Monday, April 8, 2013

यह 'आग' कब बुझेगी ...?


टिप्पणी

 
नंदिनी-अहिवारा के पास निर्माणाधीन सीमेंट प्लांट में लगी भीषण आग पर देर रात भले ही काबू पा लिया गया है लेकिन ग्रामीणों के दिलों में सुलग रही आग अब भी वैसी की वैसी ही है। पुलिस छावनी में तब्दील नंदिनी थाने के बाहर शुक्रवार को चिलचिलाती धूप में शासन, प्रशासन, पुलिस और प्लांट प्रबंधन के खिलाफ नारेबाजी करते ग्रामीणों का गुस्सा भी यही जाहिर कर रहा था कि आक्रोश की आग की लपटें अभी कमजोर नहीं हुई हैं। दुधमुंहे बच्चों को गोद में लेकर तेज धूप में पसीने से तरबतर होने के बावजूद चार-पांच किलोमीटर का पैदल मार्च कर नंदिनी थाने पहुंची इन महिलाओं की एक सूत्री मांग थी कि रात को घर से 'जबरन' उठाए गए परिजनों को पुलिस या तो बिना शर्त रिहा करे अन्यथा उनको भी गिरफ्तार कर ले। नारेबाजी के बीच पुलिस प्रशासन पर कई संगीन आरोप भी लगे। आरोपों की बानगी देखिए.. 'प्लांट प्रबंधन से मिलीभगत कर साजिशन ग्रामीणों को फंसाया है।' 'पुलिस ने अलसुबह चार बजे ग्रामीणों को घर से जबरस्ती उठाया है।' 'सारा प्रशासन बिका हुआ है।' 'हम ढाई माह से आंदोलनरत है लेकिन कभी किसी ने सुध क्यों नहीं ली' ... और भी कई तरह के आरोप सरेआम लगाकर शासन-प्रशासन को कठघरे में खड़ा करने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पांच घंटे तक ग्रामीण एक ही मांग पर अडिग रहे लेकिन उनसे बात करने के लिए पुलिस एवं प्रशासन के अधिकारी बदलते रहे। सभी ने समझाइश के भरपूर प्रयास किए लेकिन ग्रामीण अपनी एक सूत्री मांग के समर्थन में टस से मस नहीं हुए और वहीं बैठ गए।
इधर निर्माणाधीन प्लांट तथा मलपुरी में कहने को खामोशी एवं सन्नाटा पसरा है लेकिन रात के घटनाक्रम के निशान दोनों जगह ही दिखाई देते हैं। प्लांट में आग से खाक हुए वाहन, जनरेटर, दुपहिया वाहन एवं अन्य उपकरण हादसे की भयावहता को बयां कर रहे थे, वहीं मलपुरी खुर्द के रास्तों में पसरा सन्नाटा एवं अजीब से भय के चलते छाई खामोशी भी यही बता रहे थे कि रात के अंधेरे में एक आग बुझाने के प्रयास में दूसरी 'आग' को किस कदर भड़काया गया है। नौकरी देने और न देने की दोनों पक्षों की 'जिद' ने बजाय कुछ पाने के बहुत कुछ खो दिया है, जिससे उबरने में दोनों को ही लम्बा वक्त लगेगा।
बहरहाल, सबसे मौजूं सवाल तो यही है कि विरोध की खाई को पाटने के बजाय गहरा करने वाली कार्रवाई तथा एक दूसरे के जान के दुश्मन बने दोनों पक्षों के बीच भविष्य में सदभाव, स्नेह एवं सहयोग किस तरह कायम हो पाएगा? और यह भी जरूरी नहीं है कि ग्रामीणों पर अपराध दर्ज करने के बाद इस प्रकरण का पटाक्षेप हो गया है, क्योंकि आक्रोश की चिंगारी अब 'आग' बन चुकी है। खैर, इस घटनाक्रम को अगर इसी अंदाज में अंजाम तक पहुंचाना था तो फिर शासन व प्रशासन की भूमिका पर सवाल उठने लाजिमी हैं। वैसे भी यह सीमेंट प्लांट शुरू से ही विवादों में घेरे में रहा है। संवेदनशील मसला होने के बाद भी शासन-प्रशासन ने पता नहीं क्यों एवं क्या सोचकर इसको गंभीरता नहीं लिया। इतना ही नहीं प्रशासन ने विवाद को निबटाने की कभी ईमानदारी कोशिश भी नहीं की। समय रहते दोनों पक्षों के मध्य कोई बीच का रास्ता निकाल दिया जाता संभवत: इस प्रकार के हालात ही नहीं बनते। वैसे भी किसी विवाद का हल जोर-जबरदस्ती या बलात तरीके से आज तक नहीं हुआ है। इतिहास गवाह है कि विवादों का हल अक्सर बातचीत से ही संभव हुआ है।



साभार - पत्रिका भिलाई के 06 अप्रेल 13 के अंक में प्रकाशित। 

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