Friday, July 6, 2012

शुक्रिया... साथियो...

.बिलासपुर से आने के बाद...

मेहंदी रंग लाती है सूख जाने के बाद, और महोब्बत रंग लाती है दूर जाने के बाद। हो सकता है यह शेर आपने भी कहीं पढ़ा या लिखा हुआ देखा हो। मैंने तो यह शेर कई बार पढ़ा है। बचपन से लेकर कॉलेज लाइफ तक। यहां तक कि बसों के अंदर भी यह शेर कई जगह लिखा हुआ दिखाई दे जाता है। नब्बे के दशक में स्टीकर का दौर भी खूब चला। शेरो-शायरी के शौकीन उस वक्त इन स्टीकरों को खूब खरीदते थे। कोई किताब पर चिपकाता तो कोई साइकिल पर। मतलब यह था कि इन स्टीकर का क्रेज खूब था। दूर जाने की बात से ही शेर याद आ गया। बिलासपुर से तबादले की बात सुनकर सिर्फ अकेला रणधीर ही नहीं बल्कि कई साथी थे जो, उदास हो गए। कोई मेरे तबादले से खुश हुआ होगा मुझे नहीं लगता।
जिस दिन से मेरे तबादले की सूचना आई तो किसी ने फोन करके तो किसी ने एसएमस के माध्यम से हैरानी जताई। वैसे बिलासपुर में मेरे सहयोगियों के अपनेपन पर मुझे कभी कोई शक नहीं हुआ। लेकिन उनके दिल में मेरे प्रति कितनी जगह है, यह उनसे बिछड़ने के बाद ही पता चला। तबादले की सूचना के बाद मैसेज मिलने का सिलसिला अभी भी थमा नहीं है। फेसबुक पर भी जब मैंने बिलासपुर से विदाई कार्यक्रम का फोटो लगाया तो कई साथियों ने नई जगह जाने की शुभकामनाएं प्रेषित की। बिलासपुर के साथियों के अलावा शहर के एक-दो शुभचिंतकों ने भी मैसेज के माध्यम से अपनी बात कही। मेरे तबादले के आदेश 22 जून को ही आ गए थे। इस दिन मेरी शादी की आठवीं वर्षगांठ भी थी। आदेश की सूचना धीरे-धीरे सब जगह फैल गई।
सबसे पहले 23 जून को सीवी रमन विश्वविद्यालय के कुलसचिव श्री शैलेष पाण्डेय जी ने मैसेज किया कि ... सर, हम सब से प्यार और मोहमाया लगाव बढ़ाके आप दूर क्यों जा रहे हैं। अभी तो यह अच्छी शुरूआत हो रही थी। आपने जरा भी नहीं सोचा कि आपके अच्छे दोस्तों का क्या होगा। या हमसे नाराज होकर जा रहे हैं आप, आपके जाने की बात सुनकर अच्छा नहीं लगा सच में।
इसके बाद 26 जून को सिटी डेस्क पर कार्यरत छिंदवाड़ा के श्री प्रभाशंकर गिरी ने मैसेज किया....मिस यू सर। आपने बहुत कुछ सिखाया है जो पूरी लाइफ काम आएगा। थैंक्यू सर। मैसेज का सिलसिला थमा नहीं था। इसी दिन शाम को शहर के उत्साही एवं जागरूक युवा श्री पिनाल उपवेजा ने मैसेज किया....सर आपको, आपकी फेयरवेल की बधाई और बहुत शुभकामनाएं, नई यूनिट के लिए। आपका बिलासपुर के लिए किया गया कार्य हमेशा प्रशंसनीय और प्रेरणास्त्रोत रहेगा। इसी दिन कार्यालय में एक सादे समारोह में विदाई कार्यक्रम का आयोजन भी किया था। तबादले की बात सुनकर झुंझुनूं कार्यालय से पत्रिका के साथी श्री भगवान सहाय यादव ने भी बेस्ट ऑफ लक का मैसेज किया।
28 जून को बिलासपुर से भिलाई रवाना होने के दौरान मैंने एक मैसेज कम्पोज किया, उसमें लिखा कि.... एक साल के दौरान बिलासपुर में आप लोगों का जो सहयोग मिला, मैं उसका आभारी रहूंगा। यह मैसेज लिखकर मैंने कई लोगों को सेंड किया।इसके बाद रेलवे के पीआरओ श्री संतोष कुमार ने रिप्लाई देते हुए लिखा... आपका हर समय तहे दिल से स्वागत है और हमारा सहयोग हर समय रहेगा। इसके बाद पत्रकार साथी यशवंत गोहिल ने जवाबी मेसेज दिया कि...आपका स्नेहिल भावना के लिए आभार। आप सतत प्रगति के पथ पर बढ़ते रहे अशेष शुभकामनाएं। एक अन्य साथी योगेश्वर शर्मा जो कुछ समय के लिए पत्रिका बिलासपुर में मेरे साथ रहे, ने भी मैसेज का जवाब मैसेज से दिया। उन्होंने लिखा....दूरियां बढ़ने से रिश्ते नहीं मिटा करते। अपनो से बिछड़ के प्यार और भी गहरा हो जाता है। आपके सानिध्य में जो सीखने को मिला वह मेरे जीवन की बड़ी उपलब्धि है। मेरा विश्वास है कि आपका मार्गदर्शन मिलता रहेगा। इसके अलावा कई लोगों ने फोन के माध्यम से नई जगह की शुभकामना दी लेकिन इतनी जल्दी बिलासपुर छोड़ने के लिए अफसोस भी जाहिर किया।
इसके बाद तीन जुलाई को मैं भिलाई आ गया लेकिन बीच-बीच में मैसेज मिलते रहे। सीवी रमन के कुलसचिव पाण्डेय जी ने फिर मैसेज किया कि... खुदा की इबादत में वो एक दुआ हमारी होगी, जिसमें मांगी हर खुशी आपकी होगी। जब भी कोई दस्तक सुनाई दे दिल से, समझो वो प्यारी सी आहट हमारी होगी।
मेरा भतीजा सिद्धार्थ दिल्ली रहता है। वह हाल ही में गांव जाकर आया था। वहां पापा एवं मां ने मेरे तबादले पर चिंता जताई लेकिन भतीजे ने गांव से दिल्ली लौटने के बाद पांच जुलाई को मैसेज भेजा... आई विश के आप भिलाई में और नाम रोशन करेंगे। दादोसा (मेरे पापा) कह रहे थे कि हीरे को कहीं भी भेज दो वो तो चमकेगा ही.....। प्राउड ऑफ यू....।
छह जुलाई को बिलासपुर के साथी श्री नरेश भगोरिया जो मूलतः इटारसी के रहने वाले हैं और पत्रकारिता में मेरे से भी ज्यादा समय से सक्रिय हैं, ने ब्लॉग पर जब रणधीर से संबंधित लेख पढ़ा तो वे भी भावुक हो और उन्होंने भी अपनी भावनाएं मैसेज के माध्यम से मुझे प्रेषित की। उन्होंने लिखा...सर, निश्चित रूप से आपका साथ हम सब के लिए ताउम्र याद रहेगा। ऐसा माहौल तो कभी नहीं मिलेगा। और बहुत सी बातें हैं जो लिखी नहीं जाएंगी पर दिल में हमेशा रहेगी। बस इतना ही कहूंगा.... सेल्यूट टू यू बॉस....।
सच में एक साल में कितना जुड़ गया था मैं। इस बात का एहसास मुझे आज हो रहा है। अपने लोगों एवं अपने प्रदेश से बाहर मुझे बिलासपुर में सहयोगियों एवं शहरवासियों का जो सहयोग मिला मैं उसका आभारी हूं और रहूंगा। साथियों एवं शुभचिंतकों ने मुझमें जो विश्वास दिखाया, मुझे जो सहयोग एवं स्नेह दिया वह मेरी लिए किसी पूंजी से कम नहीं। मैं उसे ताउम्र सहेज कर रखूंगा। यह रिश्ता अब टूटेगा नहीं। सचमुच महोब्बत दूर जाने के बाद ही रंग लाती है। बचपन से सुनते आए इस शेर का मर्म अब समझ में आया। शुक्रिया.... साथियों...।

