Saturday, October 6, 2012

पोस्टर प्रेम का नया शगल


प्रसंगवश

छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच के कार्यकर्ताओं ने गुरुवार को भिलाई के छावनी थाने के समक्ष विरोध प्रदर्शन कर अपने गुस्से का इजहार किया। कार्यकर्ताओं में इस बात को लेकर आक्रोश था कि शहर में लगाए गए मंच के पोस्टरों को किसी ने बिना वजह के फाड़ दिया। मंच कार्यकर्ताओं ने पोस्टर फाड़ने वालों के खिलाफ जुर्म दर्ज करने की मांग को लेकर थानाधिकारी को ज्ञापन भी दिया। पोस्टर से संबंधित कमोबेश ऐसा ही एक वाकया पखवाड़े भर पूर्व भी हो चुका है। उस वक्त भिलाई महापौर के जन्मदिन की बधाई से संबंधित पोस्टरों पर कालिख पोत दी गई थी। इस मामले की भी पुलिस थाने में शिकायत की गई थी। पोस्टरों से संबंधित उक्त दोनों घटनाओं से यह तो जाहिर है ऐसा करने वाला यकीनन पूर्वाग्रह से तो ग्रसित था ही उसकी मानसिकता भी निहायत ओछी थी। हो सकता है यह सब करने के पीछे तात्कालिक गुस्से को शांत करना रहा हो लेकिन यह एक तरह की कायराना हरकत ही है। अगर किसी को कुछ शिकायत है भी तो वह इस प्रकार का कृत्य क
रने से दूर नहीं हो जाती। फिलहाल, दोनों ही मामले पुलिस के पास विचाराधीन हैं लेकिन इतना तो तय है कि इन प्रकरणों का मूल कारण सियासी अदावत ही है। वैसे पोस्टर लगाने का शगल बड़ी तेजी के साथ पनपा है। अकेले भिलाई ही नहीं समूचे प्रदेश में यह अब फैशन में तब्दील हो चुका है। छुटभैयों के लिए यह प्रचार करने का सबसे कारगर तरीका है तो उनके आकाओं के लिए किसी शक्ति प्रदर्शन से कम नहीं। पोस्टर लगाने के लिए वे अक्सर अवसरों को तलाशते रहते हैं। कभी त्योहारों के नाम पर तो कभी राष्ट्रीय पर्व के नाम पर। सारे नियम-कायदे भी यहीं से तार-तार होना शुरू हो जाते हैं। सोचनीय विषय तो यह है कि जिम्मेदार लोग अपने समर्थकों के इस प्रेम को बिलकुल भी गंभीरता से नहीं लेते। उनकी भूमिका से तो ऐसा लगता है, जैसे उनके इशारे पर ही यह सब होता है। संभवतः इसी चक्कर में इन पोस्टरों को हटाने की हिमाकत प्रशासनिक अमला भी नहीं कर पाता है। तभी तो अवसर बीत जाने के बाद अप्रसांगिक होते हुए भी पोस्टर टंगे रहते हैं। न तो निगम प्रशासन उनको हटवाने की जहमत उठाता है और न ही लगाने वालों को इनकी याद आती है। कोई रोकने या टोकने वाला भी नहीं है। मनमर्जी का यह खेल यूं ही बदस्तूर चलता रहता है। बहरहाल, पोस्टर फाड़ने या उन पर कालिख पोतने का विरोध करने वालों के पास अपना तर्क हो सकता है, लेकिन कड़वी हकीकत यही है कि इन पोस्टरों के सहारे कुछ हद तक सस्ती लोकप्रियता जरूर हासिल की जा सकती है लेकिन जनता का दिल नहीं जीता जा सकता है। इस नए शगल से सिवाय पैसे की बर्बादी के कुछ हासिल नहीं है। शहर बदरंग होता है वह अलग। इस दिशा में गंभीरता से सोचने एवं उस पर विचार करने की जरूरत है।
 
साभार - पत्रिका छत्तीसगढ़ के 06 अक्टूबर 12 के अंक में प्रकाशित।

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