Friday, December 16, 2011

मुश्किल तो कुछ भी नहीं बशर्ते...

टिप्पणी
बिलासपुर की बदहाल यातायात व्यवस्था पर माननीय हाईकोर्ट ने गुरुवार को फिर से फटकार लगाई है और व्यवस्था में सुधार के लिए यातायात पुलिस एवं आरटीओ को करीब डेढ़ माह का समय दिया है। दोनों विभागों को इससे पहले भी करीब एक माह की समय-सीमा दी गई थी, लेकिन व्यवस्था में सुधार दिखाई नहीं दिया। दोनों विभागों ने माननीय हाईकोर्ट की फटकार के बाद चार-पांच दिन जरूर तत्परता दिखाई लेकिन इसके बाद कार्रवाई का तरीका फिर पुराने ढर्रे पर लौट आया। इस बार वैसी गफलत न हो तथा दोनों विभाग बिना औपचारिकता निभाए ईमानदारी से अपना काम करे, इसके लिए माननीय हाईकोर्ट ने वकीलों की पांच सदस्यीय कमेटी भी गठित की है। यह कमेटी न केवल दोनों विभागों की गतिविधियों पर निगरानी रखेगी बल्कि यातायात व्यवस्था में सुधार के लिए अपने सुझाव भी देगी।
कहने को पुलिस एवं आरटीओ ने अपने पक्ष में  समाचार पत्रों की कतरन एवं चालानों के आंकड़ों की फेहरिस्त को पेश किया, लेकिन माननीय हाईकोर्ट ने इन तर्कों को खारिज करते हुए फिर कहा कि अफसरों का ध्यान अब भी समस्या से निपटने के उपाय खोजने की बजाय वसूली पर ही ज्यादा है। देखा जाए तो यह बात सही भी है, कार्रवाई के नाम पर वसूला गया जुर्माना इसका प्रमाण है। वैसे भी माननीय हाईकोर्ट की फटकार के बाद पुलिस एवं आरटीओ विभाग ने जिस अंदाज में कार्रवाई को अंजाम दिया, उसमें बड़े वाहनों के मुकाबले दुपहिया वाहनों पर कार्रवाई ज्यादा की गई। नतीजा यह रहा है कि शहर की यातायात व्यवस्था में कोई खास सुधार दिखाई नहीं दिया।
दरअसल, शहर की यातायात व्यवस्था सुधार में बाधक जो कारण बताएं जाते हैं, उनमें कई तो व्यवस्थागत व मानवजनित ही हैं। अक्सर देखा गया है कि वीआईपी आगमन के दौरान न केवल यातायात पुलिसकर्मी चाक चौबंद नजर आते हैं बल्कि व्यवस्था में सुधार दिखाई देता है। वाहनों की गति भी निर्धारित हो जाती है। सड़कों से आवारा पशु गायब हो जाते हैं। अक्सर एक दूसरे के क्षेत्राधिकार का मामला बताकर जिम्मेदारी टालने वाले यातायात पुलिस एवं आरटीओ विभाग में बेहतर तालमेल दिखाई देने लगता है। शहर में जगह-जगह होने वाली पार्किंग दिखाई नहीं देती। यातायात नियमों की कड़ाई से पालना होने लगती है। उस दिन कोई सिफारिश या राजनीति हस्तक्षेप भी काम नहीं करता है। इतना ही नहीं बिना भेदभाव के लगभग सभी पर समान रूप से कार्रवाई को अंजाम दिया जाता है।
बहरहाल, यातायात पुलिस एवं आरटीओ के लिए व्यवस्था बनाना तथा बदहाल व्यवस्था को पटरी पर लाना ज्यादा मुश्किल नहीं है। किसी वीआईपी के आगमन पर जब शहर में व्यवस्था सुधर सकती है तो सामान्य दिनों भी इसमें सुधार हो सकता है। इसके लिए कहीं बाहर जाने आवश्यकता नहीं है। जरूरत बस दृढ इच्छा शक्ति के साथ दवाबमुक्त होकर ईमानदारी से काम करने की है। दोनों विभाग अगर तालमेल एवं समन्वय रखकर ऐसा कर पाए तो व्यवस्था में काफी कुछ सुधार संभव है।

साभार : बिलासपुर पत्रिका के 16  दिसम्बर 11 के अंक में प्रकाशित।


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