Saturday, June 2, 2018

इक बंजारा गाए-33


पानी पर घमासान
जबसे नहरों में प्रदूषित पानी आया है तब से श्रीगंगानगर के सियासी हलके में जबरदस्त उबाल आया हुआ है। उबाल इतना कि ठाले बैठे छुटभैयों को भी जोरदार मुद्दा हाथ लग गया है। हालत यह है कि कोई दिल्ली जा रहा है तो कोई जयपुर। कोई मंत्री से मुलाकात कर रहा है तो कोई मुख्यमंत्री से। कोई प्रदेश के बड़े अधिकारियों मिल रहा है तो विरोध प्रदर्शन। और इन सब मेल मुलाकातों व बातों की बकायदा डुगडुगी भी पीटी जा रही है। पानी फिलहाल सबको मुफीद मुद्दा लग रहा है। कई तो पानी के सहारे विधानसभा तक पहुंचने के जागती आंखों से सपना तक देखने लगे हैं। वैसे पानी को लेकर श्रेय की लड़ाई भी शुरू हो चुकी है। संभव है यह लड़ाई आगे चलकर बड़ी हो जाए। हालांकि इस मामले में सभी से एकजुट होने की अपील तो की जा रही है लेकिन अंदरखाने एकजुट कोई है नहीं। इस कथित एकजुटता में सबसे बड़ी बाधा तो पंजाब व केन्द्र में अलग-अलग दलों की सरकार होना भी है। वैसे दिल्ली में बैठने वाले इलाके के दोनों नेताओं के समर्थक भी इस मामले में एकमत नहीं हैं।
हरकत में आई खाकी
शहर में एक हिस्ट्रीशीटर की सरेआम हत्या के बाद खाकी अचानक हरकत में आ गई है। ताबड़तोड़ छापेमारी और सघन जांच अभियान चल रहे हैं। अपराधियों के छिपे होने के संभावित ठिकानों पर टीमें बनाकर भेजी जा रही हैं। पुलिस के आला अधिकारियों के दौरे हो रहे हैं। बैठकों के माध्यम से सामूहिक रणनीति बन रही है। इतना कुछ होने के बावजूद फिलहाल खाकी के हाथ कुछ नहीं लगा है। खैर, उम्मीद की जानी चाहिए देर सबेर आरोपी पकड़े जाएंगे लेकिन खाकी की अति सक्रियता ने यह जरूर साबित कर दिया है कि वह हरकत में तभी आती है तब कोई बड़ा मामला हो जाता है। वैसे भी खाकी का रोजाना यही अंदाज कायम रहे तो न तो अपराध पनपे और न ही अपराधियों का इस तरह दुस्साहस बढ़े। अपराध बढऩे के पीछे भी कहीं न कहीं खाकी की कमजेारी ही है तो है। वैसे इस हत्याकांड की जांच एसओजी को सौंपने के पीछे भी कहीं न कहीं बड़ा राज बताया जा रहा है। भले ही पुलिस यह सब गुत्थी जल्दी सुलझाने की कहकर अपना पक्ष रखे लेकिन पर्दे की पीछे कुछ तो है जिसने पुलिस की बजाय एसओजी पर विश्वास करने पर मजबूर किया।
कार्रवाई पर सवाल
यातायात पुलिस की कार्रवाई पर अक्सर टीका टिप्पणी होती ही रहती है। वैसे श्रीगंगानगर में यातायात पुलिस के रंग-ढंग देखकर टिप्पणी करना गलत भी नहीं लगता है। यातायात पुलिस शहर के बाकी स्थानों पर तो केवल दुपहिया वाहनों को ही रुकवाती है। जांच करती है और कोई कमी पाए जाने पर चालान आदि भी करती है। इसके अलावा गोल बाजार में तो यातायात पुलिस का एकसूत्रीय कार्यक्रम चौपहिया वाहनों को क्रेन से उठाना और जुर्माना वसूलना है। इन सबके बावजूद व्यवस्था में कहीं सुधार दिखाई नहीं देता है। हेलमेट तो लगभग हर सिर से गायब है। इसके अलावा कई नाबालिग दुपहिया वाहन फर्राटे से दौड़ते हुए दिखाई दे जाएंगे। इतना ही नहीं मोटरसाइकिल से पटाखे चलाने के उदाहरण तो लगभग हर गली में रोजाना देखने को मिल जाते हैं। इसके बावजूद इन पर अंकुश नहीं है। वैसे यातायात पुलिस की कार्रवाई पर सवाल उठाने वाले तो यहां तक कहते हैं कि पुलिस टेंपो पर तो कभी कार्रवाई करती ही नहीं है। कुछ खास वाहनों पर कार्रवाई करने तथा कुछ पर नजरें इनायत करने से सवाल तो उठेंगे ही।
गफलत ही गफलत
श्रीगंगानगर की यूआईटी के कुछ काम तो अंधा पीसे कुत्ता खाय वाली कहावत को चरितार्थ करते हैं। पता नहीं यूआईटी के अधिकारी किस गफलत में है जो इस तरह के निर्णय या फैसले लेते हैं। शिव चौक से जिला अस्पताल तक सड़क चौड़ी और कथित सौन्दर्यीकरण का अधूरा काम तो लोगों को रोज रूला रहा है। सिर्फ अतिक्रमण करके व्यापार करने या गलत पार्किंग करने वालों को छोड़कर ऐसा कोई नहीं होगा जो यूआईटी को इस काम के लिए पानी पी पी कर नहीं कोसता होगा। एक माह से अधिक समय हो गया है यह काम अधूरा पड़ा है। न यूआईटी जाग रही है न जिला प्रशासन कोई एक्शन ले रहा है। ऐसा लगता है विभागों ने जनसरोकार से मुंह मोड़ लिया है। गफलत की एक और बानगी देखिए यूआईटी ने शुगर मिल की जमीन को बेचने को विज्ञप्ति तो जारी की। यह विज्ञप्ति व्यावसायिक व आवासीय भूख्ंाडों की बिक्री को लेकर थी, लेकिन इसमें भूखंडो की रेट नहीं बताए गए। आखिर जल्द ही यूआईटी के जिम्मेदारों को गलती का एहसास हुआ और बैठक फिर से बुलाकर भूखंडों की रेट निर्धारित की है। इसी तरह का मामला नए चौकों के नामकरण का है। अभी चौक बने ही नहीं हैं और उनका नामकरण भी कर दिया।

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