Thursday, July 2, 2020

मुआ कोरोना-3

बस यूं ही
अब देखिए ना मांगलिक कार्यों का मौसम भी चुपचाप ही बीत रहा है। भला ऐसी खामोशी से भरी आखातीज कभी किसी ने देखी है। कहीं कोई धूम धड़ाका नहीं है। शादियां बिना डीजे और नाचगान के संपन्न होने लगी हैं। अब कहीं न तो, मेरा यार बना है दूल्हा वाला गाना सुनाई दे रहा है और ना ही, आए हम बाराती बारात लेकर वाले गाने पर थिरकने वाले। एक तरह से बारातियों का लवाजमा गायब है। आतिशबाजी-पटाखो के बारे में तो सोचना ही गुनाह हो गया है। डीजे बजने को लेकर होने वाले झगड़े बंद हो चुके हैं। देर रात तक डीजे बजने की शिकायतें भी पुलिस थाने में कम आने लगी हैं। हां इस बात से संतोष किया जा सकता है कि आखातीज के अबूझ सावे पर बालविवाह जैसी कुरीति का उन्मूलन कोरोना से ही संभव हुआ। इधर, शुभ मुहुर्त निकलवाने का काम तो एक तरह से ठप ही पड़ा है। सीधी सी बात है जब मांगलिक कार्य ही नहीं तो फिर काहे का मुहुर्त और कैसा मुहुर्त। इससे ठीक उलट राशिफल, पंचांग व ज्योतिष पर तो कई तरह के जुमले बनने लगे हैं। कल ही सोशल मीडिया पर वायरल इस मैसेज पर गौर फरमाएं, 'इस साल तो सारे ही राशिफल गड़बड़ा गए हैं, जिनकी सुखद लंबी यात्रा का योग था, वो अस्पताल में टांग ऊंची करके पड़े हैं और जिन हाथों में हल्दी लगने के प्रबल योग बताए जा रहे थे, उनमें अब साबुन और सेनेटाइजर लग रहे हैं। और तो और जो ख्वाब देख रहे थे कि फलाने की शादी में नाचेंगे, वो सब अपने घर में झाडू पौंचा लगा रहे हैं।' खैर, जुमले और चुटकुले बनने का काम तो अब और ज्यादा परवान पर है। टिकटॉक, लायकी, हैलो, विगो जैसे कई एप्स ने अचानक से अभिनय के नए द्वार खोल गए हैं। देश में नवांगतुक अभिनेता व अभिनेत्रियों की बाढ़ सी आ गई है। फिर भी इस मनोरंजन में कहीं न कहीं जीवन दर्शन भी छिपा है। वाकई कोरोना ने लोगों को 'क्या लेकर आए थे' वाला गीता ज्ञान का ठीक तरह से भान करवा दिया है। जी हां वो ही गीता का ज्ञान जिसको हम सब ने कहीं न कहीं पढ़ा या सुना जरूर है, लेकिन अमल बहुत कम ने किया। खैर, खामोशी मांगलिक कामों को लेकर ही नहीं पसरी बल्कि दुख दर्द व गमी में भी यही हाल है। मृतक के परिजनों के अंतिम दर्शन करने की जिद के चलते शव को दो-दो तीन-तीन दिन तक घर पर रखने की 'परंपरा' भी यकायक लुप्त हो गई है। यहां तक कि अंतिम यात्रा में शामिल होने वालों के भी टोटे पड़ गए हैं। खास बात यह कि इस नामुराद कोरोना ने बहुत बड़ी सामाजिक बुराई को भी एक झटके से खत्म कर दिया। जो काम बड़ी- बड़ी सामाजिक अपीलें नहीं कर सकी वो इस कमबख्त कोरोना ने कर दिखाया। यह भी तो एक तरह का चमत्कार ही है। प़ाखंडवाद व आडम्बरों पर भी कोरोना ने कसकर लगाम लगा दी है।
क्रमश:

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