Sunday, December 16, 2012

दिन


दिन,
आज भी
उसी अंदाज में
निकला,
और
ढल गया।
रोज ही तो
ऐसा होता है।

बस लोगों का
नजरिया,
अलग है।
किसी ने
सुबह को सर्द
तो किसी ने
सुहानी कहा।
और धूप
उसको भी
कहीं गुनगुनी तो
कहीं चटख
नाम से
पुकारा गया।
दिन ढला
उसे भी
सुहानी शाम,
सिंदूरी शाम,
नाम दे
दिया, गया
दिन,
रोज ही
तो ऐसे
निकलता है,
वह कहां
बदलता है,
मौसम
बदलता है
आदमी
बदलता है
लेकिन दिन तो
दिन ही
रहता है
सदा,
वह बदलता
नहीं
बस नजरिया
बदल जाता है।
और हां,
तारीख बदलती है
माह बदलता है
साल बदल जाते हैं
लेकिन दिन तो
दिन ही
रहता है
हां हमने दिन
का नामकरण
कर दिया है
हर साल
उसको
उसी नाम से
पुकारते हैं
लेकिन
दिन तो दिन ही
रहता है,
बदलता नहीं।

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