Wednesday, February 28, 2018

हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी

हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी
जिसको भी देखना हो कई बार देखना...
निदा फाजली का यह चर्चित शेर मुझे आज मौजूं लग रहा है। विशेषकर उनके लिए जो कल एक सिने अदाकारा की मौत पर भावुक हो रहे थे। व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम की डिपी में उस दिवंगत अदाकारा की फोटो लगा रहे थे। कल और आज में जिस तरह से मौत के कारण बदले हैं, उसी अंदाज में श्रद्धा-सुमन अर्पित करने के काम को भी कुछ विराम लगा है। वैसे किसी शख्यिसत का प्रशंसक होना बुरा नहीं होता। होना भी चाहिए लेकिन अंध प्रशंसक तो कभी भी नहीं होना चाहिए। वह भी तब जब किसी को हम पूरी तरह से जानते ही न हो। सिर्फ पर्दे की भूमिकाओं से हम किसी के संपूर्ण व्यक्तित्व का आकलन नहीं कर सकते। पर्दे की दुनिया और हकीकत की दुनिया में बहुत अंतर है। रूपहली दुनिया इस तरह के उदाहरणों से भरी पड़ी है। पर्दे पर दर्शकों की गालियां खाने वाले कई विलेन निजी जीवन में इतने सीधे होते हैं कि जानकर या पढ़कर आश्चर्य होता है। वैसे बचपन की सीख यहां भी प्रासंगिक लगती है। यही कि घृणा पाप से करो पापी से नहीं। वैसे ही प्रेम अभिनय से करो। अभिनेता या अभिनेत्री से नहीं। खैर, यह पसंद का मामला है। और पसंद हमेशा दिल से जुड़ी होती है। हो सकता है मेरी बात किसी को जमे, किसी को न जमे। किसी को नागवार गुजरे।

No comments:

Post a Comment