Wednesday, February 28, 2018

चम्मच/चमचा पुराण

बस यूं ही
इसमें कोई दोराय नहीं फेसबुक विविधताओं का भंडार हैं। यहां सब रंग हैं। इन को लेकर पूर्व में एक लंबी चौड़ी पोस्ट भी लिख चुका हूं। ताजा मामला भी एक पोस्ट से ही जुड़ा है। यह पोस्ट सिर्फ एक लाइन की थी। इसे एक लाइन का सामान्य सा सवाल कहूं तो ज्यादा उचित प्रतीत होगा। मामला चम्मच और चमचा पुराण से जुड़ा होने के कारण इस पोस्ट में रोचकता इसके नीचे आए कमेंट्स से और ज्यादा पैदा हुई। रोचकता के साथ इसमें हास्य रस भी जुड़ गया। तभी ख्याल आया कि इस विषय पर लिखा जाना चाहिए। दरअसल, पिछले दिनों एक साहित्यिक कार्यक्रम में जोधपुर जाना हुआ। वहां मंच संचालन करने वाले शख्स की शैली से बेहद प्रभावित हुआ। व्यस्तता कहिए या शर्म शंका लेकिन तब मेरा उनसे व्यक्तिश: परिचय नहीं हो पाया। श्रीगंगानगर लौटने के बाद जब मैंने इन महाशय को एफबी पर सर्च किया और फिर तत्काल मित्रता आग्रह भेजा। स्वीकार भी हुआ। फिर मैसेंजर के माध्यम से परिचय हुआ और जब यह कहा कि आपको उस दिन सुना था, तो ठेठ जोधपुरी अंदाज में जवाब आया। इसे उलाहना भी कह सकते हैं, जो अभी तक चढ़ा हुआ है। उलाहना यही है कि अब भविष्य में कभी जोधपुर आओ तो चुपचाप मत निकल जाना। मिलकर ही जाना। इसके बाद दोनों का एफबी व व्हाट्सएप के माध्यम कमोबेशे रोज ही संवाद हो जाता है। फिर भी आमने-सामने की मुलाकात अभी बाकी है। खैर, इतनी भूमिका बांधने के बाद अब बता ही देता हूं यह शख्स हैं जोधपुर के श्री रतनसिंह जी चांपावत। रणसी गांव के हैं। शिक्षा विभाग में अंग्रेजी के व्याख्याता हैं लेकिन हिन्दी, मारवाड़ी भी गजब की है। कवि हृदय हैं, लिहाजा सृजन के काम से भी जुड़े हैं। अब मूल बात पर आता हूं। रतनसिंहजी ने कल रात अपने वाल पर एक पोस्ट (सवाल लिखा ) 'एक चम्मच और चमचे में क्या अंतर है?; 
पोस्ट के जवाब में पहला कमेंट आया, चम्मच- भोजन ग्रहण करने का सहायक उपकरण। चम्मचे-राजनीतिकरण के सहायक उपकरण। दोनों युग्म शब्द है लेकिन भावार्थ भिन्न भिन्न। इसके बाद कमेंट्स का सिलसिला शुरू हो गया। 
दूसरा आया, चम्मच खिलाता है, चमचा बजाता है।
तीसरा कमेंट्स- चम्मच हर घर मे मिलता है और चमचा हर कार्यालय मे मिलता है।
चौथा कमेंट्स- एक चम्मच खाना सुधारता है। और ज्यादा चमच यानी चमचे बरतनों की दुकान पर होते हैं जो कुछ पैसो मे बिकते हैं या बेचे जाते हैं।
पांचवां कमेंट्स- चम्मच - खाना खाने खिलाने में मददगार। चमचे-चापलूस चाटूकार इंसान
छठा कमेंट्स- चम्मच निर्जीव होता है और चमचे सजीव।
सातवां कमेंट्स- वही ...जो सुविधा और समस्या में है।
आठवां कमेंट्स- चम्मच सुधारने की प्रकिया में उपयोगी होता है। और चम्मचे तो हर काम को चापलूसी के द्वारा अपना उल्लू सीधा करने में लगे रहते हैं। इनका इस्तेमाल हानिकारक होता है।
नौवां कमेंट्स- आदमी अपने उपयोग अनुसार चम्मच का लाभ लेता है....। चम्मचे-अपने स्वार्थ अनुसार आदमी का लाभ उठा सकते हैं.।
दसवां कमेंट्स- एक स्त्रीलिंग व एक पुलिंग।
ग्याहरवां कमेंट्स- दोनो इधर की ऊधर करते हैं।
बारहवां कमेंट्स- कुछ चम्मच चांदी के होते हैं। कुछ चमचों की चांदी होती है।
तेरहवां कमेंट्स- चमचा
च से चुगली जो करे, चतुर वही कहलाय।
म से मख्खन, जो मिले, दे वो उसे लगाय।
चा से चालू जो मिले, चापलूस बन जाय,
लक्षण जो ये सभी रखे, चमचा वही कहाय।
चौदहवां कमेंट्स-चम्मच घर में होवे, चम्मचे घर से बाहर।
इसके बाद कमेंट्स आने का दौर थमा हुआ है। लेकिन जो आया वो सब एक से बढ़कर एक हैं। सभी हंसाते गुदगुदाते हैं और सोचने पर मजबूर भी करते हैं। इस हास्य में व्यंग्य भी छिपा है। इतना सब पढ़ कर किसी के चेहरे पर मुस्कान लौटती है तो समझता हूं मैं अपने मकसद में सफल रहा। हां चम्मच/ चमचा पुराण पर और व रोचक लिखने के वादे के साथ।

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