Sunday, October 2, 2011

प्रशासन है किसके लिए

टिप्पणी
बिलासपुर के लिए शनिवार का दिन अब तक के इतिहास का संभवतः पहला दिन था जब किसी संगठन ने अपनी मांगें जबरिया मनवाने के लिए एक अनूठा तरीका अपनाया। संगठन के लोगों ने न केवल दूध को अरपा नदी में प्रवाहित किया बल्कि महापुरुषों की प्रतिमाओं का अभिषेक भी दूध से ही किया। इतना ही नहीं छोटे दूधियों को रोककर उनसे जबरन दूध छीनने की खबर भी है। इस आंदोलन का सारांश यही था कि जैसा वो चाहते हैं, वैसा नतीजा भुगतने को तैयार रहो। खैर, दूध की बर्बादी का मंजर जिसने भी देखा या सुना वह इसअनूठे तरीके की आलोचना से खुद को रोक नहीं पाया। जिसने भी सुना, उसका कहना था, इससे अच्छा तो किसी जरूरतमंद को दे देते। किसी गरीब के बच्चे को बांट देते। और नहीं तो अस्पताल में मरीजों के लिए दान ही कर देते आदि-आदि। अपनी मांगें मनवाने के लिए अपनाए गए इस तरीके पर जिला कलक्टर ने भी नाराजगी जतार्इ। इस तमाम घटनाक्रम के बाद भी दूध के भावों का विवाद सुलझता दिखार्इ नहीं दिया। इससे बड़ी विडम्बना और क्या होगी कि दूध के भावों को लेकर दो खेमों में बंटे लोगों को प्रशासन भी संतुष्ट नहीं कर पाया। उनमें आम सहमति नहीं बनवा पाया। इतना जरूर हुआ कि ३५ रुपए प्रति लीटर बेचने की मुनादी करने वालों के तेवर कुछ ढीले पड़ गए हैं। इसके बावजूद विवाद सुलझा नहीं है।
प्रशासन के इस रवैये से यह सवाल उठना लाजिमी है कि आखिरकार वह किसके लिए काम रहा है। राज्य सरकार भी तो आखिरकार आमजन के लिए ही प्रतिबद्ध है। एक तरफ राज्य सरकार के नुमाइंदे सुराज अभियान के तहत लोगों के घर-घर तक पहुंच रहे हैं जबकि दूसरी तरफ लोग प्रशासन के पास खुद चलकर आ रहे हैं, ज्ञापन दे रहे हैं। इसके बावजूद उनकी बातों को अनसुना किया जा रहा है। आखिरकार ऐसी कौनसी दिक्कत या दबाव है जो प्रशासन को भाव तय करने से रोक रहा है। अगर प्रशासन ने दोनों पक्षों की बैठक बुलाई थी तो लगे हाथ भाव भी तय कर देने चाहिए थे। प्रशासन ने भाव तय करने का निर्णय भी उन्हीं लोगों पर छोड़ दिया जो पहले से ही लड़ रहे हैं। अगर दोनों धड़े सहमत ही होते तो शहर में पांच दिन से दूध क्या दो भावों पर बिकता। वैसे दूध की इस लड़ार्इ में सर्वाधिक नुकसान तो उस दूधिये या ग्वाले का ही है जो इन दो संगठनों के बीच पीस रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए दो धड़ों की इस नूरा कश्ती का प्रशासन जल्द ही कोर्इ सर्वमान्य हल निकालेगा। कीमतों की इस लड़ार्इ में छोटे दूधियों का भी ख्याल जरूरी है। उपभोक्ताओं को हित तो सर्वोपरि है ही।

साभार : बिलासपुर पत्रिका के 02 अक्टूबर 11  के अंक में प्रकाशित।

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