Tuesday, June 11, 2019

मेरी आंध्रा यात्रा-10

चुनाव के चलते रास्ते में सुरक्षा बलों ने हमारी कार रुकवाई। मेरा सारा सामान चैक किया और हम फिर आगे बढ़े। अब विजयनगम आ गया था। बताता चलूं कि विजयनगरम, पूर्व नागरिक उड्डयन मंत्री अशोक गजपति राजू का शहर है। राजू राजसी परिवार से आते हैं और तेलुगूदेशम पार्टी के नेता है। शहर में उनका प्राचीन महल भी है। इसके आधे हिस्से में अब कॉलेज संचालित होता है, एक तरफ उनका आवास है। वहीं एक नीबू पानी की रेहड़ी पर हम रुके हैं और कार चालक वेंकट के आग्रह पर नमकीन शिंकजी पी। यहां रेहड़ी वाले ने डस्टबीन लगा रखा था। शिकंजी पीने वाले डिस्पोजल गिलास उसी में डाल रहे थे। सफाई व्यवस्था यहां भी अच्छी नजर आई। दोपहर हो चुकी थी। तय कार्यक्रम के हिसाब से मुझे विजयनगरम ही रुकना था लेकिन बाद में पता चला कि मैं तो उत्तर की बजाय दक्षिण में आ गया हूं, इसलिए वापस विशाखापट्टनम जाना ही बेहतर समझा। इसलिए वेंकट को कहा कि मुझे फिर से विशाखापट्नम ही छोड़ दे। विजयनगरम शहर का एक चक्कर लगाने के बाद हम वापस विशखापट्नम की ओर चल पड़े। रास्ते में एक जगह वेंकट ने डेढ़ सौ साल से से ज्यादा पुराना चर्च दिखाया। दरअसल इस इलाके में अंग्रेज काफी पहले आ गए थे। इस कारण अंग्रेजों से जुड़ी कई चीजें आज भी यहां हैं । इस क्षेत्र के विकसित होने का बड़ा कारण अंग्रेजों का यहां आना भी है। आगे बढ़े तो ऋषिकोण्डा बीच आया। वेंकट ने कहा सर भूख लगी है क्यों न भोजन कर लिया जाए। मैंने कहा चपाती वाले रेस्टारेंट पर चलें लेकिन वहां चपाती नजर नहीं आई। आखिर वेंकट की तरह मुझे भी चावल, दाल व दही से काम चलाना पड़ा। कुछ सब्जियां और भी लेकिन वह में नहीं खा पाया। हां चावल के लिए मेरा चम्मच मांगना और फिर चम्मच से खाते देख कई लोग चौंके जरूर क्योंकि वे सब बिना चम्मच के हाथों से खा रहे थे। वह भी अंगुलियों के बजाय पूरे हाथ से मुट्ठी भर के। भोजन के उपरांत वेंकट ने कहा सर, आप थोड़ा बीच देख आएं तब मैं भी धूम्रपान कर लेता हूं। दोपहर हो चुकी थी। धूप व तेज गर्मी के कारण मैं पसीना पसीना हो गया। एसी गाड़ी में लंबा सफर करने के बाद यकायक बाहर आने से वैसे भी गर्मी ज्यादा लगती है। ऋषिकोंडा बीच के किनारे पहाड़ पर आंध्र्रप्रदेश पर्यटन विभाग की ओर से पर्यटकों के लिए बंगले बनाए गए हैं, जो कि 12 घंटे के हिसाब से रेंट पर मिलते हैं। बीच एकदम साफ सुथरा। गंदगी तनिक भी नहीं। बीच किनारे डस्टबीन रखे हुए थे। दस मिनट यह सब देखने के बाद मैं कार की तरफ पलटा। मुझे आता देख वेंकट ने हाथ हिला दिया था। हम चल पड़े विशाखापट्टनम की ओर। बातों ही बातों में मैंने शिपिंग यार्ड की चर्चा की तो वेंकट सीधा मुझे वहीं ले गया। चारों तरफ मछलियों की गंध। बहुत बड़ी मंडी सजी थी। यहां से जिंदा मछलियां बड़ी मात्रा में निर्यात होती हैं। जिधर देखो नाव ही नाव। जहां तक नजर जाए नाव ही नाव। यहां से ड्राई मछलियां भी खूब निर्यात होती हैं। महिलाएं ड्राई मछलियों की दुकानों पर बैठी नजर आई। सड़कों पर मछलियों को सुखाया जाता है। मैं थोड़ी देर कार से उतर कर वहां घूमा लेकिन मछलियों की तेज गंध ने सांस लेना मुश्किल कर दिया। फोन की बैटरी खत्म हो चुकी थी और पावर बैंक भी लगभग जवाब दे गया था, लिहाजा मैं जल्दी से कार में आया और चल पड़े। इसके बाद वेंकट मुझे पुराने विशाखापट्नम लेकर गया। यहां अंगे्रजों के जमाने की बनी करीब दो सौ साल पुरानी स्कूल का भवन दिखाया। नए विशाखापट्टनम की बजाय पुराना शहर थोड़ा संकरा है। मैंेने वेंकट से आग्रह किया वह मुझे रेलवे स्टेशन के आसपास किसी होटल में छोड़ दे ताकि मैं दूसरे दिन अलसुबह किसी और शहर के लिए निकल सकूं। वह मुझे होटल ले गया। होटल वाले ने एक हजार में एसी रूम बताया और एक युवक को कमरा दिखाने को कहा। वह युवक दूसरे होटल लेकर गया और कमरा दिखा दिया। मैं आश्वस्त था कि एक हजार का बोला है तो एक हजार का होगा। खैर, यह दिमाग लगाने से पहले मैं पहले मैंने वेेकट का भुगतान करना बेहतर समझा। । मैंने दो हजार रुपए निकाले और इस उम्मीद से कि वेंकट मुझे चार सौ रुपए लौटाएगा। उसने कहा सर जी दो सौ रुपए और दीजिए। मैं चौंका यह सब कैसे। बोला 120 के बाद हर दस किलोमीटर का सौ रुपया होगा। गाड़ी 188 चल गई। मैं उसकी चालकी पर हैरान था। मैं सोच रहा था कि इसको खाना खिलाया है तो यह एहसानमंद होकर यह सब दिखा रहा था। खैर, ना चाहते हुए दो सौ रुपए और दिए। अब कहने लगा सर, टीप तो दीजिए। मैंने हाथ जोड़ लिए और कहा जो खाना खिलाया उसको टीप समझो मुझे अब माफ करो। वेंकट का हिसाब कर मैं होटल आया और कमरे में घुसा तो वह गर्मी से भभक रहा था। अपना सामान जमाने के बाद मैंने एसी ऑन किया तो तो वह नहीं चला। । मैं काउंटर पर गया और युवक से कहा कि एसी चलाओ, तो वह पलट कर बोला एक हजार में नॉन एसी कमरा मिलेगा। मैंने कहा कि मुझे एक हजार ही बताया तो पास खड़े दूसरा युवक जो संभवत: नशे में था, बिलकुल घूरने वाले अंदाज में बोला। आप को रहना है तो रहिए वरना अपना सामान उठाइए और दूसरे होटल चले जाइए। अजनबी जगह और मुंबइया फिल्मों के के टपोरी टाइम गुंडों जैसे युवक देखकर सच में मैं डर गया । मन ही मन में सोचा आज तो फंस गए हैं, खैर भगवान ही मालिक है। तभी एक युवक बोला है ठीक है एसी ऑन करते हैं आप अपने कमरे में जाइए। मैं कमरे में आ तो गया लेकिन घबराहट के कारण नींद गायब थी। मैंने रूम के अंदर की चिटखनी लगाई और लेट गया।
क्रमश:

No comments:

Post a Comment