Tuesday, June 11, 2019

मेरी आंध्रा यात्रा-2

अगले दिन 24 मार्च को सुबह उठते ही पुलिस थाने पहुंचा। रात के घटनाक्रम की एफआईआर दर्ज करवाई। अपनी ही गाड़ी से पुलिस को दुर्घटनास्थल का मौका मुयाअना करवाया। यह सब करते-करते दोपहर हो चुकी थी। घर लौटा ही था कि पुलिस थाने से फिर फोन आया। मुझे वापस थाने जाना पड़ा। रात को मोटरसाइकिल से टक्कर मारने वाला युवक और उसका मामा बैठे थे। मेरे वहां जाते ही आग्रह करने लगे कि गलती हो गई, माफ कर दो। इतने में युवक के अन्य परिजन भी आए गए। उनमें युवक के पिताजी भी थे। युवक ने पैर पकड़ लिए और माफी मांग ली, लिहाजा मैंने उसको माफ कर दिया। इसी बीच एक पुलिस वाला मुझे एक तरफ ले जाकर बोला, आपको चोट लगी है, आपको कुछ खर्चा पानी चाहिए क्या? मैं चौंका और साफ तौर पर मना किया कि जो होना था, वह हो चुका है, खर्च से मेरा दर्द कम नहीं होगा। मुझे कुछ नहीं चाहिए। मेरे इतना कहते ही पुलिस वाले की आंखों में चमक आई और कहने लगा आप तो नहीं ले रहे हो लेकिन हम अपना हिसाब तो कर लें क्या? मैंने कहा आपकी आप जानो, यह कहकर मैं चला आया। कोई बड़ी बात नहीं मेरी पीठ पीछे पुलिस वालों ने मेरे नाम से उनसे रुपए लिए हों? खैर, इसके बाद घर आ गया। नहाने के बाद आफिस आया जरूरी साजोसामान जमाया। रात साढ़े आठ बजे के करीब घर गया। सामान पैक किया और खाना खाया। दर्द निवारक टेबलेट खाई हुई थी, लिहाजा दर्द कम था। हालांकि कुछ परिचितों व परिजनों ने यात्रा स्थगित करने का सुझाव दिया लेकिन मैंने उनके सुझाव को सिरे से नकार दिया। मेरे मन में यह आशंका घर कर गई थी कि मैंने यात्रा स्थगित कर दी तो यही सोचा जाएगा कि मैं आंध्रा के नाम से डर गया। वहां जाना जाना नहीं चाहता आदि आदि। इन सब के बीच ट्रेन का समय हो चुका था। श्रीमती खुद छोडऩे स्टेशन तक आई। मैंने अपने सीट पकड़ी और लेट गया। लेटते ही नींद आ गई। रात चार बजे दर्द निवारक का असर कम हुआ तो दर्द फिर परेशान करने लगा। जिस भी करवट सोऊं उधर ही दर्द। एक तरफ टांग में दर्द तो दूसरी तरफ कोहनी में। दोनों कुल्हों पर इंजेक्शनों का दर्द भी जोर से था। ना सीधे लेटते बन रहा था ना औंधे। समझ नहीं आ रहा था क्या किया जाए। ट्रेन में सन्नाटा पसरा था लेकिन मैं परेशानी के भंवर में फंसा अपने गंतव्य का बेसब्री से इंतजार कर रहा था। कब दिल्ली आए और कब आराम करूं।आखिरकार किसी तरह सुबह के आठ बजाए। मुझे सरायरोहिल्ला उतरना था लेकिन मैं शकूर बस्ती उतरा। वहां से पहले ऑटो फिर रिक्शे के मदद से भाईसाहब के घर पहुंचा। नींद, दर्द व थकान के कारण मेरी हालत खराब हो चली थी। क्रमश:

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