Monday, October 28, 2013

समाज का सवाल, सियासत में उबाल


जनसम्पर्क व दौरे को लेकर बन रही हैं रणनीतियां
 दु र्ग जिले का पाटन विधानसभा क्षेत्र। चुनावी रंगत फिलहाल यहां परवान नहीं चढ़ी है। अलबत्ता शुरुआती दौर में प्रत्याशी मतदाताओं का मानस टटोलने में जरूर जुट गए हैं। ग्रामीण इलाकों में गुप्त बैठकों के माध्यम से मतदाताओं का रुझान पता किया जा रहा है। नामांकन भरने से लेकर जनसम्पर्क व कार्यकर्ता सम्मेलनों तक की रणनीति बनाई जा रही है। इसके लिए जिम्मेदारियां भी सौंपी जा रही हैं। फिलहाल पाटन क्षेत्र में कोई बड़ा मुद्दा नहीं है और न ही किसी तरह की कोई लहर। मतदाता अभी खामोश हैं, लेकिन समाजों में सियासी हलचलों का दौर शुरू हो चुका है। इन सियासी हलचलों के कारण कहीं नए समीकरण बन रहे हैं तो कहीं बिगड़ भी रहे हैं।
करीब 15 हजार मतदाता बढ़े
पाटन में इस बार गत चुनाव के मुकाबले पौने पन्द्रह हजार मतदाता ज्यादा हैं। पिछले चुनाव में यहां 155806 मतदाता थे, इस बार 170581 हो गए हैं। पिछले चुनाव में विजय बघेल को 59000 तो भूपेश बघेल को 51158 मत प्राप्त हुए थे। जीत का अंतर 7842 मतों का रहा था। तब करीब 79 प्रतिशत मतदाताओं ने वोट डाले थे।
निचोड़
कुर्मी एवं साहू समाज की बहुलता वाले इस विधानसभा क्षेत्र में फिलहाल तो टिकट वितरण का मामला गर्माया हुआ है। साहू समाज के पदाधिकारियों ने सांसद से मुलाकात कर अपनी नाराजगी जाहिर कर दी है। साहू समाज की नाराजगी दूर करने की दिशा में फिलहाल कोई प्रयास या आश्वासन सामने नहीं आया है। इसके अलावा सतनामी समाज के वोट भी यहां निर्णायक हैं। दोनों समाजों का रुख ही दोनों दावेदारों की जीत का मार्ग प्रशस्त करेगा। वैसे विजय बघेल के विधानसभा क्षेत्र बदलने की चर्चाओं ने उनके सामने मुसीबत खड़ी कर दी है। माना जा रहा है इस बार मुकाबला दिलचस्प होगा। वैसे क्षेत्र में विकास एवं सिंचाई से संबंधित मामले मतदान के नजदीक आते-आते जोर पकडऩे के पूरे आसार हैं। भ्रष्टाचार का मसला भी प्रभावी भूमिका निभा सकता है, क्योंकि अभी-अभी बनी पाटन-उतई रोड पूरी तरह उधड़ चुकी है। सड़क पर उड़ती धूल एवं बिखरे पत्थर भी इस बात के साक्षी हैं कि सड़क निर्माण में जमकर अनियमितता बरती गई है।

