प्रसंगवश
भिलाई
में फोरलेन (राष्ट्रीय राजमार्ग-6) पर बने क्रासिंग पर सुरक्षा के कोई
इंतजाम नहीं हैं। आलम यह है कि भिलाई एरिया में 11 में से पांच क्रासिंग
नियमों को नजरअंदाज करके बनाए गए हैं। यह तो अकेले भिलाई एरिया की कहानी
है। फोरलेन में बहुत सी जगह ऐसी हैं, जहां नियमों एवं मापदण्डों को दरकिनार
कर इस प्रकार के क्रासिंग छोड़े गए हैं। सबसे बड़ी बात तो यह है कि
जनप्रतिनिधियों ने सस्ती लोकप्रियता पाने एवं वाहवाही बटोरने के चक्कर में
फोरलेन बनाने वाली कम्पनी पर दबाव डालकर नियम विरुद्ध क्रासिंग बनवा लिए।
निर्माता कंपनी ने भी बिना किसी ना नुकर के हाइवे में क्रासिंग इसलिए छोड़
दिए क्योंकि वह खुद भी कठघरे में है। शहर के बीचोबीच फोरलेन का निर्माण ही
सवालों के घेरे में है। देखा जाए तो फोरलेन हाइवे में कट पाइंट बनाने का
प्रावधान ही नहीं है। बावजूद इसके जनहित का हवाला देकर व दबाव बनाकर
जनप्रतिनिधियों ने तात्कालिक लाभ उठाते हुए मनमाफिक रास्ते (क्रासिंग)
खुलवा लिए। बढ़ते यातायात दबाव के कारण अब यही क्रासिंग जानलेवा साबित हो
रहे हैं, लेकिन यहां सुरक्षा के प्रबंध करने के नाम पर कोई भी तैयार नहीं
है। फोरलेन निर्माता कंपनी के नुमाइंदे, जनप्रतिनिधि व यातायात पुलिस के
अधिकारी इसकी टोपी, उसके सिर पर की तर्ज पर बयान देकर जिम्मेदारी से मुंह
मोड़ रहे हैं। फोरलेन निर्माता कंपनी का कहना है कि बढ़ते हादसों के पीछे
सबसे बड़ा कारण लोगों में जागरुकता का अभाव होना है। किसी हद तक यह बात सही
भी है लेकिन बिना भय के कानून की पालना संभव नहीं है। अकेली जागरुकता के
भरोसे के यातायात नियंत्रित नहीं किया जा सकता है। गौर करने वाली बात तो यह
है कि फोरलेन पर दो क्रासिंग तो पुलिस थानों के ठीक सामने बने हैं। यानि
कानून की पालना करवाने वालों की आंखों के सामने ही कानून की धज्जियां उड़
रही हैं। सोचनीय विषय है कि किसी वीआईपी के आगमन के दौरान इन क्रासिंग पर
यातायात पुलिस के जवान बड़ी मुस्तैदी के साथ ड्यूटी बजाते नजर आते हैं
लेकिन आमजन की सुरक्षा के नाम पर उनके पास बगले झांकने के अलावा कोई जवाब
नहीं है।
बहरहाल, सभी को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। समय की नजाकत
को देखते हुए फोरलेन कंपनी को जहां जरूरत है, वहां सूचना पट्ट, ब्लींकर या
सिग्नल लगाने चाहिए। क्रासिंग पर बढ़ते यातायात दबाव को देखते हुए यातायात
पुलिसकर्मियों की तैनाती भी बेहद जरूरी है। सबसे बड़ी जिम्मेदारी तो उन
जनप्रतिनिधियों की है, जो खुद को बचाने के चक्कर में जिम्मेदारी यातायात
पुलिस एवं फोरलेन निर्माता कंपनी की बता रहे हैं। आखिर नियम विरुद्ध काम
करवाने की बुनियाद तो जनप्रतिनिधियों ने ही रखी है। ऐसे में जान माल की
सुरक्षा कैसे हो, यह भी तो उनको ही तय करना चाहिए।
साभार : पत्रिका छत्तीसगढ़ के 11 अगस्त 12 के अंक में प्रकाशित।
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