Saturday, January 28, 2012

बात दिशा-निर्देशों से आगे तो बढ़े


पत्रिका व्यू
सड़क सुरक्षा सुरक्षा समिति की शुक्रवार को हुई बैठक जो निर्णय लिए गए , वे सब करीब ढाई माह पूर्व हुए खुला मंच कार्यक्रम में भी लिए जा चुके हैं। मंथन में जुटे अधिकारियों, कर्मचारियों तथा  निजी ट्रक, बस, आटो, चालक संघों के पदाधिकारियों को शायद याद न हो, लेकिन जिन मुद्‌दों पर इन लोगों की चर्चा की उन पर पहले भी काफी विचार-विमर्श हो चुका है। मसलन, शहर के विभिन्न स्थानों से अनुचित पार्किंग एवं अतिक्रमण के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए गए हैं। टाटा मैजिक वाहनों का शहर के अंदर प्रवेश प्रतिबंधित किया गया है। रास्तों पर अतिक्रमण कर ठेला लगाने वालों को हटाने, ऑटो संचालन के लिए परमिट अनिवार्य करने तथा ट्रांसपोर्ट नगर में सुविधाओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने की बात कही गई।
ऑटो के परमिट न होने तथा मैजिक के अवैध संचालन की बात तो खुला मंच कार्यक्रम में यातायात विभाग के डीएसपी ने ही कही थी। इसी कार्यक्रम में  ट्रांसपोर्ट नगर का मामला तो बहुत जोर-शोर से उठा था। शहर में भारी वाहनों के रात में प्रवेश का मामला भी इसी बात से जुड़ा है। सवाल उठता है कि जिन सुविधाओं की उपलब्धता की बात अब की जा रही है, वह पहले क्यों नहीं जुटाई गई। सुविधाएं थी ही नहीं तो वाहनों का प्रवेश बंद करने में जल्दबाजी क्यों दिखाई गई। सुविधाएं जुटाई गए तो उनमें कमी की गुंजाइश क्यों छोड़ दी गई। बात फिर वहीं आकर रुकती है कि केवल हर बार दिशा-निर्देश ही जारी होकर रह जाते हैं।
बहरहाल, ऐसी बैठकों की सार्थकता तभी है, जब उनमें लिए गए निर्णयों पर काम हो। बैठकें बुलाने तथा उनमें दिशा-निर्देश जारी करना एक तरह से वक्त बर्बाद करना ही तो है, क्योंकि इनसे हासिल तो कुछ होता नहीं है। सिर्फ कागजी कार्रवाई करने, शासन-प्रशासन के दवाब या माननीय न्यायालय के आदेशों की अनुपालना में सिर्फ बैठकें बुलाने से ही बात नहीं बनेगी। जरूरत दिशा-निर्देशों को हकीकत में बदलने की है। उम्मीद की जानी चाहिए शुक्रवार को हुई बैठक में जारी किए गए दिशा-निर्देशों पर न केवल अमल होगा बल्कि कार्रवाई भी होगी।

साभार- पत्रिका बिलासपुर के  28 जनवरी 12  के अंक में प्रकाशित


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