Thursday, April 26, 2018

इक बंजारा गाए-28


सुनहरे सपने
सपने बेचना आसान होता नहीं होता और यह हर किसी के बस की बात भी नहीं है। यह बात दीगर है कि सपने सभी देखते हैं किसी के पूरे हो जाते हैं तो किसी के अधूरे रह जाते हैं। लेकिन श्रीगंगानगर में एक महाशय तो सपने दिखाने में जबरदस्त उस्ताद निकले। इनको सपनों का सौदागर कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। सपनों के इस सौदागर ने सपनों के सहारे एक बार तो काठ की हांडी में किसी तरह दाल पका ली। पता नहीं तब क्या-क्या सपने दिखाए थे। किसी को कॉलेज के सपने तो दिखाए तो किसी को एग्रो फूड पार्क का सब्जबाग दिखाया। पर सपने सारे ही टूट गए। दुबार दाल पकाने का मौसम आया तो किसी तरह कॅालेज के सपने को फिर जिंदा किया गया। अब प्रशासन ने सपनों के सौदागर की हर शर्त मान ली। फिलहाल बैकफुट पर आए यह महाशय अब इस मामले में क्या रास्ता निकलते हैं ? हाल-फिलहाल के आसार से तो दाल पकती नजर नहीं आ रही।
याद की वजह
खाकी के भी ठाठ निराले हैं। कई उदाहरण तो ऐसे भी मिल जाएंगे जब कार्रवाई होनी चाहिए थी तब खाकी लंबी तान सोई थी। कुछ ही ऐसा मामला लोक परिवहन की बसों का है। बेकाबू रफ्तार पर कहीं कोई अंकुश नहीं था। तब भी जब पिछले दिनों एक ही नंबर की दो बसें दिखाई दी। न तो परिवहन विभाग जागा और न ही खाकी। विभागों की यह उदासीनता स्वयं स्फूर्त थी या जानबूझकर पैदा की गई ये दोनों पक्ष ही बेहतर जानते हैं, लेकिन इन बसों से हादसे बढऩे लगे तो खाकी के हाथ-पांव फूले। जन आंदोलनों को देखते हुए आखिरकार खाकी को कार्रवाई की याद आई। यह याद समय रहते आ जाती है तो यह बस वाले इतने निरकुंश नहीं होते। खाकी व परिवहन विभाग की कार्यशैली सही होती तो आज इस तरह की दौड़-धूप की जरूरत ही नहीं थी। इतना होने के बाद भी शहर की अंदरूनी यातायात व्यवस्था में अभी भी सुधार की काफी गुंजाइश है।
मनमर्जी का सौदा
मेरा कातिल ही मेरा मुंसिफ है, क्या मेरे हक में वो फैसला देगा। प्रसिद्ध गायक जगजीत सिंह की गाई यह गजल इन दिनों शराब वाले विभाग पर सटीक बैठ रही है। वैसे भी विभाग को केवल टारगेट की चिंता है। शराब किस कीमत पर बिक रही है, कब बिक रही है, कैसे बिक रही है, इससे कोई मतलब नहीं है। एक तरह से विभाग ने ठेकेदारों व उनके कारिंदों को खुली छूट दे रखी है कि आप सुरा शौकीनों को जमकर लूटो। उनकी मनमर्जी से जेब काटो। आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। इधर खाकी भी पिछले साल तक शराब ठेके पर कार्रवाई करती रही है लेकिन इस बार खाकी के दामन पर पर दाग लगे हैं। शराब ठेकेदारों से बंधी लेने के आरोप में पुलिस के कर्मचारियों भी धरे गए हैं। कार्रवाई करने वाले दोनों की विभाग आंख मूंद कर बैठे हैं। अब शराब ठेकेदार अपनी मर्जी से शराब की कीमत वसूल रहे हैं। पीडि़त व परेशान उपभोक्ता अपनी पीड़ा का रोना आखिर किसके आगे रोए।
मिट्टी में मिल रहे पैसे
कहते हैं जिम्मेदार जब कोई काम सोच लेते हैं तो उसे पूरा करके ही रहते हैं। यह अलग बात है उस काम का किसी को फायदा मिले या ना मिले। पर जिद है तो काम करना ही है। शिव चौक से जिला अस्पताल के बीच इंटरलॉकिंग के काम का प्रस्ताव जिसने भी तैयार किया है वह भी कुछ ऐसा ही है। यह काम क्यों व किसके लिए किया जा रहा है यह तो संबंधित विभाग, उसके कर्मचारी/ अधिकारी व नुमाइंदे ही बेहतर जानते हैं। फिलहाल इस काम को देखते हुए यह सरकारी पैसे को मिट्टी मिलाने से ज्यादा कुछ नजर आ रहा है। इस निर्माण कार्य की वजह से लोगों को जो परेशानी हो रही है उसका तो समाधान नजर ही नहीं आता। बिना मतलब काम और वह भी बेतरतीब तरीके से। बड़ी बात है कि जागरूक लोग इस काम को देखकर भी चुप हैं। गाहे-बगाहे धरना प्रदर्शन कर शहर हितैषी होने का दंभ भरने वालों को भी यह बिना मतलब का काम नजर नहीं आ रहा।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 26 अप्रेल 18 के अंक में प्रकाशित 

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