Thursday, February 14, 2019

हे पिता! तू तो जीवन है..

टिप्पणी
अगर पिता जीवन है तो फिर वह प्राणों का प्यासा क्यों बन जाता है? अगर पिता सृष्टि के निर्माण की अभिव्यक्ति है तो फिर वह सृष्टि के अनमोल तोहफे को मिटाने पर आमादा क्यों हो जाता है? अगर पिता अंगुली पकड़े बच्चे का सहारा है तो फिर वह जान का दुश्मन क्यों बन जाता है? अगर पिता छोटे से परिंदे का बड़ा आसमान है तो फिर वह उस परिंदे का उडऩे से पहले ही गला क्यों घोट देता है? अगर पिता से ही बच्चों के ढेर सारे सपने हैं तो फिर इन सपनों को तोड़ क्यों देता है? अगर पिता सुरक्षा है, सिर पर हाथ है तो फिर वह इतना क्रूर क्यों बन जाता है? अगर पिता रोटी है, कपड़ा है, मकान है तो फिर इतना निर्दयी व निष्ठुर क्यों हो जाता है? श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले में शनिवार को एेसी दो घटनाएं हुई जो सोचने पर मजबूर करती हैं। श्रीगंगानगर के रायसिंहनगर उपखंड के एक गांव में पिता अपने एक साल के मासूम की गला घोट कर जान ले लेता है जबकि खुद जहर पी लेता है। उधर हनुमानगढ़ जिले के टिब्बी क्षेत्र में एक पिता अपने दस साल के बेटे को सीने से लगाकर नहर में कूद जाता है लेकिन मासूम खुशकिस्मत है कि बच जाता है लेकिन पिता की मृत्यु हो जाती है। जान देने/ लेने जैसा कदम उठाने के पीछे कारण भी कोई बड़े नहीं हैं। एक का अपनी पत्नी से विवाद था तो दूसरा आर्थिक तंगी के चलते टूट गया।
दरअसल, श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले में बात-बात पर जान लेने या देने की घटनाएं इतनी होने लगी हैं कि यह अब सामान्य लगने लगी हैं। यह घटनाएं यहां न तो डराती हैं न ही चौंकाती हैं, लेकिन सोचने पर मजबूर जरूर करती हैं। आखिर लोगों में सहनशीलता खत्म क्यों रही है और इसकी वजह क्या है? विश्वास लगातार क्यों कम हो रहा है? जरा-जरा सी बातों पर उग्र होकर आवेश में आकर जान देना/ लेना ही क्या अंतिम उपाय है? बिना जान दिए/ लिए बिना क्या किसी समस्या का समाधान संभव नहीं? जीवन अनमोल है फिर भी इसकी कीमत क्यों नहीं समझी नहीं जा रही है? हादसे होने के बाद सिर्फ पछतावा ही शेष रहता है। किसी एक की गलती का दंश शेष रहा पूरा परिवार झेलता है। सोचिए आर्थिक तंगी से जान देने वाले उस शख्स के परिवार पर अब क्या बीत रही होगी? कल्पना कीजिए एक साल के मासूम के जाने के बाद उस मां का हाल क्या होगा?
खैर, आर्थिक तंगी, अवैध रिश्ते, एक दूसरे पर विश्वास की कमी, छोटे मोटे विवाद इन बड़े हादसों की वजह ज्यादा बनते हैं। ठंडे दिमाग से सोचा जाए तो इन सबका समाधान है। इस तरह के हादसे मानवीय मूल्यों को कमजोर करते हैं। जान की कीमत कभी समाधान नहीं हो सकती। जीवन की महत्ता समझनी चाहिए। हालात का हवाला देकर जीवन से हारना नहीं चाहिए। जीवन एक संघर्ष है। इस संघर्ष से डरना कैसा? वैसे भी डर के आगे ही तो जीत है। माता-पिता तो सृष्टि के सर्जक हैं, फिर भी सृष्टि के विपरीत धारा में क्यों बहने लगते हैं? माता पिता पर लिखी गई कवि ओम व्यास 'ओम; की कविता की यह पक्तियां मौजूं हैं..
'मां संवेदना है, भावना है, अहसास है मां
मां जीवन के फूलों में खुशबू का वास है मां,;
'पिता जीवन है, संबल है, शक्ति है
पिता सृष्टि के निर्माण की अभिव्यक्ति है।'

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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 20 जनवरी 19 के अंक में प्रकाशित।

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