Wednesday, November 29, 2017

इक बंजारा गाए-10


🔺वापसी के मायने
राजनीतिक दलों में नेताओं का आना-जाना लगा ही रहता है। सब अपनी सहुलियत व अवसर के हिसाब से पाला बदलते हैं। अदला-बदली का यह इतिहास पुराना है। अब श्रीगंगानगर में भी एक नेताजी की अपनी पार्टी में वापसी हुई है। अब इनकी वापसी से जहां कई खुश हैं, वहीं कइयों के माथे पर बल अभी से पडऩे लगे हैं। घर वापसी करने वाले नेताजी की भूमिका क्या रहेगी, यह तो अभी समय बताएगा लेकिन राजनीतिक जानकारों ने अभी से अपने-अपने हिसाब से कयास लगाने शुरू कर दिए हैं। वैसे श्रीगंगानगर के साथ एक सच यह भी जुड़ा है जिसने भी दल बदला है, उसको एक बार तो फायदा जरूर हुआ है लेकिन बाद में सफलता उनसे इस कदर रूठी कि फिर कभी भाग्य उदय हुआ ही नहीं। इस फेहरिस्त में कई नाम हैं।
🔺पानी पर सियासत
सियासत करने वालों को बस मौका चाहिए। अब श्रीगंगानगर जिले में पानी ऐसा विषय है जिस पर लंबे समय से सियासत होती रही है, इसके बावजूद यह समस्या आज भी यथावत है। विशेषकर चुनावी मौसम में यह सियासत चरम पर पहुंच जाती हैं। विडम्बना देखिए कि मामला किसानों से जुड़ा है लेकिन उनके रहनुमा अलग-अलग बन रहे हैं। मतलब उनकी मांग टुकड़ों में बंटी हुई है। वैसे कहा गया है कि एकजुटता में ही शक्ति है, लेकिन सियासी फेर में किसान चकररघिन्नी बने हुए हैं। किसान भी इस लालच में सभी के साथ हो रहा है कि उसकी समस्या का समाधान होना चाहिए भले ही वह किसी भी तरह से हो। देखने की बात यह है कि समाधान का श्रेय कौनसा सियासी दल लेता है और जनता किसका समर्थन करती है।
🔺आम और खास
श्रीगंगानगर में सीवरेज खुदाई के काम ने लोगों को किस कदर परेशानी में डाल रखा है, यह किसी से छिपा हुआ नहीं है लेकिन सीवरेज खुदाई वाली कंपनी इस काम में भेदभाव जरूर कर रही है। विशेषकर जहां वीआईपी लोगों का मोहल्ला है, वहां काम न केवल तुरत-फुरत होता है बल्कि रास्ते समतल करने का काम भी प्राथमिकता से होता है। मॉडल टाउन कॉलोनी में आम और खास के भेद को आसानी से देखा जा सकता है। विशेषकर चिकित्सकों वाली गली में सीवरेज कंपनी का विशेष ध्यान है जबकि जहां आम आदमी हैं, वहां के लोग आज भी ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर चलने तथा धूल फांकने को मजबूर हैं। अब यह तो सीवरेज कंपनी भी जानती है कि आम लोगों की कहीं पहुंच नहीं होती है, लिहाजा मनमर्जी खुलेआम चलाई जा रही है।
🔺फिर भी मुक्ति नहीं
जयपुर में हाल में ही एक विदेशी पर्यटक की सांड के सींग मारने से मौत के बाद प्रशासनिक अमला हरकत में आया हुआ है। श्रीगंगानगर में भी प्रशासनिक अमला इसी तरह हरकत में आया था। हालांकि मौत किसी विदेशी की तो नहीं हुई लेकिन वह श्रीगंगानगर के वरिष्ठ नागरिक जरूर थे। उस मौत के बाद प्रशासन ने कार्रवाई के नाम पर हाथ-पैर जरूर मारे लेकिन धीरे-धीरे बात आई गई हो गई। आवारा मवेशी फिर उसी अंदाज में सड़कों पर स्वच्छंद विचरण कर रहे हैं। यह तो गनीमत है कि इन दिनों कोई हादसा नहीं हुआ है। वरना फिर वही आग लगने पर कुआं खोदने के अंदाज में कार्रवाई होती। अगर इस समस्या का स्थायी समाधान हो जाए तो मौत न तो जयपुर में हो और न ही श्रीगंगानगर में। देखने की बात है कि वह दिन कब आएगा।

राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 23 नवंबर 17 के अंक में प्रकाशित 

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