Thursday, February 14, 2019

प्रभाव की पत्रकारिता विश्वसनीय नहीं

बस यूं ही
दबाव या प्रभाव में आकर पत्रकारिता अपनी विश्वसनीयता खो देती है। इसलिए बिना किसी प्रभाव या दबाव के अपना कर्म करते रहना चाहिए। यह बात हमेशा से ही की जाती है। करीब 19 साल पहले भोपाल में पत्रकारिता का ककहरा सीखने के दौरान भी कुछ इसी तरह की नसीहत मिली थी। तब बताया गया था कि पत्रकार को चार 'पी' से बचना चाहिए।
1. पैसा 2. प्रशंसा 3. पुष्प और 4. पद अर्थात इन चारों में किसी में पत्रकार भागीदार है तो फिर वह खबर के साथ न्याय नहीं कर पाएगा। पत्रकार को पूर्वाग्रह, दुराग्रह या किसी तरह के आग्रह से खुद को बचाकर रखना चाहिए। पत्रकार छत्रपति हत्याकांड का फैसला सुनाते हुए जज जगदीपसिंह ने जो कहा, वह भी तो कुछ एेसा ही है। उन्होंने कहा 'जर्नलिज्म एक सीरियस बिजनेस है जो सच्चाई को रिपोर्ट करने की इच्छा को सुलगाता है। इस नौकरी में थोड़ी बहुत चकाचौंध तो है लेकिन कोई बड़ा इनाम पाने की गुंजाइश नहीं है। पारंपरिक अंदाज में इसे समाज के प्रति सेवा का सच्चा भाव भी कहा जा सकता है। किसी भी ईमानदार और समर्पित पत्रकार के लिए सच को रिपोर्ट करना बेहद मुश्किल काम है। खास तौर पर किसी एेसे असरदार व्यक्ति के खिलाफ लिखना और भी कठिन काम हो जाता है जब उसे किसी राजनीतिक पार्टी से ऊपर उठकर राजनीतिक संरक्षण हासिल हो। यह देखने में भी आया है कि पत्रकार को ऑफर किया जाता है कि वह प्रभाव में आकर काम करे अन्यथा अपने लिए परेशानी या सजा चुन ले। जो प्रभाव में नहीं आते उन्हें इसके नतीजे भुगतने पड़ते हैं, जो कभी कभी जानर देकर चुकाने पड़ते हैं। यदि वह (पत्रकार) प्रभाव में आ जाता है तो अपनी विश्वसनीय खो देता है। अगर प्रभाव में आने से इनकार करता है तो जान से जाता है। इस तरह यह अच्छाई और बुराई के बीच की लड़ाई है। मौजूदा मामले में भी यही हुआ कि एक ईमानदार पत्रकार ने प्रभावशाली डेरा मुखी और उसकी गतिविधियों के बारे में लिखा और उसे जान गंवानी पड़ी। डेमोक्रेसी में भीड़ का रूप धारण कर किसी भी निर्दोष के खिलाफ हिंसा की अनुमति नहीं है। डेमोक्रेसी के पिलर को इस तरह ध्वस्त करने की इजाजत नहीं दी जा सकती।'
खैर, इस पेशे में पथ से विचलित करने की कोशिश बहुत होती हैं। यह कोशिशें सिर्फ वित्तीय ही नहीं होती हैं। इसके कई रूप हैं। गिरावट हर क्षेत्र में आई है, पत्रकारिता भी इससे अछूती नहीं है लेकिन गाहे-बगाहे पत्रकारिता को बिकाऊ कहने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि इस पेशे में रामचंद्र छत्रपति जैसे पत्रकार भी हैं जो जान की परवाह किए बिना सच कहने का साहस रखते हैं।

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