Monday, May 30, 2011

मेरा बचपन...३

बचपन की यादों को शब्दों में पिरोने का सिलसिला  एक बार शुरू क्या किया यादें यकायक फ्लेशबैक की मानिंद मानस पटल में फिर से जिंदा हो गई हैं। यह याद भी उसी समय की है जब मामाजी की बेटी की शादी हुई थी। शादी पूर्ण होने के बाद हम सभी लोग वापस गांव लौट रहे थे। साथ में ताऊजी, मौसीजी, माताजी एवं बड़ी बहन थे। हरियाणा के रेवाड़ी जंक्शन पर जल्दबाजी में ताऊजी, मौसीजी एवं बड़ी बहन तो टे्रन में सवार हो गए लेकिन मैं और माताजी नहीं चढ़ पाए। हम दोनों के साथ और कोर्इ नहीं था।  हमें यह भी पता नहीं कि लोहारू कौनसी ट्रेन जाएगी। इतने में एक दम्पती मिला, जिनको सतनाली कस्बे तक आना था। एक ही रूट के यात्री मिलने से कुछ राहत मिली। अब हम चार लोग हो गए। इतने में ही प्लेटफार्म पर ट्रेन आई और हम सब उसमें सवार हो गए। थोड़ी देर बाद ट्रेन रवाना हो गई। देखते-देखते उसने रफ्तार पकड़ ली। इतने में ही वे सज्जन जिनको सतनाली आना था जोर से चिल्लाए, अरे, यह ट्रेन तो बांदीकुई जाएगी। हम तो गलत ट्रेन में चढ़ गए।
अब क्या हो। तत्काल आइडिया आया और उन्होंने जंजीर खींच ली। ट्रेन की रफ्तार कम होती उससे पहले ही मैं प्लेटफार्म की दूसरी साइड में कूद गया। मैंने सोचा कि मैं ट्रेन रुकने से वापस प्लेटफार्म पर पहुंच जाऊंगा। ट्रेन की गति तेज थी, लिहाजा कूदते ही मैं गिर गया। कुछ देर तो वहीं रुका, तब तक माताजी और वो दम्पती चिल्लाते रहे। धीरे-धीरे गाड़ी आगे जाकर रुकी लेकिन तब तक वह मेरी नजरों से ओझल हो चुकी थी। अनिष्ट की आशंका में मैं रुंआसा होकर वापस गाड़ी की दिशा में दौड़ पड़ा। थोड़ा दौड़ने के बाद ट्रेन और इसके बाद माताजी दिखाई दी। वे हाथ हिलाकर जोर- जोर से चिल्ला रही थी। मैं दौड़ते-दौड़ते रोने लगा। आखिरकार ट्रेन के पास पहुंच गया। जंजीर खींचने के कारण ट्रेन रुक चुकी थी। सतनाली जाने वाले अंकल ने मेरा पकड़ कर मुझे वापस डिब्बे में खींचा और जोरदार थप्पड़ मेरे गाल पर रसीद कर दिया। मैं गलती में था, इसलिए प्रत्युत्तर में मैंने कोई प्रतिक्रिया नहीं की। बाद में दूसरी साइड में उतर कर हम प्लेटफार्म तक पहुंचे। बाद में शाम को दूसरी ट्रेन से लोहारू पहुंचे। चलती ट्रेन से कूदने का वह मंजर आज भी मेरे आंखों के सामने आता है तो मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं। पता नहीं किस अदृश्य शक्ति के चलते मैं सकुशल घर पहुंच पाया। हां, इतना जरूर है जिसके भी सामने इस घटना का जिक्र किया तो बदले में मुझे डांट ही सुनने को मिली। शायद मेरा वो फैसला ही कुछ ऐसा था।

1 comment:

  1. चलती ट्रेन से कूदना .....मुझे तो सोचकर सिहरन होती है |

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