Tuesday, December 31, 2013

जग के नहीं, 'पैसों' के नाथ

पुरी से लौटकर-4
 
नहाऊं या नहीं मैं इसी ऊहापोह में ही था कि धर्मपत्नी खुद को रोक नहीं पाई और चुपके से बच्चों के साथ जाकर नहाने लगी। मैंने कैमरा थामा और लगा फोटो खींचने। वैसे बीच पर बड़ी संख्या में फोटोग्राफर भी थे, जो आपको आकर्षक फोटो दिखाकर वैसी ही फोटो खींच देने का भरोसा दिलाते हैं। मेरे पास भी कई बार फोटोग्राफर आए लेकिन मैंने उनकी बात पर गौर नहीं किया। उन्होंने कोशिश भी बहुत की। कहने लगे, अरे सर, हमको लेने दीजिए ना.. देखिएगा कैसा मस्त एंगल आता है। आप हमारे जैसी फोटो नहीं खींच पाओगे। मैंने उनको साफ-साफ कह दिया कि जैसे भी आए मैं ही खींच लूंगा। वैसे बीच पर दो तरह के फोटोग्राफर मौजूद रहते हैं। एक वे जो खुद के कैमरे से फोटो खींच कर उसको डवलप करवा कर आपको देते हैं। कुछ ऐसे भी हैं जो केवल एंगल व लोकेशन के नाम पर बेवकूफ बनाते हैं। उन फोटोग्राफर के पास खुद कैमरा तो होता ही है लेकिन सस्ते के चक्कर में उन्होंने एक रास्ता निकाल रखा है, वे आपके कैमरे से ही आपकी फोटो खींच देंगे, लेकिन एक क्लिक करने के नाम पर ही पांच रुपए ले लेते हैं। बीच पर ऊंट वालों का धंधा भी जबरदस्त चलता है। सजे-धजे ऊंटो पर पर्यटकों को बैठाकर बीच के चक्कर लगवाए जाते हैं। ऊंट पर बैठाने और नीचे उतारने का तरीका परम्परागत नहीं है, क्योंकि उसमें समय लगता है। इस कारण ऊंट वाले एक सीढ़ी अपने साथ रखते हैं। उसी के माध्यम से पर्यटकों की ऊंट की पीठ पर बैठाया जाता है और नीचे उतारा जाता है। एक दो बार ऊंट वाला मेरे पास भी आया लेकिन मैंने उसको मना कर दिया। अकेला करता भी क्या..। ऊंट पर बैठकर.। बच्चे एवं धर्मपत्नी तो नहाने में और मस्ती करने में ही तल्लीन थे। बंगाल की खाड़ी की किनारे पर मछुआरों की सैकड़ों की संख्या में नाव खड़ी थी। लगभग इतनी ही नाव समुन्द्र के अंदर थी। पुरी में मछलियां पकडऩे का काम बड़े पैमाने पर होता है। टीले पर लगी चाय की दुकानों पर भी काफी भीड़ रहती है। विदेशी पर्यटक तो धूप में लेटे हुए थे। वहीं कुछ छतरी के नीचे कुर्सी लगाकर नजारा देख रहे थे। बीच-बीच में जाकर डूबकी लगा आते और फिर बैठ जाते। समुद्र की किनारे ही मोतियों एवं सीप की मालाएं बेचने वाले भी बड़ी संख्या में घूमते हैं। मोती-मूंगा आदि की अंगुठिया भी दिखाते हैं। मेरे पास भी कई आए लेकिन मैं माला, बाली, अंगूठी आदि पहनता ही नहीं हूं। शादी में ससुर जी ने जो सोने की अंगूठी और चेन दी थी तो वो भी धर्मपत्नी को दे चुका, शौक ही नहीं हैं। खैर, बीच का नजारा आपको बोर नहीं करता है। एक बार आप वहां गए तो फिर हटने को मन ही नहीं करता। ऐसा लगता है कि बस यहीं के होकर रह जाएं लेकिन वक्त ऐसा करने की इजाजत नहीं देता। खैर, सूर्यास्त होने को था। मैं भी ज्यादा देर तक खुद को रोक नहीं पाया और बच्चों के साथ नहाने लगा। खूब देर तक नहाते रहे। डूबकी लगाते वक्त पानी कई बार मुंह में गया। इतना कड़ा और खारा पानी है कि मुंह का जायका तक बिगाड़ देता है।..... जारी है।

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