टिप्पणी
नागपुर-रायपुर फोरलेन हाइवे में नियमों को दरकिनार कर सुपेला थाने के पास डिवाइडर को काटकर बनाया गया रास्ता अब लोगों को राहत कम परेशानी ज्यादा दे रहा है। चौराहे पर यातायात का दबाव सुबह से लेकर देर रात तक लगातार बना रहता है। हाइवे के दाएं-बाएं स्थित राधिका नगर व प्रियदर्शनी के अलावा सेक्टर एरिया के दुपहिया वाहन चालक भी शॉर्टकट के चक्कर में इसी चौराहे का उपयोग करते हैं। बहुत से स्कूली बच्चे भी जान जोखिम में डालकर रोज इधर से उधर एवं उधर से इधर आते हैं। यहां से गुजरने वाले वाहनों की रफ्तार पर न तो कोई अंकुश है और ना ही कोई डर। वे बेखौफ व बेलगाम होकर यहां से गुजरते हैं और अक्सर बेकाबू होकर हादसों का सबब बन जाते हैं। इतना कुछ होने के बाद भी इस चौराहे पर न तो कोई सिग्नल लगा है और ना ही यातायात पुलिस के किसी जवान की ड्यूटी लगती है। लब्बोलुआब यह है कि यहां सब कुछ स्वयं स्फूर्त एवं भगवान भरोसे ही है। तभी तो यहां एक भी दिन ऐसा नहीं बीतता जब कोई हादसा नहीं होता हो। बुधवार दोप हर बाद हुआ हादसा भी तेज रफ्तार का नतीजा था। पहले निकलने की होड़ में दोनों वाहन टकरा गए। गनीमत यह रही कि हादसे में कोई जन हानि नहीं हुई। देखा जाए तो इस प्रकार के नियम विरुद्ध कामों का तात्कालिक लाभ जरूर हो सकता है लेकिन दूरगामी परिणाम हमेशा प्रतिकूल ही रहे हैं। जब यहां रास्ता छोड़ना इतना ही जरूरी था तो यहां से गुजरने वालों की जानमाल की सुरक्षा का ख्याल तो जेहन में सबसे पहले आना चाहिए था। आखिर जिनके लिए रास्ता छोड़ा जा रहा है, उनकी ही जान हथेली पर रहे तो फिर इस प्रकार के काम से फायदा भी क्या।
नागपुर-रायपुर फोरलेन हाइवे में नियमों को दरकिनार कर सुपेला थाने के पास डिवाइडर को काटकर बनाया गया रास्ता अब लोगों को राहत कम परेशानी ज्यादा दे रहा है। चौराहे पर यातायात का दबाव सुबह से लेकर देर रात तक लगातार बना रहता है। हाइवे के दाएं-बाएं स्थित राधिका नगर व प्रियदर्शनी के अलावा सेक्टर एरिया के दुपहिया वाहन चालक भी शॉर्टकट के चक्कर में इसी चौराहे का उपयोग करते हैं। बहुत से स्कूली बच्चे भी जान जोखिम में डालकर रोज इधर से उधर एवं उधर से इधर आते हैं। यहां से गुजरने वाले वाहनों की रफ्तार पर न तो कोई अंकुश है और ना ही कोई डर। वे बेखौफ व बेलगाम होकर यहां से गुजरते हैं और अक्सर बेकाबू होकर हादसों का सबब बन जाते हैं। इतना कुछ होने के बाद भी इस चौराहे पर न तो कोई सिग्नल लगा है और ना ही यातायात पुलिस के किसी जवान की ड्यूटी लगती है। लब्बोलुआब यह है कि यहां सब कुछ स्वयं स्फूर्त एवं भगवान भरोसे ही है। तभी तो यहां एक भी दिन ऐसा नहीं बीतता जब कोई हादसा नहीं होता हो। बुधवार दोप हर बाद हुआ हादसा भी तेज रफ्तार का नतीजा था। पहले निकलने की होड़ में दोनों वाहन टकरा गए। गनीमत यह रही कि हादसे में कोई जन हानि नहीं हुई। देखा जाए तो इस प्रकार के नियम विरुद्ध कामों का तात्कालिक लाभ जरूर हो सकता है लेकिन दूरगामी परिणाम हमेशा प्रतिकूल ही रहे हैं। जब यहां रास्ता छोड़ना इतना ही जरूरी था तो यहां से गुजरने वालों की जानमाल की सुरक्षा का ख्याल तो जेहन में सबसे पहले आना चाहिए था। आखिर जिनके लिए रास्ता छोड़ा जा रहा है, उनकी ही जान हथेली पर रहे तो फिर इस प्रकार के काम से फायदा भी क्या।
बहरहाल, हाइवे के
आजू-बाजू दुर्घटना से देरी भली। सावधानी हटी, दुर्घटना घटी। रफ्तार का मजा,
अस्पताल की सजा। गाड़ी धीरे चलाएं, घर पर कोई आपका इंतजार कर रहा है।
जिन्हे जल्दी थी वे चले गए। आदि स्लोगन लिख भर देने से जागरुकता नहीं आएगी।
जरूरी है कि नियमों की पालना कड़ाई से करवाई जाए। दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे
यातायात के दवाब से इतना तो तय है कि इस समस्या का स्थायी हल खोजना अब बेहद
जरूरी हो गया है। हल भी तभी संभव है, जब पीछे की भूलों में सुधार हो। भले
ही वह यहां सिग्नल लगाकर या किसी यातायात पुलिसकर्मी की तैनाती के रूप में
भी हो सकता है, लेकिन यह सब करना अब जरूरी है। पीछे की इस भूल में अब सुधार
नहीं किया तो कालांतर में यह किसी बड़े हादसे की वजह भी बन सकती है। समस्या
का हल जनभावना के अनुकूल हो तो फिर कहना ही क्या।
साभार : पत्रिका भिलाई के 9 अगस्त 12 के अंक में प्रकाशित।
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