4 comments:

  1. उम्दा..अपने गाँव से बाहर भी अगर अपनापन मिले ,तो फिर क्या बात है..!!!

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  2. ब्लॉग पर आने तथा टिप्पणी करने के लिए शुक्रिया। वैसे मेरे साथ यह सुखद संयोग जुड़ा हुआ है कि अभी तक जहां भी रहा, वहां सहयोगियों का स्नेह, सहयोग एवं अपनत्व मिला है।

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  3. बिलकुल महेंद्र जी ...आपका तबादल जब झुंझुनू से हुआ था तो मुझे और मेरे कई साथियो को बहुत अजीब लगा था ..पत्रिका कार्यालय की वो गली ही सुनी सुनी सी लगती है आपके बिना ....आपकी काम के प्रति निष्ठां और ईमानदारी ने हम सबको आपका चहेता बना दिया ....आपके साथ उस भाव का रिश्ता बन गया जो ...उस भाव में जीने वाला ही बता सकता है ...एक बार पुन आपको शुभ कामनायें ..जल्दी ही झुंझूनू कार्यालय में आपकी प्रतीक्षा कर रहे हैं

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  4. ब्लॉग पर आने के लिए शुक्रिया। तरूण जी जैसा कि आपको पता ही है कि जिम्मेदारियां बढ़ जाने से अब झुंझुनूं कार्यालय में आना शायद संभव नहीं है। वैसे झुंझुनूं आना-जाना लगा रहेगा और आपसे सम्पर्क एवं संवाद भी लगातार बना रहेगा।

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