Wednesday, June 12, 2019

मनमर्जी की ‘लूट’

टिप्पणी
करीब तीन माह पहले की बात है। पड़ोसी जिले बीकानेर के जिला कलक्टर ने देर रात तक शराब की दुकानें खुलने की शिकायत पर शराब ठेकों का निरीक्षण किया था। इस दौरान उन्हें शहर में एक जगह शराब की दुकान खुली मिली। उन्होंने वहां से निर्धारित कीमत से ’यादा राशि चुकाकर शराब खरीदी। बाद में उन्होंने आबकारी अधिकारी को मौके पर बुलाया। इसी मामले में बाद में एक थानाधिकारी पर भी गाज गिरी। खैर, बीकानेर जैसे सूरतेहाल ही श्रीगंगानगर के भी हैं। यहां भी शराब की दुकानें देर रात तक खुलती हैं तथा निर्धारित कीमत से ’यादा राशि वसूल कर शराब बेची जा रही है, लेकिन यहां जिला प्रशासन ने इस मामले में कभी हस्तक्षेप नहीं किया। आबकारी व पुलिस विभाग दोनों एक दूसरे के क्षेत्राधिकार का मामला बताकर हमेशा कार्रवाई से बचते रहे हैं। हकीकत यही है कि शराब ठेके देर रात तक खुले रहते हैं। भले ही शटर नीचे गिरा हो लेकिन उसके बगल में बनाई गई मोरी (छेद) से काम बेधडक़ बदस्तूर चलता रहता है। दूसरी मनमर्जी यह है कि निर्धारित कीमत से ’यादा कीमत पर बिक्री हो रही है। मनमर्जी की कीमत वसूलने के लिए ठेकेदारों ने बकायदा पूल बना लिया है। वैसे पूल बनने से पहले भी ’यादा राशि ली जा रही थी। पूल बनने के बाद राशि और बढ़ा दी गई है। आश्चर्य की बात नहीं, श्रीगंगानगर में सुरा शौकीनों को ड्राइ डे के दिन भी शराब आसानी से सुलभ हो जाती है। इतना ही नहीं शराब ठेकों पर रेट लिस्ट तो शायद ही देखने को मिले। और किसी ने दिखावे के लिए लगा भी रखी तो है तो उसकी पालना नहीं होती। यह हाल जिला मुख्यालय का है, जहां पुलिस व आबकारी विभाग के वरिष्ठ अधिकारी बैठते हैं।
ग्रामीण क्षेत्रों में यह खेल बेखटके चलता है। वहां तो अवैध ब्रांचें तक खुलने की शिकायत मिली हैं। मतलब जहां ठेका स्वीकृत ही नहीं है, वहां भी ठेके चल रहे हैं। यह सारा खेल खुलेआम चल रहा है। पुलिस या आबकारी विभाग को इसकी जानकारी न हो, ऐसा हो नहीं सकता। ऐसे में सवाल उठते हैं कि इन पर कार्रवाई क्यों नहीं होती? या लक्ष्य पूर्ति करने के लिए आबकारी विभाग ने सबको खुली छूट दे रखी है?
या फिर यह मान लेना चाहिए कि मनमर्जी के इस खेल पर कोई अंकुश लगेगा ही नहीं और जिला प्रशासन, पुलिस व आबकारी विभाग के सारे के सारे अधिकारी अपनी जिम्मेदारी से आंखें चुराकर यह तमाशा होने देंगे? इतना ही नहीं जांच का विषय यह भी है कि निर्धारित कीमत से ’यादा वसूले गए पैसे के भागीदार व साझीदार कौन-कौन हैं तथा यह पैसा कहां कहां तक व किस किस की जेब में जा रहा है?

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 01जून 19 के अंक में प्रकाशित ।
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