Saturday, October 15, 2011

ये मोबाइल फोन कम्पनी वाले....

बात इसी सोमवार यानी दस अक्टूबर की है। मैं अपने कार्यालय की सुबह की मीटिंग की निवृत्त होकर घर पहुंचा ही था कि अचानक मैंने मेरे दूसरे मोबाइल पर एक अजनबी नम्बर से आई मिस्सड काल को देखा। जैसी कि मेरी आदत है, मैं जो भी मिस्सड कॉल देखता हूं, उस पर कॉल कर लेता हूं। उस दिन भी मैंने वैसा ही किया। मैंने फोन दूसरे नम्बर से लगाया था, इसलिए पहले मुझे परिचय देना पड़ा और बताना पड़ा कि मेरे दूसरे नम्बरों पर आपने कॉल किया था। मामला समझ में आने के बाद सामने वाले शख्स ने कहा कि मैं दिल्ली पुलिस का इंस्पेक्टर बोल रहा हूं। आपके खिलाफ दिल्ली तीस हजारी कोर्ट में याचिका लगी हुई है। फोन पर उस कथित इंस्पेक्टर की बात सुनकर मुझे यकायक करंट सा लगा और मेरे हाथ से मोबाइल छूटते-छूटते बचा। जैसे-तैसे खुद को संभालते हुए मैंने घबराहट में  पूछा आखिरकार मेरा कसूर क्या है। तो वह बोला कसूर की बात करते हो। एक तो नोटिस का जवाब नहीं देते हा्रे ऊपर से सवाल भी करते हो। आप को कल 11 अक्टूबर को दिल्ली हाईकोर्ट में उपस्थित होना है। इतना सुनते ही मेरी धड़कनें लुहार की धौकनी की मानिंद जोर-जोर से चलने लगी। चेहरा एकदम से पीला पड़ गया। समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार अब क्या करूं। थोड़ी हिम्मत से जुटाकर फिर पूछा तो वह कथित इंस्पेक्टर बोला भाईसाहब आपके नाम कोई वोडाफोन का बिल लम्बित है। आपने उसे लम्बे समय से जमा नहीं कराया है, इसलिए वोडाफोन वालों ने आपके खिलाफ यह कार्रवाई की है।
कथित इंस्पेक्टर ने आगे कहा कि बिल जमा कराने के लिए तीन माह पूर्व आपको नोटिस भेजा था लेकिन आपने उसका जवाब ही नहीं दिया। इस पर मैंने कहा कि जिस स्थान की आप बात कर रहे हैं, मैं उस स्थान पर छह माह से नहीं रह रहा हूं। रही बात बिल जमा कराने की तो मैंने बिल जमा कराने से इनकार ही कब किया, जो नोटिस देने या अदालत में हाजिर होने की नौबत आ गई। मेरी दलीलों का उस कथित इंस्पेक्टर पर कोई असर नहीं हुआ। उसने कहा कि आप इस मामले को देख रहे वकील के नम्बर ले लो। हो सकता है वह आपकी कुछ मदद कर दें। वकील के नम्बर देते हुए उस इंस्पेक्टर ने मुझे बताया कि इनका नाम आरके चौधरी हैं। आप अपना पूरा मामला इनको बता दो। हो सकता है आपकी कोई मदद हो जाए।
मैंने हिम्मत जुटाकर तत्काल वकील साहब को फोन लगाया तो सामने से धीमे से आवाज आई। मैंने अपना परिचय देते हुए मामले की जानकारी लेनी चाही तो उन्होंने कुछ देर के लिए मुझे फोन पर होल्ड रखा। इसके बाद बोले आपने वोडाफोन का बिल जमा नहीं करवाया है और कनेक्शन भी विच्छेद करवा लिया है। आपको कल 11 अक्टूबर को तीस हजारी कोर्ट में हाजिर होना है। मैंने उनको बताया कि  एक दिन में मेरा दिल्ली पहुंचना संभव नहीं है। क्या इस समस्या का किसी तरह से कोई समाधान हो सकता है? वकील साहब ने कहा कि आप एक घंटे के भीतर 2307 रुपए जमा करवाके मुझे रसीद नम्बर बताओ तो मामले का निपटारा हो सकता है अन्यथा आपको कल हाजिर होना पड़ेगा। इसके बाद मैंने उस कथित इंस्पेक्टर को फोन लगाया और वकील साहब से हुए वार्तालाप के बारे में बताया। उस कथित इंस्पेक्टर ने भी वकील साहब की तर्ज पर मुझे एक घंटे के भीतर बिल जमा करवाने की सलाह दी।
