दूसरा पहलू
मांगों उसी से, जो दे खुशी से, और कहे सभी से, भिलाई महापौर निर्मला यादव
ने यह जुमला मुख्यमंत्री से मुखातिब होते वक्त इस उम्मीद के साथ सुनाया था
कि वे भिलाई को विकास की कुछ सौगात तो देकर ही जाएंगे। महापौर उम्मीद और
आत्मविश्वास से लबरेज इस कदर थी कि उन्होंने दलगत राजनीति से ऊपर उठने का
साहस दिखाकर मुख्यमंत्री की प्रशंसा के पुल भी बांध दिए। भिलाई के लिए कुछ
पाने की हसरत में उन्होंने मुख्यमंत्री को अभिनंदन पत्र और गुलदस्ता भी
दिया। इससे भी आगे बढ़कर उन्होंने सार्वजनिक मंच पर बिना किसी झिझक के
मुख्यमंत्री के चरण स्पर्श भी किए। महापौर की शायरी के माध्यम से की गई
मांगों का जबाव मुख्यमंत्री ने शायराना अंदाज में तो दिया लेकिन उन्होंने
अपनी झोली का मुंह नहीं खोला। वे खुशी-खुशी बोले जरूर लेकिन खुशी से कुछ
दिया नहीं। उनका भाषण भिलाई के विकास पर कम बल्कि राज्य सरकार की योजनाओं
पर ही ज्यादा केन्द्रित रहा। महापौर की मांगों के जवाब में मुख्यमंत्री एवं
नगरीय प्रशासन मंत्री ने शब्दों के जाल में ऐसा भरमाया कि गेंद मांग करने
वालों के पाले में ही डाल दी। नेताओं ने कोई घोषणा करने की बजाय उल्टे
महापौर को ही नसीहत दे दी कि निगम में बहुत पैसा है, पहले इसको खर्च करो तो
और मिल जाएंगे। राज्य सरकार के पास विकास के लिए पैसे की कोई कमी नहीं है।
दोनों नेताओं ने एक बात पर बेहद जोर दिया कि विकास कार्यों में राजनीति
नहीं होनी चाहिए तथा विकास को राजनीतिक चश्मे से नहीं देखना चाहिए। इतना ही
नहीं मुख्यमंत्री तो यह तक कह गए कि महापौर ने सौ करोड़ के बजट की मांग
करके कम ही मांगा है, वे तो भिलाई को सौ करोड़ से ज्यादा राशि देने में
विश्वास रखते हैं। यह अलग बात है कि देने के नाम उन्होंने एक रुपए की घोषणा
भी नहीं की।
महापौर की हां में हां मिलाते हुए सांसद सरोज पाण्डे ने
भी भिलाई के चार इलाकों यथा खुर्सीपार, हुडको, रिसाली एवं कैम्प के लिए
विशेष पैकेज की मांग की लेकिन नगरीय प्रशासन मंत्री इस मामले को भी बड़ी
चतुराई के साथ घुमा गए। बाद में मुख्यमंत्री ने भी नगर प्रशासन मंत्री का
हवाला देकर मुद्दे की गंभीरता को ही खत्म कर दिया। दोनों नेताओं के
सम्बोधन में एक मामले में समानता नजर आई। दोनों ने ही कहा कि भिलाई में
विकास के बहुत कार्य हुए हैं और बहुत होने बाकी हैं लेकिन क्या हुआ है और
क्या होना है, इस पर उन्होंने कुछ नहीं बोला। वैसे विकास कार्यों के
भूमिपूजन कार्यक्रम में बहुत से लोग इसी उम्मीद से आए थे कि संभवतः प्रदेश
के मुखिया आज लम्बे समय से उपेक्षित शिक्षा नगरी को कुछ सौगात देकर जाएंगे।
लेकिन शब्दों की कलाकारी एवं बयानों की बाजीगरी को देखकर शिक्षानगरी के
लोगों को निराशा ही हाथ लगी है। उनकी इस्पात सी उम्मीदें पल भर में मोम सी
पिघल कर रह गई। सोचनीय स्थिति तो उस वक्त हो गई जब मुख्यमंत्री ने महापौर
को भिलाई की बेटी कहकर पुकारा तो जरूर लेकिन बेटी के दामन को वे खाली ही
छोड़ गए। विकास कार्यों को राजनीतिक चश्मे से न देखने की सलाह देने वाले खुद
कई तरह के सवाल भी पैदा कर गए।
साभार - पत्रिका भिलाई के 12 सितम्बर 12 के अंक में प्रकाशित।
No comments:
Post a Comment