Tuesday, December 17, 2019

स्वतंत्र एजेंसी करे जांच

प्रसंगवश
श्रीगंगानगर जिले में शिक्षा विभाग में प्रतिनियुक्ति पर नियुक्त पीटीआइ द्वारा किए गए ३८ करोड़ के गबन के मामले में सरकार व विभाग दोनों ही गंभीर नहीं लगते। अब तक हुई जांच से तो यही जाहिर हो रहा है। हां, पुलिस ने कुछ गिरफ्तारियां की हैं तो शिक्षा विभाग ने दो चार बाबूओं को इधर उधर जरूर किया लेकिन गबन के तार कहां-कहां जुड़े हैं? पीटीआइ ने इतना बड़ा दुस्साहस किसके दम पर किया? इस खेल में मुख्य सूत्रधार पीटीआई ही है या कोई और है? जैसे सवाल अभी भी मुंह बाए खड़े हैं। यहां तक कि इस मामले में शिक्षामंत्री जो कहा उस पर भी अभी तक अमल नहीं हुआ। शिक्षा मंत्री ने इस मामले की जांच एसीबी करवाने की बात कही थी लेकिन अभी तक एेसा नहीं हुआ है। उल्टे इस मामले को शुरू से देख रहे पुलिस अधिकारी का ही तबादला कर दिया गया। खैर, शिक्षा मंत्री के अब तक के रुख से तो यही जाहिर हो रहा है कि सरकार उतनी गंभीर दिखाई नहीं देती जितनी होनी चाहिए। जब तक सरकार इस मामले में गंभीर नहीं होगी, तब तक इस गबन की जड़ों को खोजना आसान नहीं होगा। वैसे भी जिस तरीके से यह गबन हुआ है, उस तरफ से सरकार व शिक्षा विभाग ने लंबे समय से आंखें मूंद रखी हैं। शिक्षकों की सेवानिवृत्ति के बाद उपार्जित अवकाश के भुगतान के मामले में सोलह साल से ऑडिट ही नहीं हुई है। श्रीगंगानगर में तो यह गबन किसी तरह उजागर हो गया लेकिन इससे आशंका जरूर पैदा हो गई है। एेसे में सरकार को न केवल श्रीगंगानगर बल्कि समूचे प्रदेश में शिक्षकों के उपार्जित अवकाश के बदले किए जाने वाले भुगतानों की गंभीरता से पड़ताल करनी चाहिए कि कहीं ऑडिट न होने की आड़ में कोई और गबन तो नहीं हो रहा। इस मामले की गंभीरता को समझना होगा। अब तक की जांच में कोई खास सफलता नहीं मिली है। जिस अंदाज में चल रही है उससे लगता भी नहीं है यह मुकाम तक पहुंचेगी, लिहाजा इसकी सीआईडी सीबी या किसी अन्य स्वतंत्र एजेंसी से जांच करवाई जानी चाहिए, तभी कुछ सामने आने की उम्मीद बंधेगी।
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राजस्थान पत्रिका के 07 सितंबर.19 के अंक में.संपादकीय पेज पर प्रकाशित...

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