Monday, August 29, 2011

अन्नागिरी और बिलासपुर

टिप्पणी
बारह दिन तक चली 'जनतंत्र की जंग' के बाद मिली 'जीत' का जश्न मनाने के लिए शायद इससे बेहतर कोई दूसरा तरीका हो भी नहीं सकता था। यह एक तरह की 'खुशियों की बारात' थी, जिसमें शामिल हर आम और खास के चेहरे पर विजयी मुस्कान साफ-साफ जाहिर हो रही थी। खुशी के मारे हर 'बाराती' झूम रहा था, गा रहा था। उत्साह एवं उमंग से लबरेज उसके जोश में शर्म-संकोच की तो जैसे कोई गुंजाइश ही नहीं थी। 'आजादी की दूसरी लड़ाई' में संकल्प एवं साहस की 'फतह' के उपलक्ष्य में निकली यह 'बारात' न केवल अनूठी रही बल्कि कई अर्थों में अलग भी नजर आर्इ। इसमें हर वर्ग की भागीदारी रही। लोग इस 'बारात' में शामिल होते गए और समय के साथ बधाई दर बधाई की फेहरस्ति लम्बी होती गई। मिठाई बंटी। हवन हुए। इतना ही नहीं खुशी के गुलाल व उल्लास के अबीर के बीच हुई आतिशबाजी और गले मिलकर दी गई मुबारकबाद ने होली-दीवाली व ईद के माहौल को साकार कर दिया। तभी तो 'जनतंत्र की जीत' का यह उल्लास किसी उत्सव से कम नजर नहीं आया। तीनों त्योहारों की झलक के इस ऐतिहासिक संगम के साक्षी शहर के सैकड़ों लोग बने। इस आकर्षक नजारे के बीच हुई रिमझिम बारिश ने तो सोने पर सुहागे जैसा काम किया। ऐसा लगा मानो बारिश भी 'जनतंत्र की जंग' में शामिल 'दीवानों' का खैरमकदम करने को आतुर थी। तभी तो जश्न का यह दौर जैसे ही थमा आसमान से बादल भी छंट गए।
दरअसल, मामला 'आजादी की दूसरी लड़ाई' से बावस्ता था, लिहाजा, इसमें देशभक्ति के सभी रंग होना लाजिमी थे। 'आजादी के दीवाने' खुशी में झूमते-गाते इस कदर शंखनाद कर रहे थे गोया उनको मुंह मांगी मुराद मिल गई हो। कई आंदोलनों का गवाह रहा बिलासपुर का नेहरू चौक तो देशभक्ति की इस अद्‌भुत सरिता को देख धन्य हो गया।
बहरहाल, जनतंत्र के इस अनूठे अनुष्ठान की 'पूर्णाहुति' सुखद रही। यह बात दीगर है कि 'आजादी के दीवाने' लगातार बारह दिन तक अनुशासन की अग्निपरीक्षा में उत्तीर्ण होते रहे लेकिन आखिरी एवं निर्णायक दिन उनके जोश के आगे अनुशासन कुछ बौना नजर आया और अन्ना के आह्वान की अवहेलना होती दिखाई दी। खैर, भ्रष्टाचार के विरोध में प्रज्वलित हुई उम्मीद की यह लौ कालांतर में प्रचंड अग्नि में तब्दील होकर 'अन्ना की अधूरी जीत' को पूरी जीत में परिवर्तित करने का मार्ग प्रशस्त करेगी। बिलासपुर जैसे शहर में तो इस लौ का निरंतर जलते रहना निहायत ही जरूरी है। यह काम चुनौतीपूर्ण जरूर है लेकिन न्यायधानी में 'आजादी के दीवानों' का हौसला एवं जोश देखते हुए मुश्किल तो बिलकुल भी नहीं।
साभार  : पत्रिका बिलासपुर के 29 अगस्त 11 के अंक में प्रकाशित

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