Thursday, July 2, 2020

मुआ कोरोना-4

बस यूं ही
तीन दिन थोड़े व्यस्तता भरे रहे। कुछ मानसिक अवसाद भी रहा, लिहाजा नियमित नहीं लिख पाया। खैर, उन सबसे पार पाते हुए आज पुन: विषयवस्तु पर लौट आया हूं। हां इन तीन दिन के अवधि में बहस और चर्चा इस बात की भी होने लगी है कि क्या हमको कोरोना के साथ ही जीना पड़ेगा? वाकई सवाल बड़ा मौजूं है। जिस तरह के हालात हैं, उससे लगता नहीं कि कोरोना से मुक्ति जल्द मिल जाएगी। विदेशों के तो फोटो भी आने लगे हैं कि किस तरह सावधानी रखकर कक्षाएं लगेंगी या लग रही हैं। कोरोना के साथ जीना पड़ेगा, इस बात की कल्पना हमारे यहां भी जरूर की जाने लगी है। लेकिन वो ही मेरी वाली बात नकारात्मक माहौल के बीच भी कुछ सकारात्मक खोजने की जिद। अब देखिए कल्पना करने वालों ने भले ही जीवन कैसा होगा, किस तरह का होगा। यह न सोचकर केवल शादी के बारे में सोचा। इतने आगे की सोच निसंदेह कोई आशावादी ही रखेगा। उम्मीद का दामन थामने वाला ही करेगा। कोरोना के साथ जीना पड़़ा और शादियां हुई तो उसके लिए निमंत्रण पत्र का मजमून भी अभी से तैयार होने लगा है। बानगी देखिए, 'आप सपरिवार ना पधारें, केवल अकेले ही आने का कष्ट करें। स्वच्छता का ध्यान रखें और अपना मास्क कतई न उतारें। अनावश्यक किसी वस्तु को हाथ न लगाएं। वर-वधु को आशीर्वाद दूर से ही दें, उनके पास आकर फोटो खिंचवाने की कोशिश न करें। हर स्थान पर सामाजिक दूरी बना कर रखें। शगुन और हार-गुलदस्ता के रुपए काउंटर नम्बर-1 पर जमा कराकर रसीद लेकर या ऑनलाइन पेमेंट का स्क्रीन शॉट दिखाकर काउंटर नंबर-2 से अपना भोजन का पैकेट प्राप्त करें व घर जाकर शांतिपूर्वक भोजन का स्वाद लें। इतना ही नहीं इन निर्देशों के अलावा नीचे मोटे-मोटे अक्षरों में नोट के साथ लिखवाया गया है, 'आपको मजबूरीवश बुलाया गया है. क्योंकि हमने भी आपके यहां आकर लिफाफा दिया था।' यह तो हुई शादी की बात। कल्पनाशील लोगों ने तो कोरोना से पहले और कोरोना के बाद को दो भागों में बांट कर बॉलीवुड गानों का वर्गीकरण भी उसी हिसाब से कर दिया है। बाकायदा चुटकी ली गई है कि कोरोना काल को देखते हुए इन गानों को प्रतिबंधित कर दिया गया है जबकि फलां गीत बजाने की अनुमति जारी की है। प्रतिबंधित और अनुमति वाले गीतों की सूची देखकर हंस-हंस कर पेट में बल पड़ गए। वाकई कल्पनाशीलता का कोई जवाब नहीं। वैसेे देखा भी जाए तो मौजूदा माहौल में, बाहों में चले आओ...लग जा गले...आज गा लो मुस्कुरा लो महफिलें सजा लो...ओ साथी चल मुझे लेके साथ...मेंरे हाथ मे तेरा हाथ हो...अभी ना जाओ छोडकर... तुमसे मिलके ऐसा लगा...छू लेने दो नाजुक होठों को... होठों से छू लो तुम...सांसों को सांसों से मिलने दो जरा...पास वो आने लगे जरा जऱा...तुम पास आए यूं मुस्कुराए...अब प्रासंगिक नहीं रहे। फिलहाल तो, जिस गली में तेरा घर न हो.. तेरी गलियों में ना रखेंगे कदम... तेरी दुनिया से दूर, चले होके मजबूर...मिलने से डरता है दिल...परदेसियों से ना अंखियां मिलाना ...चलो एक बार फिर से अजनबी बन जाए...कुछ ना कहो कुछ भी ना कहो ...ये गलियां ये चौबारा यहां आना ना दोबारा...तेरी दुनिया से दूर, होके चले मजबूर ...भुला देंगे तुमको सनम धीरे धीरे...अकेले हम अकेले तुम...अकेले हैं तो क्या गम है... जैसे गीतों का मौसम लौट आया है। आप उक्त गीत गुनगुनाइए जल्द हाजिर.होता हूं.पांचवीं.किश्त के.साथ..।
क्रमश:

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