Thursday, February 27, 2014

खुशियां मनाओ, झूमो और गाओ.!


बस यूं ही

यह हम सब के लिए खुशी का दिन है। जश्न मनाने का दिन है। ढोल बजाकर नाचने और झूमने का दिन है। मिठाई बांटकर खुशी का इजहार करने का दिन है। एक दूसरे के गले मिलकर बधाई देने का दिन है। यकीन कीजिए यह बहुत बड़ा दिन है। देश के लिए यह एक बड़ी उपलब्धि वाला दिन है। देश की गंभीर एवं विकट समस्या को हल करने का रास्ता खोजने का दिन है। ऐतिहासिक, अविस्मरणीय व अविश्वसनीय दिन है। यह जागती आंखों से सपने देखने का दिन है। यह एक तरह का कमाल है, एक तरह का प्रयोग है, जो हाल में खोजा गया है, हालांकि शुरुआत तो दो तीन साल पहले ही हो गई थी लेकिन सफलता की कसौटी पर खरा यह अब जाकर उतरा है। अब, दिमाग के घोड़े मत दौडा़ओ...।
दरअसल, खुशी इस बात की है कि हमारे देश से गरीबी खत्म हो रही है। इतनी तेज रफ्तार से गरीबी उन्मूलन हो रहा है कि दुनिया की तमाम तरह की रफ्तारें इस रफ्तार के आगे पानी भर रही हैं। आजादी से लेकर बड़े-बड़े धुरंधर जो काम नहीं कर पाए वो काम अब क्रिकेट के ट्वंटी-ट्वंटी मैच की तर्ज पर हो रहा है। वैसे गरीबी ने कई लोगों का भविष्य बनाया। उनकी जिंदगी संवार दी। गरीबी हटाओ के नारे से न जाने कितनी ही नेताओ की डूबती नैया पार लगी। न जाने कितनों ने ही इसके सहारे सफलता की सीढ़ी चढ़कर सत्ता का सुख भोगा। गरीबी मिटाने के नाम पर न जाने कितनों ने अपनी जेबें भरी। खूब माल बटोरा। इतने करने के बाद भी गरीबी कम नहीं हुई है। जनसंख्या बढऩे के साथ गरीबी भी बढ़ती गई। शायद इसीलिए भी कि अगर गरीबी खत्म कर दी गई तो कोई बड़ा मुद्दा बचेगा ही नहीं। खैर, हमारे नेताओं को अब सदबुद्धि आ गई है। लगता है उन्होंने यह मुद्दा खत्म करने का मानस बना ही लिया है। नेताओं को लगने लगा है कि अब जनता जाग गई है। गरीबी के नाम पर ज्यादा दिन तक उसको बेवकूफ नहीं बनाया जा सकता है, इसलिए गरीबी का खात्मा जरूरी हो गया है।
जमाना हाइटेक है, सूचना एवं प्रौद्योगिकी का है, लिहाजा गरीबी उन्मूलन भी उसी तर्ज पर हो रहा है। वैसे बचपन में एक कहावत सुनी थी कि बड़ी लकीर को अगर छोटा करना है तो उसके पास उससे भी बड़ी एक लकीर खींच दो.. पहले वाली लकीर अपने आप छोटी हो जाएगी। देश से गरीबी भी कुछ इसी अंदाज में खत्म की जा रही है। नेताओं ने गरीबी का पैमाना ही बदल दिया है। इससे गरीब अपने आप ही कम हो रहे हैं। अब देखिए ना सन 2011 में योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया ने कहा था कि प्रतिदिन 32 रुपए कमाने वाला शहरी और 23 रुपए कमाने वाला ग्रामीण गरीब नहीं है। गौर करने वाली बात यह है कि उस वक्त इस बात का विरोध करने वाली भाजपा ने भी अब कमोबेश वैसा ही रास्ता अख्तियार कर लिया है। गुजरात सरकार ने खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग को हाल ही में जारी किए गए एक पत्र में कहा है कि हर माह 324 रुपए कमाने वाले ग्रामीण और 501 रुपए कमाने वाले शहरी को गरीबी रेखा से ऊपर रखा जा सकता है। पिछले माह जारी किए गए इस पत्र के मुताबिक ग्रामीण की रोज की आय 11 रुपए और शहरी व्यक्ति की प्रतिदिन आय 17के करीब रुपए होती है।
अब, नए तरीके से देश से गरीबी खत्म हो रही है तो कई तरह की प्रतिक्रियाएं भी आना लाजिमी है। इसलिए जो गरीबी हटाने के समर्थन में हैं वे चुप रहे। और जिनको हमारे नेताओं का यह तरीका नागवार गुजरा हो तो कृपा करके वे इससे बेहतर कोई दूसरा नायाब तरीका बताएंगे तो मेहरबानी होगी। वरना, आप भी गरीबी कम होने का जश्न मनाओ।

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