Monday, May 30, 2011

मेरा बचपन..२

यह याद भी कमोबेश उसी समय की है जब मेरी उम्र पांच-साढ़े पांच रही होगी। मामाजी की बड़ी बेटी की शादी में मैं माताजी के साथ पालम, दिल्ली गया था। वैसे मेरा ननिहाल हरियाणा में भिवानी के पास है लेकिन मामाजी  अपनी नौकरी के चलते पालम में ही शिफ्ट हो गए थे। इस कारण उन्होंने शादी भी वहीं पर करने का निर्णय किया था। बचपन में अपनी चंचलता, चपलता एवं हाजिरजवाबी के कारण मैं हर किसी का ध्यान अपनी तरफ खींच लेता था। एक सबसे बड़ा शौक जो बचपन से था वह आज भी है। अंतर केवल इतना आया है कि तब में जोर-जोर से गाता था और अब केवल गुनगुना लेता हूं, लेकिन संगीत का शौक रग-रग में समाया है। बचपन में गाता था इसलिए भी लोग मुझसे प्रभावित होते थे। वे प्यार से मुझसे एक गाने की गुजारिश करते और जैसा मुझे याद था मैं गा देता था। बिना किसी संकोच के एकदम बिंदास होकर। तो ऐसी ही दो-चार खासियतों के चलते मैं जल्द ही बड़ों को अपना बना लेता था। एक और खासियत जो आज भी कायम है, बिना किसी झिझक के अजनबी के साथ भी परिचय कर लेना। खैर, बात शादी की चल रही थी। भूमिका बांधना इसलिए जरूरी था कि क्योंकि सारा घटनाक्रम मेरी इन्हीं खासियतों की चलते ही हुआ था। मेरे एक दूसरे मामाजी भी पालम ही शिफ्ट हो गए थे।  उनका सबसे छोटा बेटा जो कि उम्र में मेरे से कुछ बड़ा है, मैं दिन भर उसके साथ खेलता। ननिहाल पक्ष का कोई भी व्यक्ति मुझको गोद में लेकर गाने को कहता तो मैं निसंकोच गा देता। अल्पसमय में ही मैं सबका प्रिय बन गया था। शायद यही कारण था कि सब मुझ पर विश्वास करने लगे थे। मेरी इसी खूबी का फायदा मेरे मामाजी के बेटे ने उठाया। उसने एक दिन शाम को गेंदे का फूल मुझे दिया और कहा कि इस फूल में सुगंध बहुत अच्छी आ रही है। आप इसको सभी को सुंघा दो। मैं स्वभावतः भोला होने के कारण उसकी बातों में सहज ही आ गया। मुझे नहीं मालूम था कि फूल सुंघाने के पीछे क्या राज है और ना ही मैंने फूल सूंघ कर देखा। अब मैं बारी-बारी से सबके पास गया और सबको फूल सुंघा आया।  इसी दौरान सभी जोर-जोर से छींकने लगे। छींकने का राज समझ आया तो मेरे पैरों के नीचे की जमीन खिसक गई लेकिन आज उस घटनाक्रम को याद करता हूं तो मुस्कुराए बिना नहीं रहता। दरअसल, मामाजी के बेटे ने उस फूल में लाल पिसी हुई मिर्ची डाल दी थी। इस कारण जिसने भी फूल  सूंघा वह छींकने लगा। लगभग वैसी ही खूबियां मेरे छोटे बेटे एकलव्य में है। वह भी बिंदास एवं मस्तमौला है  बिलकुल मेरी तरह। उसे देखकर मेरा बचपन फिर जवान हो उठता है।

2 comments:

  1. बिलकुल जी ....बहुत नटखट थे आप .....बहुत अच्छा लगा .........सुंदर पोस्ट

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  2. आज आपको देख किसी भी एंगल से नहीं लगता कि आप बचपन में इतने शरारती रहे होंगे |

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