Friday, July 13, 2012

दोहरा चरित्र !


टिप्पणी

विडम्बना देखिए कि भिलाई के शांतिनगर एवं मॉडल टाउन के लोग वैधता के लिए जनप्रतिनिधियों एवं निगम अधिकारियों के यहां लगातार चक्कर लगा रहे हैं लेकिन उनकी तरफ किसी का ध्यान नहीं है। दोनों ही कॉलोनियों को वैधता तीन माह पहले दी जा चुकी है, लेकिन अभी तक विकास शुल्क निर्धारित नहीं किया गया है। नगर निगम की सामान्य सभा भले ही दो दिन चली हो लेकिन इस मसले पर कोई फैसला तो दूर चर्चा तक नहीं हुई। किसी ने बात कहने की कोशिश भी की तो हो हल्ला कर मामले को बहुमत के जोर पर दबा दिया गया। खैर, यह सामान्य सभा का एक पक्ष था। अब इसी सामान्य सभा का दूसरा पक्ष देखिए। वार्ड 24 में साप्ताहिक बाजार लगे या नहीं इस बात को लेकर मामला अदालत में विचाराधीन है। इसके बावजूद इसका प्रस्ताव सामान्य सभा में रखा गया। सांप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटे की तर्ज पर इस प्रस्ताव पर मतदान करवाने की रस्म अदायगी भी गई ताकि भविष्य में किसी प्रकार के शिकवा-शिकायत की कोई गुंजाइश ही नहीं रहे। सदन में बहुमत कांग्रेस का है, चाहते तो प्रस्ताव वैसे ही पास हो जाता है लेकिन मतदान को आधार बनाकर यह संदेश दिया गया कि साप्ताहिक बाजार वार्ड 24 में ही लगना चाहिए। वैसे साप्ताहिक बाजार को लेकर प्रस्ताव पारित करने में जल्दबाजी दिखाना कई सवालों को जन्म देता है। आखिर ऐसी क्या वजह है कि अदालत के निर्णय का इंतजार किए बिना ही प्रस्ताव पारित कर दिया गया।
उक्त दोनों मामले यह साबित करते हैं कि जनहित से जुड़े मसलों  को लेकर हमारे जनप्रतिनिधि बिलकुल भी संजीदा नहीं है। ऐन-केन-प्रकारेण उनका ध्यान सिर्फ इस बात पर है कि उनको अधिकाधिक निजी लाभ कैसे हासिल किया जाए। स्वाभाविक सी बात है, मामला जब निजी लाभ या व्यक्तिगत स्वार्थों से जुड़ा होगा तो हो-हल्ला होना भी लाजिमी है। जब इस प्रकार के विवादों से नाता रखने वाले प्रस्ताव पारित हुए तो जमीर की आवाज पर काम करने वाले कुछ जनप्रनिधियों के लिए यह सब सहन करना बर्दाश्त से बाहर हो गया। वे झगड़े पर उतारू हो गए। तोडफ़ोड़ करने लगे, लेकिन उनका ऐसा करना भी तो उचित नहीं है। लोकतंत्र में अपनी बात रखने के कई माध्यम हैं। लोकतांत्रिक एवं गांधीवादी तरीके से भी अपनी बात रखी जा सकती है। इस प्रकार के हथकंडे अपनाकर चर्चा में बना जा सकता है लेकिन लोकप्रिय नहीं। यह सब महज सस्ती लोकप्रियता हासिल करने से ज्यादा कुछ भी नहीं है। कानून हाथ में लेकर हाथापाई करना, तोड़फोड़ करना, सरकारी सम्पति को नुकसान पहुंचाना, सदन का कीमती समय जाया करना किसी भी कीमत पर उचित नहीं हैं। सदन की अपनी मर्यादा है, अपनी गरिमा हैं। उसकी मर्यादा एवं गरिमा का ख्याल रखना जनप्रतिनिधियों का फर्ज है, लेकिन भिलाई नगर निगम में मर्यादा एवं गरिमा को तार-तार करना जनप्रतिनिधियों का एक सूत्री कार्यक्रम हो गया। वाहवाही लूटने के लिए हंगामा करने का रिवाज सा बन गया है। जनप्रतिनिधियों द्वारा नैतिक दायित्य का निर्वहन करना तो बिलकुल बेमानी हो गया है। शांतिपूर्वक चर्चा करना तो वे अपनी शान के खिलाफ समझने लगे हैं।
बहरहाल, जनप्रतिनिधियों को यह तय करना लेना चाहिए कि उनके लिए शहर का विकास सर्वोपरि है। इसमें किसी तरह का राजनीति करना या हंगामा खड़ा करना उचित नहीं है। तात्कालिक या निजी लाभ के लिए जनहित से जुड़े मुद्‌दों को नजरअंदाज करना न्यायसंगत नहीं है। शहरहित एवं जनहित में राजनीति का हस्तक्षेप ना तो ही बेहतर है। सिर्फ विरोध के लिए विरोध करना भी सही नहीं है। उम्मीद की जानी चाहिए हमारे जनप्रतिनिधि पिछले सारे दुराग्रह व पूर्वाग्रह भुला कर विकास के मामलों में अपनी सक्रिय भूमिका निभाएंगे। अगर ऐसा नहीं कर पाए तो सिर-आंखों पर बैठाने वाली जनता दूसरा रास्ता भी दिखा सकती है, इतिहास गवाह है। जनप्रतिनिधियों को उससे कुछ सबक या सीख जरूरी लेना चाहिए।

साभार : पत्रिका भिलाई के 13 जुलाई 12  के अंक में प्रकाशित।

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