शेरो शायरी का शौक तो बचपन से ही रहा है। आज
कविता लिखने की सोची। संयोग देखिए शुरुआत आदमी से हुई। अति व्यस्तता के बीच
कल्पना के घोड़े दौड़ाना वैसे बड़ा मुश्किल काम है। फिर भी तुकबंदी के
सहारे कुछ तो लिखने में सफल हो गया। कभी फुर्सत मिली तो और लिखूंगा। फिलहाल तो इतना ही...
आदमी
आदमी,
आज का आदमी,
अपनों से कट गया है,
जाति में बंट गया है,
भूल सब रिश्ते-नाते,
खुद में सिमट गया है।
आदमी
आदमी,
आज का आदमी,
अपनों से कट गया है,
जाति में बंट गया है,
भूल सब रिश्ते-नाते,
खुद में सिमट गया है।
आदमी,
आज का आदमी।
दर्प से चूर हुआ है,
फिर भी मजबूर हुआ है,
भरी भीड़ में देखो,
अपनों से दूर हुआ है।
आदमी
आज का आदमी।
आज का आदमी।
दर्प से चूर हुआ है,
फिर भी मजबूर हुआ है,
भरी भीड़ में देखो,
अपनों से दूर हुआ है।
आदमी
आज का आदमी।
No comments:
Post a Comment