दरसअल यह वोडाफोन की कहानी भी करीब छह माह पुरानी है। वोडाफोन के नम्बर वाला फोन मेरी धर्मपत्नी के पास था। पोस्टपैड होने के कारण वह बिल भी मैं ही जमा करवाता था। अचानक मेरा तबादला राजस्थान से बाहर हो गया। ऐसे में  बिल समय पर जमा नहीं हो पाया। जिस एजेंसी से यह फोन नम्बर लिया गया था, वहां से  मेरे पास फोन आया तो मैंने अपनी धर्मपत्नी जो कि उस वक्त अपने मायके में थी, से कहा कि किसी परिचित को बोलकर बिल जमा करवा दो।  तब उसने अपने बुआ के बेटे  जो कि वोडाफोन में किसी सीनियर पोस्ट पर काम करते बताए, उनसे कहा तो उन्होंने कहा कि आप चिंता मत करो काम हो जाएगा। यह बात सुनकर मैं निश्चिंत हो गया। कुछ समय बाद श्रीमती ने भी राजस्थान छोड़ दिया और मेरे पास आ गई, लेकिन बिल जमा नहीं हो पाया। हम तो बुआ के बेटे के भरोसे पर बैठे थे, इसलिए नहीं करवाया। मन में कोई पूर्वाग्रह या बिल जमा न कराने की भावना भी नहीं थी। सोचा राजस्थान चलेंगे तो बिल की राशि लौटा देंगे।
करीब दस दिन ही शांति से बीते होंगे कि एजेंसी वाले का फोन फिर आ गया, बोला भाईसाहब बिल जमा नहीं कराओगे क्या? मैं उसके बात करने के तरीके पर कुछ चौंका फिर उससे पूछा कि भईया उसमें जमा कराने या न कराने की कोई बात ही नहीं है। मेरे रिश्तेदार हैं, जो कि वोडाफोन में ही है। उन्होंने कहा कि बिल जमा हो जाएगा, इसलिए मैं तो शांत हूं। आप एक बार उनसे बात कर लो। इसके बाद मेरे पास एजेंसी से फोन आना बंद हो गए। करीब दो माह बाद फिर एजेंसी से फोन आया। वह बोला आपका बिल अभी पेंडिंग ही चल रहा है। आपके वोडाफोन वाले रिश्तेदार ने कोई बिल जमा नहीं कराया है। इस पर मैंने एजेंसी वाले को कहा कि यार तू मेरे गांव के पास का है। मैं तेरे को जानता हूं और तू मेरे को जानता है। ऐसा कर अगर रिश्तेदार ने नहीं कराया है तो तू करा दे। मैं अगले माह दीवाली पर गांव आ रहा हूं तब तुम्हारा पैसा लौटा दूंगा। मेरी बात पर सहमति जताते हुए उसने फोन काट दिया। मैं भी आश्वस्त हो गया कि अब फोन नहीं आएगा। मुझे नहीं पता था कि इस बार फोन नहीं बल्कि इस तरह का बवाल आएगा।
खैर, कहानी बताने का मतलब यही था कि मेरे मन में कहीं भी फोन की राशि हड़पने की बात भी नहीं थी। मैं एक प्रतिष्ठित परिवार से जुड़ा हूं और बेहद संवेदनशील इंसान हूं। मेरा जॉब भी सार्वजनिक उपक्रम का है, लिहाजा वैसे भी फूंक-फूंक कर कदम रखना पड़ता है। वकील से बात खत्म होते ही मैंने अपने पुराने साथी को फोन लगाया और वकील के नम्बर दे दिए। उसने पूछा क्या बात हो गई तो मैंने कहा पूरी कहानी बाद में बताऊंगा पहले 2307 रुपए का बिल वोडाफोन की एजेंसी पर जाकर जमा कराओ और वहां से जो रसीद मिले उसके नम्बर वकील को बताओ। राशि जमा होने के होने के बाद उसका मेरे पास फोन आ गया कि बिल जमा हो चुका है। उसने कहा कि वकील को आप ही बता दो, यह कहकर उसने रसीद नम्बर भी मुझे नोट  करा दिए। राहत की सांस लेते हुए मैंने वकील को इस समूचे घटनाक्रम से अवगत कराया। मैंने वकील से वोडाफोन के किसी अधिकारी के नम्बर जानना चाहे तो उन्होंने कहा कि उनके पास तो कम्पनी से ई मेल से शिकायत आती है उसी के आधार पर वे केस लड़ते हैं चूंकि आपने बिल जमा करवा दिया है इसलिए आपके समझौते का मेल वोडाफोन के अधिकारियों को भेज देता हूं।
इधर, फोन पर लम्बे समय तक मुझे बात करते देख मेरी धर्मपत्नी  भी सारा माजरा समझ चुकी थी। उसने तत्काल अपने पिताश्री को फोन लगाया और कहा कि भैया (बुआ के बेटे) को उलहाना दो कि उनके भरोसे के कारण आज क्या-क्या सुनने को मिल गया। इसके बाद श्रीमती ने ही अपने भैया को फोन लगाया। भैया ने मुझे बताया कि बिल की रिकवरी करने के लिए वोडाफोन वाले ऐसा ही करते हैं। आपको बिल जमा कराने से पहले एक बार मेरे से बात कर लेनी चाहिए थी। अब तो आपने बिल जमा करवा दिया है, इसलिए कुछ नहीं हो सकता है। चूंकि इस समूचे घटनाक्रम से मैं बेहद गुस्सा था। मैंने कहा कि आप वोडाफोन के किसी बड़े अधिकारी के नम्बर या मेल आईडी दीजिए ताकि मैं अपनी बात कह सकूं। मैं चोर नहीं हूं फिर भी मेरा साथ जो बर्ताव हुआ, उससे मुझे काफी दुख पहुंचा है। इसके बाद उन्होंने मामला दिखवाने का आश्वासन देते हुए दुबारा फोन करने का आश्वासन दिया।