धोराभांठा गांव में गुप्त बैठक
भिलाई से करीब दस किसी दूरी पर आबाद धोराभांठा गांव में बुधवार दोपहर ग्रामीण अपने रोजमर्रा के कामों में व्यस्त हैं। महिलाएं हैंडपम्प से पानी भर रही हैं तो पंक्चर की दुकान पर दो युवक अपने काम में तल्लीन हैं। कोई तालाब की तरफ नहाने जा रहा है तो कोई नहाकर लौट रहा है। गांव के चौक में संसदीय सचिव विजय बघेल का सड़क सीमेंटीकरण से संबंधित पत्थर लगा है, लेकिन सड़क की हालात खराब है। शिलान्यास पट्टिका पर 2010 का साल अंकित है। चौक से थोड़ा आगे बेहद ऊबड़-खाबड़ व तंग गली में एक घर के बाहर तीन महिलाएं हाथ में लाठी लिए हुए बंदरों के झुण्ड को भगाने में लगी हैं। किसी की कानोंकान तक खबर नहीं कि गांव में कहीं पर कोई बैठक भी हो रही है। गांव के मंदिर के पास एक मकान में करीब पांच दर्जन ग्रामीण अंदर एकत्रित हैं। अंदर तखत पर कांग्रेस के भूपेश बघेल बैठे हैं। उनकी बगल में तिलक लगाए एक वृद्ध बैठा है। बाकी सभी लोग दरी पर बैठे हैं। बारी-बारी से ग्रामीण सदस्यता अभियान और भाजपा की रणनीति के बारे में बताते हैं। बातचीत के इस दौर में कभी माहौल यकायक गंभीर होता है तो कभी ठहाके गंूजते हैं। बारी-बारी से बोलने का क्रम टूटता है और सब एक साथ बोलने लगते हैं। शोरगुल बढ़ता है। भूपेश बघेल सबको चुप कराते हुए चुनाव में जिम्मेदारी सौंपते हैं। कहते हैं एक-एक व्यक्ति दस-दस घरों के सम्पर्क में रहें और प्रचार करें। प्रचार के लिए वे तीन चार मामले गिनाते हैं। कहते हैं उनके कार्यकाल में दस साल पहले बनी सड़क आज भी ठीक है, जबकि हाल ही बनी सड़कें टूट रही हैं।
वे ग्रामीणों को केन्द्र सरकार की उपलब्धियां मतदाताओं के समक्ष गिनाने की बात कहते हैं। बघेल कहते हैं कि राज्य की मौजूदा सरकार ने बोनस के नाम पर किसानों का ठगा है। चुनावी साल में बोनस दिया, जबकि बाकी साल किसान इंतजार करते रहे। करीब घंटेभर के विचार-विमर्श के बाद बैठक समाप्ति की ओर है। मुट्ठीभर से कम नमकीन और दो-दो बिस्कुट रखी कागज की प्लेटें ग्रामीणों के बीच घुमाई जाती हैं। बघेल उठकर बाहर आते हैं। पीछे-पीछे ग्रामीण भी उठते हैं। अंदर से आवाज आती है, चाय बन रही है। बघेल अपनी गाड़ी में अगले गांव के लिए रवाना होते हैं।

विजय बघेल का आवास
गुरुवार यही कोई सुबह के 11.30 बजे हैं। संसदीय सचिव विजय बघेल के आवास के बाहर एक पोस्टर लगा है, जिस पर लिखा है 'कृपया, यहां पर वाहन खड़े न करें।' इसी स्लोगन के ठीक सामने दुपहिया व चौपहिया वाहन खड़े हैं। आवास के अंदर भी नसीहत भरे दो पोस्टर चस्पा किए हुए हैं। एक पर लिखा 'कृपया कार्यालय में अपने मोबाइल बंद रखें।' जबकि दूसरे पर 'कृपया जूतों चप्पलों को बाहर रखें।' लिखा हुआ है। कार्यालय के अंदर कुर्सियां खाली हैं। आवास के बाहर संसदीय सचिव के गार्ड के इर्द-गिर्द पांच युवक आपस में कानाफूसी में जुटे हैं। आवास के ठीक सामने बनाई गई खटाल की साफ-सफाई भी चल रही है।
अचानक विजय बघेल बाहर आते हैं और आवास के सामने खड़े एक प्रचार रथ के पास जाकर रुक जाते हैं। आसपास बैठे सभी लोग भी बघेल के अगल-बगल में खड़े हो जाते हैं। प्रचार रथ के पास कुर्सी डालकर बैठे युवक-युवती खड़े होते हैं। प्रचार रथ से पर्दा उठता है तो एक बड़ा स्पीकर दिखाई देता है। युवती माइक लेती है। अचानक संगीत चलता है, इसी के साथ 'ईश्वर ही सत्य है' 'सत्य ही शिव है' 'शिव की सुंदर है।' 'सत्यम शिवम सुंदरम'  बोल गूंजते हैं। थोड़ी देर सुनने के बाद बघेल उसे रुकने का इशारा करता है। युवक दौड़ता हुआ आता है, और कहता है सर आपका गीत 'दुख के सब साथी..' भी हमारे पास है। बघेल उसको बुक करने के लिए हामी भरते हैं। इसी बीच दो युवक और आते हैं.. कहते हैं सर, हमारा डेमो भी देख लो। बघेल कहते हैं, आपने देर कर दी, सब फाइनल कर दिया। बघेल लौटते हैं। कुछ परेशान से हैं। समर्थक वजह पूछते हैं तो कहते हैं, अरे भाई, क्या बताऊं, तबीयत खराब है। देखो ना.. बघेल हाथ आगे बढ़ाते हैं। फिर कहते हैं तबीयत के चक्कर में सुबह से नहाया ही नहीं हूं। धीरे-धीरे चहलकदमी करते हुए अंदर जाते हैं। दो-चार समर्थक भी उनके पीछे-पीछे हैं। बघेल का मोबाइल बजता है और वे बतियाते हुए अंदर प्रवेश कर जाते हैं। बाहर खड़े युवकों में फिर चर्चा शुरू हो जाती है। प्रचार रथ वाला भी अपना साजो-सामान समेट कर चल पड़ता है।

 साभार- पत्रिका छत्तीसढ़ में 26 अक्टूबर के अंक में प्रकाशित


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