Saturday, September 29, 2012

बंद हो आंकड़ों का खेल

प्रसंगवश 

छोटा परिवार सुखी परिवार की अवधारणा को पुष्ट करने के लिए केन्द्र एवं राज्य सरकार हर साल परिवार नियोजन पर करोड़ों रुपए खर्च करती हैं, लेकिन गाहे-बगाहे ऐसी घटनाएं दरपेश आती हैं, जो इस अभियान की सफलता पर सवालिया निशान लगाती हैं। मंगलवार को बालोद जिले के डौंडीलोहारा कस्बे के सामुदायिक स्

वास्थ्य केन्द्र में लगा नसबंदी शिविर इसका जीता जागता उदाहरण है। शिविर में शुरू से लेकर आखिर तक अव्यवथाएं हावी रहीं। हद तो उस वक्त हो गई जब सुबह दस बजे शुरू होने वाला शिविर शाम सात बजे बाद चिकित्सक के आने पर शुरू हुआ। इसके बाद आनन-फानन में ऑपरेशन शुरू किए गए तो बीच में बिजली गुल हो गई। करीब एक घंटे तक तो टॉर्च की रोशनी में ही ऑपरेशन होते रहे। बिजली आने के बाद रात 11 बजे तक ऑपरेशन हुए। ऑपरेशन का आंकड़ा तो वाकई चौंकाने वाला है। कुल 138 महिलाओं के नसबंदी ऑपरेशन मात्र चार घंटे में एक चिकित्सक ने कर दिए। यकीन नहीं होता इस आंकड़े को देखकर। किसी चमत्कार के होने जैसा ही है यह सब। गंभीर बात तो यह है कि संबंधित चिकित्सक इसको सामान्य-सी बात मान रहे हैं। वैसे चिकित्सकों का मानना है कि नसबंदी ऑपरेशन करने में दस से पन्द्रह मिनट तक का समय लगना सामान्य-सी बात है।
शिविर में घोर लापरवाही के बावजूद प्रशासनिक अधिकारियों ने इस मामले में जरा भी गंभीरता नहीं दिखाई। एसडीएम ने तो बीएमओ को नोटिस देकर इतिश्री कर ली। इधर, राज्य सरकार के मुखिया एवं उसके नुमाइंदे अक्सर सभाओं में राज्य की स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर खुद की पीठ थपथपाने से गुरेज नहीं करते। लेकिन, उनके बड़े-बड़े दावे उस वक्त बेमानी लगने लगते हैं, जब इस तरह के प्रकरण सामने आते हैं। नसबंदी शिविरों में अक्सर अव्यवस्थाएं उजागर होती रहती हैं। ऐसा नहीं है कि राज्य सरकार इन सब से अनजान है। सरकार को यह भी पता है दुर्ग-बेमेतरा एवं बालोद जिले में केवल एक ही सर्जन हैं, जो नसबंदी के ऑपरेशन करते हैं, लेकिन इसका यह मतलब तो कतई नहीं है, उस इकलौते चिकित्सक को कुछ भी करने की छूट मिल जाए। नेत्रकांड के बाद बालोद जिले में ही परिवार नियोजन अभियान की पोल खोलने वाला यह शर्मनाक मामला है। सोचनीय विषय यह भी है कि आमजन के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करने वाले लगातार इस प्रकार के कृत्यों को अंजाम दे रहे हैं और राज्य सरकार नींद में गाफिल है। इससे तो यही समझा जाना चाहिए कि राज्य सरकार की कथनी और करनी में समानता तो कतई नहीं है। आखिर, इस तरह लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने से हासिल भी क्या होगा। सरकार अगर वाकई परिवार नियोजन के प्रति गंभीर है तो उसको नसबंदी शिविरों के लिए तत्काल नए दिशा-निर्देश जारी करने चाहिए। संबंधित चिकित्सक पर कार्रवाई तथा अव्यवस्थाओं को दुरुस्त करने के साथ-साथ शिविरों में चिकित्सकों के देर से आने तथा रात में ऑपरेशन करने पर तत्काल प्रभाव से रोक लगनी चाहिए। वरना, यही समझा जाएगा कि राज्य सरकार भी लोगों के स्वास्थ्य को दरकिनार कर लक्ष्य पूर्ति के आंकड़ों के खेल में अपनी सहभागिता निभा रही है।
 
साभार : पत्रिका छत्तीसगढ़ के 29 सितम्बर 12 के अंक में प्रकाशित।

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