इसके बाद मेरे एक दोस्त जो कि पहले वोडाफोन में कार्यरत थे और आजकल दूसरी मोबाइल कम्पनी में गुजरात चले गए, मैंने उनको फोन लगाया। मैंने उनसे भी वोडाफोन के किसी अधिकारी का नम्बर या ईमेल आइडी की जानकारी चाही, तो उन्होंने कहा कि बकाया बिल की रिकवरी के लिए इसी प्रकार के तरीके अपनाए जाते हैं ताकि उपभोक्ता डर के मारे राशि जमा करवा दें। उन्होंने कहा कि इस तरीके पर पहले भी काफी बवाल मच चुका है और समाचार-पत्रों में काफी छपा है। इसके बावजूद इन फोन कम्पनियों के रवैये में कोई बदलाव नहीं आया है। दोस्त से बात अभी खत्म ही हुई थी कि श्रीमती के बुआ के बेटे का फोन दुबारा आ गया और उन्होंने कहा कि आपका मूल बकाया तो 12 सौ ही है, उसने 2307 रुपए कैसे जमा करवाए। इसके बाद उन्होंने कहा कि रसीद लेकर आपके बंदे को एजेंसी तक भिजवा दीजिए। मैंने दुबारा फोन करके अपने साथी को एजेंसी तक भिजवा दिया। वहां पर 12 सौ रुपए जमा करके बाकी राशि वापस कर दी गई। इस प्रकार से यह समूचा घटनाक्रम करीब तीन घंटे तक चला।
चूंकि घटनाक्रम मेरे लिए एकदम नया और चौंकाने वाला था इस कारण इसको लिखने का मन कर गया। उस कथित इंस्पेक्टर तथा वकील साहब के नम्बर भी लिखना चाह रहा था, जो कि उस दिन एक किताब पर लिखे थे। जल्दबाजी में आज वह किताब मिली नहीं। मिली तो दोनों के नम्बरों का उल्लेख जरूर करूंगा। इस सारे घटनाक्रम से एक बात तो साबित हो गई कि खुद के  मरे बिना स्वर्ग नहंी मिलता। आज उस घटना को पांच दिन हो गए हैं लेकिन उसको याद करके कभी गुस्सा आता है तो कभी खुद पर ही हंसता हूं।  किसी बात को हल्के से लेना बाद में कितना गंभीर बन जाता है यह मैंने अभी तक सुना ही था अब जान भी गया हूं। मन में एक तरह की टीस जरूर है कि मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ। अपनी इस पीड़ा को मैंने सार्वजनिक जरूर किया है लेकिन सुकून तभी मिलेगा जब वोडाफोन के किसी बड़े अधिकारी से मुलाकात होगी। ज्यादा नहीं तो इतना तो कह ही दूंगा कि रिकवरी करवाने का यह तरीका कृपया बंद करवा दीजिए, क्योंकि आपका यह तरीका किसी हंसते-खेलते परिवार में कोहराम मचवा सकता है। पैसे वसूलने के तरीके और भी हो सकते हैं। किसी की जान पर बन आए, यह तो सरासर नाइंसाफी है। सवाल यह भी है कि जितनी नम्रता के साथ यह फोन वाले कनेक्शन देते वक्त या उपभोक्ताओं को अपनी तरफ मोड़ते समय पेश आते हैं, लेकिन बाद में इनका व्यवहार बदल जाता है। इसी घटनाक्रम को एक परिचित को बताया तो वे हंस पड़े और बोले, आप उनकी बातों से डर गए। बड़े-बड़े अपराधियों का कुछ नहीं होता फिर आपने ऐसा कौनसा गुनाह किया था जो डर गए। अब परिचित को यह कौन समझाए कि इज्जजदार के लिए तो तू कहना ही गाली के समान है।
और अंत में आखिरकार नम्बर मिल गए। कथित पुलिस इंस्पेक्टर के नम्बर 9250213864 हैं जबकि वकील साहब के नम्बर 92137 11928  हैं। इन दोनों नम्बरों पर मैंने बात की थी।









2 comments:

  1. दादों भाई, भरोस की भैंस तो पाड़ो ही ल्याव है. !!

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  2. aapne sahi kaha ijjatdar ke liye to tu hi gaali hai......bilkul main bhi yahi manta hu....

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