Friday, November 30, 2012

...मिलग्यो... मिलग्यो



बस यूं ही

सूचना एवं प्रौद्योगि
की क्रांति के चलते आज मोबाइल फोन रोजमर्रा की जरूरत बन गया है। विशेषकर युवा वर्ग तो इसके बिना खुद को अधूरा पाता है। मेरी धर्मपत्नी का हाल भी कुछ ऐसा ही है। शुक्रवार रात पौने दस बजे अचानक मेरा मोबाइल बजा। उस वक्त मैं कार्यालय में अपने कक्ष से बाहर था। आकर चैक किया तो स्क्रीन पर नम्बर दिखाई दिए। अपनी आदत के अनुसार मैंने वापस कॉल किया तो चौंक गया। सामने से आवाज श्रीमती की थी। अजनबी नम्बर से श्रीमती का फोन देखकर मैं समझ तो गया था कि कहीं न कहीं गड़बड़ तो हो गई। खैर, जैसा सोचा था, वैसा ही हुआ। सामने से धर्मपत्नी की बिलकुल घबराई हुई सी आवाज आई। मुझसे बोली मेरा फोन नहीं मिल रहा है। आप एक बार फोन पर घंटी करो, शायद बज जाए। मैंने तत्काल फोन काट कर श्रीमती के फोन पर डायल किया तो वह स्विच ऑफ बता रहा था। मैंने पलटकर फोन किया और श्रीमती को बताया कि आपका फोन तो बंद है। मेरा जवाब सुनकर श्रीमती एकदम निराश हो गई। बोली आज तो फोन गया। नीचे बैठी थी, बच्चों के साथ, शायद वहीं भूल गई और कोई ले गया। लम्बी सांस छोड़ते हुए वह फिर बोली, हाय राम उसने बंद भी कर लिया, मतलब चोरी हो गया मेरा फोन। पत्नी के जवाब पर मैं भी अवाक था और मन ही मन गुस्सा भी। मैंने उसको फोन पर हल्का सा डांट भी दिया कि ध्यान क्यों नहीं रखा। आपने लापरवाही की है, इसलिए उसका परिणाम भी भोगो। यह अलग बात है कि मेरे मन में भी उम्मीद थी कि शायद कहीं रखकर भूल गई होगी। उसकी भूलने की आदत है और अक्सर चीजें रखकर भूल जाती है। तभी तो मैंने उसको बताया कि घर में ढूंढ लो, शायद मिल जाएगा। मेरा इतना कहते ही फोन कट गया। यह भी हो सकता है कि श्रीमती ने मेरे को फोन करने से पहले मोबाइल की तलाश अपने स्तर पर की हो। उसने जिस फोन से मेरे को फोन किया उसी फोन से अपने नम्बर पर भी किया हो। किसी तरह का हल न निकलने पर ही उसने मेरे को फोन किया हो। दूसरा यह भी हो सकता है कि उसको राजस्थान वाले नम्बर याद ना हो क्योंकि उसका उपयोग यहां कम ही होता है। ऐसे में आखिरी विकल्प मैं ही था। मेरे पास श्रीमती के दोनों नम्बर सेव हैं।
मैं श्रीमती की पीड़ा भली भांति महसूस कर ही रहा था कि तत्काल अतीत जिंदा हो गया। पांच साल पहले झुंझुनू कार्यालय में मेरी टेबल पर रखा नया मोबाइल किसी ने बड़ी ही सावधानी के साथ पार कर दिया था। नया नया ही तो खरीदा था। बड़े ताने सुनने के बाद। पांच-छह साल तक तो नोकिया के 3310 मॉडल से ही काम चलाया। बेचारा कितना साथ निभाता खराब हो गया, तो जुगाड़ से चलाया। बैटरी खराब हुई तो वह भी बदल ली। एक दिन आफिस में बैटरी लॉ होने की समस्या ढूंढने के लिए खुद ही मैकेनिक बन गया। अचानक हाथ से छूटा और ऐसा टूटा कि फिर ठीक ही नहीं हुआ। दुकान पर गया नया मोबाइल लेने तो साथ वाले ने कहा कि भाईसाहब नोकिया 6300 खरीदो। एकदम लेटेस्ट मॉडल है। बहुत दिन हो गए पुराने मोबाइल के साथ। अब तो कुछ नया करो। यकीन मानिए मैं सस्ता मोबाइल ही लेने गया था और आज भी सस्ता मोबाइल ही इस्तेमाल करता हूं लेकिन साथी ने चांद पर चढ़ाकर जेब से 11 हजार रुपए ढीले करवा दिए। ज्यादा दिन भी नहीं हुए थे उसको खरीदे हुए। बहुत दुख हुआ जब चोरी हुआ। मैंने मोबाइल की गुमशुदगी की पुलिस में रिपोर्ट भी लिखाई। इससे पहले घर आकर पैकेट देखकर ईएमईआई नम्बर नोट किए और पुलिस थाने जाकर निवेदन किया। लेकिन आज तक मोबाइल का पता नहीं लगा है।
मैं समझ गया था कि अगर चोरी हुआ तो अब मिलने से रहा। यकायक दिमाग में कई तरह के सवाल भी कौंध गए। फोन मल्टीमीडिया था और डबल सिम वाला। सिम भी दो लगी थी। एक छत्तीसगढ़ की तो दूसरी राजस्थान की। कितना सहेज कर रखती है धर्मपत्नी उसको। छह माह पहले मायके गई तब लिया था। अभी दीपावली पर गई तो राजस्थान के नम्बरों की एक सिम और डलवा ली। सबसे बड़ी बात तो यह थी कि मोबाइल में मेरी, बच्चों एवं श्रीमती की बहुत सारी फोटो भी थी। मन ही मन में दिलासा दिया कि खो गया तो खो गया लेकिन फोटो भी गई। बहुत सी यादें जुड़ी थी उनके साथ। फिर ख्याल आया अभी रिचार्ज भी करवाया था, पांच सौ रुपए का। शायद पुलिस में शिकायत करने से भले ही मोबाइल एवं फोटो ना मिले यह राशि तो मिल जाएगी। इस तरह दिमाग में कई सवालों का द्वंद्व और अधेड़बुन चल ही रही थी अचानक ख्याल आया कि क्यों ना एक बार राजस्थान वाले नम्बरों पर डायल किया जाए। फोन लगाया तो घंटी बज गई। जब तक श्रीमती ने फोन अटेंड नहीं किया। ऐसे में दिमाग में पहला विचार तो यह आया कि फोन बंद तो नहीं हैं। एक नम्बर पर तो घंटी जा रही है। दूसरे ही पल ख्याल आया कि यह राजस्थान का नम्बर है हो सकता है चोरी करने वाले ने मोबाइल से एक सिम निकाल ली हो। तीसरा विचार यह आया कि कहीं उसने राजस्थान वाली सिम दूसरे मोबाइल में तो नहीं डाल ली। मेरे दिमाग में यह विचार कौंध ही रहे थे कि अचानक घंटी बंद हो गई और सामने से आवाज आई... मिलग्यो... मिलग्यो...। मैं कुछ बोलता, इससे पहले ही फोन कट गया। मतलब मैं समझ गया था कि श्रीमती की चिंता दूर हो गई थी और मोबाइल मिलने की खुशी में उसके मुंह से केवल दो ही शब्द निकल पाए।
आखिर में एक बात और जिसको मैंने बड़ी शिद्दत के साथ महसूस किया है। आदमी हो या महिला जब वह बहुत अधिक गुस्से में होता तब और दूसरा जब वह बहुत अधिक खुश होता है तो उसके मुंह से स्थानीय भाषा ही निकलती है। श्रीमती के साथ भी वैसा ही हुआ है। वह अक्सर हिन्दी में ही बात करती है लेकिन मोबाइल मिलने की खुशी में हिन्दी भूलकर मारवाड़ी पर उतर आई। मैंने श्रीमती को दुबारा फोन लगाया तो दोनों ही नम्बरों पर नहीं लगा। शायद ज्यादा खुश हो गई या फिर सिम बंद होने के कारण तलाशने में जुट गई। कारण जो भी
हो घर जाने के बाद ही पता चलेगा। अभी तो इतना ही कह सकता हूं... वाह रे मोबाइल। तेरी भी अजीब माया है। न हो तो भी दिक्कत और हो तो भी। तेरी माया से कोई नहीं बच पाया।

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