Friday, July 29, 2011

खासियत का खामियाजा

राज्य का दूसरा बड़ा शहर होने का गौरव हासिल करने वाला बिलासपुर इसी खासियत का खामियाजा भी भुगत रहा है। छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद बिलासपुर की राजनीतिक एवं प्रशासनिक स्तर पर उपेक्षा इस कदर हुई कि यह शहर विकास से कदमताल करने में विफल हो गया। शहर के लोग खुद को छला हुआ सा महसूस कर रहे हैं। बिलासपुर एवं रायपुर की प्रगति के मौजूदा सफर को साथ रखकर देखें तो पाएंगे कि न्यायधानी के हिस्से में केवल हाईकोर्ट ही आया। शिक्षा के मामले राज्य का अग्रणी शहर होने तथा प्रतियोगी परीक्षाओं में सर्वाधिक सफल विद्यार्थी देने के बावजूद बिलासपुर में गुरुघासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय को छोड़कर आईआईटी, एम्स, आईआईएम तथा विधि विश्वविद्यालय जैसे बड़े सरकारी शिक्षण संस्थानों का अभाव है। तमाम संभावनाएं होने के बावजूद बिलासपुर अभी हवाई सेवा से भी अछूता है। शहर को हवाई सेवा से जोड़ने के वादे भी हवाई ही साबित होकर रह गए। और तो और शहर के विकास के लिए बनने वाला मास्टर प्लान भी प्रशासनिक उदासीनता का शिकार है।
लब्बोलुआब यह है कि विकास की भरपूर संभावनाएं मौजूद होने के बावजूद न्यायधानी को नजरअंदाज किया जा रहा है। एक तरह से यह न्याय की नगरी के लोगों के साथ नाइंसाफी ही है। राज्य के गठन के बाद बिलासपुर के लोगों ने जो सपना देखा और जो उम्मीदें थीं, वे एक-एक कर टूटती गई। सुविधाओं से वंचित बिलासपुर विकास की बड़ी योजनाओं से दूर मूलभूत सुविधाओं में सुधार के लिए ही जूझ रहा है। पत्रिका ने बिलासपुर के लोगों को विकास के संबंध में दिखाए गए सब्जबाग की पड़ताल की तो वे मुद्‌दे और बातें सामने आए, जिनको पूरा करने से बिलासपुर का विकास न केवल रफ्तार पकड़ेगा बल्कि शहर की छवि में भी अप्रत्याशित सुधार होगा। 

साभार- पत्रिका बिलासपुर के 26 जुलाई 11 के अंक में प्रकाशित

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