Thursday, April 26, 2018

इक बंजारा गाए-27


राज की बात
श्रीगंगानगर में दो-तीन अधिकारी ऐसे हैं, जो घूम फिर किसी न किसी तरीके से वापस श्रीगंगानगर आ जाते हैं। उनका श्रीगंगानगर के प्रति प्रेम किसी रहस्य से कम नहीं है। यह अधिकारी श्रीगंगानगर से बाहर जाना नहीं चाहते या कोई बाहर का श्रीगंगानगर आना नहीं चाहता। कहानी तो जरूर है वरना कोई इतने लंबे समय तक और भी एक ही जिले में तथा विभिन्न पदों पर कौन टिकता है। इससे भी बड़ी बात यह है कि इन अधिकारियों का कभी श्रीगंगानगर से बाहर तबादला भी हुआ तो ये दो-तीन माह बाद किसी न किसी दूसरे विभाग में बदली करवाकर आ धमकते हैं। कुछ न कुछ तो है जरूर वरना घूम-फिर कर उसी जिले में नहंीं आते। यह अधिकारी लोकप्रिय कितने व कैसे हैं यह तो सब जानते हैं। हां, इससे यह साबित जरूर होता है कि इनकी ऊपर तक पहुंच जरूर है जिसके दम पर यह एक ही जगह पर टिके रहना चाहते हैं।
घर में नहीं दाने
घर में नहीं दाने अम्मी चली भुनाने, यह चर्चित कहावत इन दिनों यूआईटी पर सटीक बैठ रही है। पिछले सप्ताह पेश किए गए बजट को देखकर तो यही लगता है। बजट में कई तरह के हसीन सपने दिखाए गए हैं। इतने कि यूआईटी के पास इतना पैसा ही नहीं है। इससे भी बड़ी बात तो यह है कि पिछले बजट में जिस मद के लिए जितना बजट तय किया गया था वह खर्च ही नहीं हुआ। है ना कमाल की बात। शहर में विकास कार्य करने, नई कॉलोनियों विकसित करने तथा सौन्दर्यीकरण को बढ़ावा देने वाले विभाग की दूरदर्शिता का अंदाजा तो इसी से लगाया जा सकता है। हां, यूआईटी अधिकारियों को खुद के भवन की चिंता कुछ जरूरत से ज्यादा ही है तभी तो एक साल में उसी दीवार के दूसरी बार प्लास्टर हो गया और लगे हाथ कलर भी। जबकि यूआईटी की ठीक नाक के नीचे एक पार्क की हालत इतनी खराब है कि उसको पार्क कहते हुए भी हंसी आती है।
स्वागत का दौर
कहते हैं कि सम्मान हमेशा पात्र का करना चाहिए और निस्वार्थ भाव से करना चाहिए। इन दिनों जिला मुख्यालय पर इन दिनों किया गया सम्मान भी अच्छी खासी चर्चा में है। चर्चा का विषय है सम्मान के बहाने लोगों में देश प्रेम की भावना जगाना और फिर इस भावना को भुनाना। इतना ही नहीं जिसका सम्मान किया गया उसके सरनेम के आगे कोष्ठक में उसकी जाति का उल्लेख करने के पीछे भी कहीं न कहीं सियासी पेच नजर आता है। लंबे समय से सक्रिय राजनीति में वापसी के लिए वैसे तो एक नेताजी लंबे समय से इस तरह के उपक्रम कर रहे हैं लेकिन जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं वैसे-वैसे इस तरह की गतिविधियां बढ़ गई हैं। कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि जिसका सम्मान हुआ उसकी जिस अंदाज में अगुवानी की गई विदाई उससे ठीक उलटी थी। देखने की बात है कि यह सम्मान इन नेताजी के लिए कितना लाभदायक साबित होता है।
नई जगह तलाशी
श्रींगानगर की यातायात पुलिस के भी क्या कहने। जहां कार्रवाई की जरूरत है वहां तो इसके दर्शन कम ही होते हैं। अब जब से आजाद फाटक बंद हुआ है तब से पुलिस की कार्रवाई की एक स्थायी जगह ही बंद हो गई। विशेषकर टी प्वाइंट पर यातायात पुलिस के जवान नाका लगाते थे। फाटक की जगह दीवार बनने से अब टी प्वाइंट पर वाहनों का आवागमन कम हो गया है। आखिकर लंबी जददोजहद के बाद टी प्वाइंट जैसी जगह की तलाश ली गई है। यह जगह है शहर से बाहर साधुवाली स्थित सेना अस्पताल के पास है। ठीक वहीं जहां ओवरब्रिज का रास्ता जाकर मिलता है। यहां पेड़ों की ठंडी छांव के नीचे बाकायदा कार्रवाई को अंजाम दिया जाता है। अब खाकी को यह कौन समझाए उसका काम सिर्फ वसूली ही नहीं व्यवस्था बनाना भी है। शहर से बाहर कैसी व्यवस्था बन रही है, सब जान रहे हैं।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 19 अप्रेल 18 के अंक में प्रकाशित

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