Friday, August 24, 2012

पालक हित में काम करें

टिप्पणी 

 स्कूलों की गलाकाट प्रतिस्पर्धा और बेतहाशा स्कूल फीस वृद्धि से उकताए शिक्षानगरी भिलाई के पालकों को उस वक्त बड़ी उम्मीद बंधी थी कि कम से कम उनकी पीड़ा को सुनने वाला कोई संगठन तो तैयार हुआ। उनको लगने लगा कि उनकी आवाज को अनसुना कर देने वाले संबंधित स्कूल संचालकों में अब कुछ तो भय होगा। इसी भरोसे के साथ पालकों ने एक नए नवेले संगठन को भरपूर समर्थन भी दिया। शुरुआती दौर में छत्तीसगढ़ पालक संघ अपने उद्‌देश्यों पर खरा उतरता नजर भी आया जब उसने पालकों की कई समस्याओं को हल करवाया। पालक संघ की पहल पर निजी स्कूलों पर लगाया गया जुर्माना तो समूचे प्रदेश में एक नजीर के रूप में याद किया जाएगा। इन सब कामों के चलते अल्प समय में ही पालक संघ ने अच्छी खासी लोकप्रियता भी हासिल कर ली। तभी तो पालकों को यह लगने लगा कि जिले में एक संगठन पहले से मौजूद होने के बावजूद नया संगठन अस्तित्व में क्यों आया। इतना कुछ करने के बाद गुरुवार को एक निजी स्कूल के बस चालकों के प्रदर्शन को समर्थन देकर संघ ने अपने उद्‌देश्यों की मर्यादा को लांघने का ही काम किया है। आखिर संघ यह करके क्या साबित करना चाहता है। बस चालकों के प्रदर्शन की वजह से विद्यार्थी ढाई घंटे तक स्कूल में बैठे रहे। समय पर बच्चों के घर न पहुंचने के कारण पालकों को हुई परेशानी को तो शब्दों में बयां करना भी मुश्किल है। पालकों के हितैषी कहलाने वाले संघ पदाधिकारियों को इस बात का जरा सा भी ख्याल नहीं आया कि उनके इस निर्णय की गाज सबसे पहले कहां पर गिरने वाली है। स्कूल प्रबंधन और बस चालकों की लड़ाई में पालक संघ के बीच में कूदने से सर्वाधिक नुकसान तो विद्यार्थियों का ही हुआ। बस चालक एवं स्कूल प्रबंधन में तो कल को समझौता भी हो जाएगा लेकिन मासूमों की भावना से खिलवाड़ करने की क्षतिपूर्ति किसी भी रूप में संभव नहीं है। 
बहरहाल, गड़बड़ियों एवं अव्यवस्थाओं को दुरुस्त करवाने के लिए इस प्रकार के संगठन होना जरूरी हो सकता है लेकिन इसका मतलब यह भी तो नहीं कि इस बहाने उसे कुछ भी करने की आजादी मिल जाए। लोकतंत्र में अपनी मांगे मनवाने के तरीके से बहुत से हैं और अव्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाना भी बुरी बात नहीं है लेकिन ध्यान यह रखा जाना चाहिए कि इस कवायद में कहीं जन को कोई नुकसान या पीड़ा तो नहीं हो रहा है। जनता की उम्मीदों की बुनियाद पर खड़ा होने वाला संगठन कभी जनहित को नजरअंदाज करके आगे नहीं बढ़ सकता। पालक संघ का गठन पालकों की समस्याओं का निराकरण करवाने के लिए किया गया था ना कि समस्याएं बढ़ाने के लिए। ऐसे में उसके आंदोलनों या प्रदर्शनों का मकसद सस्ती लोकप्रियता पाने या केवल वाहवाही बटोरने तक तो सीमित कतई नहीं होना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना तो बेहद जरूरी है कि पालकों का हमदर्द कहलाने के चक्कर में किसी से दादागिरी या मनमानी तो बिलकुल ना हो। जरूरत है कि पालकों का हितैषी कहलवाने वाले अपने गिरेबान में झांकें, गलतियों से सबक लें और बिना किसी राजनीति व लाग लपेट के ईमानदारी के साथ पालक हित में काम करें।

साभार - भिलाई पत्रिका के 24 अगस्त 12 के अंक में प्रकाशित।

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