं बढ़ पाया है। ऐसा कोई पहली बार नहीं है, बल्कि ऐसा हर बार ही होता है। लोग शिकायत करतें हैं और प्रशासन आश्वासन का कहकर टरका देता है। ज्यादा से ज्यादा पानी के नमूने लेने की बात भी कह दी जाती है। बड़ी हैरत की बात है कि नमूनों में पानी दूषित साबित होने के बावजूद इसकी रोकथाम के लिए कोई ठोस या प्रभावी कदम नहीं उठाए जाते। विडम्बना यह है भी है कि पानी की कमी या दूषित पानी को लेकर श्रीगंगानगर जिले में हर साल आंदोलन होते हैं। बस फर्क इतना है कि सरकारें बदलने के साथ आंदोलन करने वालों के चेहरे बदल जाते हैं, लेकिन समस्या का स्थायी समाधान नहीं होता। दूषित पानी बेचना खुलेआम स्वास्थ्य से खिलवाड़ है। लोग जेब ढीली करके खुद के लिए बीमारियां व मौत खरीदें तो इससे बड़ी शर्मनाक बात और क्या होगी? तीन दशक से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद स्वच्छ पेयजल मुहैया न कर पाना शासन व प्रशासन दोनों को कटघरे में खड़ा करता है। बड़ा सवाल तो यह है कि कि बात आश्वासनों व नमूनों की जांच से आगे बढ़ी क्यों नहीं? नहरी पानी में दूषित या केमिकल पानी छोडऩा एक तरह का धीमा जहर है। कैंसर, पेट संबंधी व चर्म रोगियों की बढ़ती संख्या के पीछे के कारणों में दूषित पानी भी एक बड़ा कारण है।
बहरहाल, आश्वासन की रेवडिय़ों व नमूनों की नौटंकी से लोगों को शुद्ध पेयजल नहीं मिलने वाला। इन पर विराम लगाकर तुरंत प्रभाव से ठोस, कारगर व प्रभावी कार्रवाई होनी चाहिए। जो पानी को दूषित करता है, उस पर मुकदमे दर्ज हों, क्योंकि स्वास्थ्य से खिलवाड़ का सिलसिला अब थमना चाहिए। अगर शासन-प्रशासन की आंख अब भी नहीं खुली तो बीमारियों से पीडि़त मरीजों का आंकड़ा मौतों में तब्दील होते ज्यादा वक्त नहीं लगने वाला।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 27 अप्रेल 18 के अंक में प्रकाशित 

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