Friday, November 29, 2013

प्रचार से अब तक मुद्दे गायब

पाटन विधानसभा

दुर्ग जिले की पाटन विधानसभा में एक बार फिर मुख्य मुकाबला दोनों रिश्तेदारों एवं परम्परागत प्रतिद्वंद्वियों के बीच ही माना जा रहा है। कहने को यहां बसपा एवं स्वाभिमान मंच ने भी प्रत्याशी उतारे हैं, लेकिन वे अभी तक मुकाबले में दिखाई नहीं देते हैं। नामांकन वापसी के बाद यहां से कुल 11 प्रत्याशी मैदान में हैं। भाजपा प्रत्याशी विजय बघेल यहां से तीसरी बार, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी भूपेश बघेल पांचवीं बार मैदान में हैं। विजय बघेल यहां से एक बार जबकि भूपेश बघेल तीन जीत चुके हैं। सन 1977 में अस्तित्व में आए इस विधानसभा क्षेत्र में अब तक आठ मुकाबलों में छह में बाजी कांग्रेस के हाथ लगी है, जबकि दो बार भाजपा ने जीत हासिल की है। पाटन विधानसभा क्षेत्र में मुकाबले हमेशा रोचक ही रहे हैं और हार-जीत का अंतर हमेशा आठ हजार मतों से कम ही रहता है। मजे की बात तो यह है कि यहां सबसे बड़ी जीत 1980 में 7983 मतों से कांग्रेस प्रत्याशी के नाम दर्ज है, तो सबसे कम अंतर 1985 में 2934 मत की जीत का सेहरा भी कांग्रेस के सिर पर ही बंधा है।
कुर्मी एवं साहू समाज निर्णायक
पाटन विधानसभा क्षेत्र में कुर्मी एवं साहू समाज की भूमिका हर बार निर्णायक रहती हैं, क्योंकि क्षेत्र में दोनों समाज की बहुलता है। इसके अलावा अनुसूचित जाति के रूप में सतनामी समाज की भी यहां अच्छी खासी दखल है। पिछले चुनाव में भाजपा का समर्थन करने वाले साहू समाज ने इस बार टिकट वितरण के दौरान भाजपा प्रत्याशी के प्रति नाराजगी जाहिर करते हुए टिकट मांगा था। अगर यह नाराजगी मतदान तक कायम रही तो फिर विजय बघेल के लिए खतरा हो सकता है। भाजपा एवं कांग्रेस दोनों के प्रत्याशी कुर्मी जाति से हैं, ऐसे में छत्तीसगढ़ स्वाभिमान मंच ने यहां दीनू साहू को टिकट थमाया है, लेकिन उससे नुकसान कांग्रेस के मुकाबले भाजपा को ज्यादा होने के आसार हैं।
लगातार बढ़ रहा है जीत का अंतर
एक रोचक तथ्य यह भी जुड़ा है कि 1985 के बाद से लगातार जीत का अंतर बढ़ रहा है, जो पिछले चुनाव में 7842 था। बुनियादी सुविधाओं में पिछड़ा होने के बावजूद पाटन विधानसभा क्षेत्र के लोग मतदान में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। पिछले विधानसभा में यहां 79 प्रतिशत मतदान हुआ था। बहरहाल, चुनावी शतरंज पर पुराने खिलाड़ी होने की वजह से मतदाताओं में खास उत्साह दिखाई नहीं देता है। भाजपा प्रत्याशी के जहां अपने कार्यकाल की 'उपलब्धियों एवं 'विकास के नाम पर मतदाताओं के बीच वोट मांग रहे हैं, जबकि कांग्रेस प्रत्याशी अपने कार्यकाल की तुलना करते हुए जनता के बीच हैं, लेकिन 'विकास के शोर में क्षेत्र के प्रमुख मुद्दे गौण हो गए हैं।
अधूरी घोषणाएं पड़ सकती हैं भारी
पाटन विधानसभा क्षेत्र के लोग प्रत्याशियों के मुंह से विकास के दावे सुनकर हैरान हैं। वे समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर विकास कहां हुआ है। देखा जाए तो मतदाताओं की यह हैरानी जायज भी है। क्षेत्र में बुनियादी सुविधाएं भी लोगों को ठीक से मयस्सर नहीं हैं। क्षेत्र में कई प्रमुख मुद्दे हैं, जो इस बार चुनाव में रंग दिखा सकते हैं। उपकोषालय के यहां के लोगों को दुर्ग जाना पड़ता है। ग्रामीणों की मानें तो मुख्यमंत्री ने यहां छह माह में उपकोषालय की घोषणा की थी, लेकिन वह घोषणा अमल में नहीं आई। आईटीआई भी पाटन में न खुलकर दरबारमुखली में खुल गई, लेकिन वहां भी उसमें संसाधनों का अभाव है। पाटन में महिला महाविद्यालय की मांग भी अधूरी ही रह गई। इसके अलावा नल योजना व वृहद पेयजल योजना भी यहां के प्रमुख मु्द्दे हैं। क्षेत्र की टूटी-फूटी सड़कें भी इस बार चुनाव में प्रभावी भूमिका निभाएंगी। इतना ही नहीं हाल में करोड़ों रुपए के बजट से बनाई गई सड़कें तो दो माह भी नहीं चल पाई। सड़क निर्माण में हुई अनियमितता के चलते लोगों में आक्रोश है।

2008 में मतदाता  155806
2013 में मतदाता 170581
मतदाता बढ़े 14775
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 साभार : पत्रिका छत्तीसगढ़ में 15 नवम्बर 13 के अंक में प्रकाशित।

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