Wednesday, November 29, 2017

हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी

बस यूं ही
'हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी. जिसको भी देखना हो. कई बार देखना' मशहूर शायर निदा फाजली की गजल का यह चर्चित शेर इन दिनों मौजूं हैं। इसको सीधे अर्थों में समझें तो दोहरे चरित्र वाले या दो तरह के जीवन वाले या फिर स्पष्ट रूप से कहें तो दोगला आदमी। दोगला वह जिसकी कथनी और करनी में अंतर होता है। सियासत में यह दोगलापन ज्यादा दिखाई देता है। आजकल इस दोगलेपन को नए तरीके से परिभाषित किया जाने लगा है। एक तो सार्वजनिक जीवन और दूसरा व्यक्तिगत जीवन। जाहिर सी बात है सार्वजनिक जीवन में सार्वजनिक बयान और व्यक्तिगत जीवन में व्यक्तिगत बयान। यह नई परिभाषा इसीलिए ईजाद की गई है क्योंकि सियासत में आजकल बेतुके बयान जारी करने का प्रचलन सा चल पड़ा है। बयान हिट तो सभी राजी और बयान विवादास्पद तो व्यक्तिगत बयान देकर पल्ला छाड़ लिया जाता है। यह व्यक्तिगत बयान की बात बेहद बचकानी लगती है। विडम्बना देखिए बंद कमरे में किसी के निहायत ही निजी पल पलक झपकते ही सार्वजनिक हो जाते हैं लेकिन सार्वजनिक रूप से दिया गया बयान व्यक्तिगत हो जाता है। एक बार मान भी लें कि नेता लोग दो तरह की जिंदगी जीते हैं लेकिन फिर उसमें विरोधाभास क्यों? सार्वजनिक व व्यक्तिगत बयानों का कोई मापदंड तो तय हो, अन्यथा नेता लोग उलूल जलूल बयान जारी करते रहेंगे और विरोध होने पर उसे व्यक्तिगत बता देंगे। इसलिए यह तय करना जरूरी हो जाता है कि बयान व्यक्तिगत है या सार्वजनिक। इतना ही नहीं है, हालात तो तब और भी अजीब हो जाते हैं जब बयान देने वाले कुछ नहीं कहे और उनकी पार्टी के लोग चलकर बचाव में बयान जारी करें दें। इस तरह की कलाकारी बयान जारी करने वाले को क्यों नहीं सूझती? कल को कोई नेता बंद कमरे में पैसे का लेनदेने शुरू कर दे और मामले का भंडाफोड़ हो जाए तो बचाव करने वाले क्या उसको भी व्यक्तिगत मामला ही करार देंगे?
बहरहाल, गुजरात में एक सामाजिक नेता की एक युवती के साथ की सीडी तो सार्वजनिक करार दे जाती है और चुनावी मुद्दा बन जाती है, वहीं राजस्थान में एक पार्टी प्रदेशाध्यक्ष का अतिक्रमण करने की छूट देने तथा खुद के आंख मूंद लेने का बयान व्यक्तिगत बन जाता है, एेसा क्यों होता है?

No comments:

Post a Comment