पिछले दिनों पुलिस लाइन में भी इसी तरह प्लास्टर
उखड़कर गिरने से एक महिला घायल हो गई थी। समस्या से प्रभावित महिलाएं जब
अपना दुखड़ा सुनाने स्थानीय सांसद के पास गई तो उन्होंने अनर्गल बयान देकर
जले पर नमक छिड़कने जैसा काम किया। जन से इस तरह रुखा व्यवहार करने के बाद
भी खुद को जनप्रतिनिधि कहलवाना निसंदेह शर्मनाक एवं गंभीर बात है।
जनप्रतिनिधि से उम्मीद की जाती है कि भले ही वह समस्या का निराकरण ना
कर/करा पाए, कम से कम दिलासा तो दे। ज्यादा नहीं तो वह उम्मीद भरा आश्वासन
तो दे ही सकता है, लेकिन सत्तारूढ़ दल एवं उसके नुमाइंदों से ऐसी उम्मीद
करना भी बेमानी है।
बहरहाल, पुलिस ऐसा विभाग है जिसके कंधों पर प्रदेश
की कानून व्यवस्था बनाए रखने की जिम्मेदारी हैं। परिजनों पर मंडरा रही मौत
की आशंका में पुलिसकर्मी अपने काम को कितनी ईमानदारी से कर पाएंगे, सोचा
जा सकता है। कहा गया है कि जान है तो जहान है, लेकिन जब खतरा जान पर ही हो
तो फिर सारे काम गौण हो जाते हैं। राज्य सरकार को भावी हादसे की दस्तक को
तत्काल प्रभाव से समझते हुए आवश्यक कदम उठाना चाहिए। देखना यह है कि राज्य
सरकार इस मामले में पहल अपने विवेक से करती है या किसी हादसे के बाद। और
अगर जानमाल की हानि के बाद ही यह सब होना है तो सरकार एवं उसके नुमाइंदों
को सद्बुद्धि देने के लिए भगवान से प्रार्थना के अलावा और कुछ किया भी
नहीं जा सकता है।
साभार : पत्रिका छत्तीसगढ़ के 18 अगस्त 12 के अंक में प्रकाशित।
nirmal ji aapne meri rachnao ko padhna kyon band kar diya? aap ki rachnaon me avyawastha ke khilaf jo rosh he wo sarahniy he, par sarkar ke kano pe to is tarah bhi joo nahi rengti.
ReplyDeleteशुक्रिया....जरूर रेंगेगी। उम्मीद पर तो दुनिया कायम है।
ReplyDelete