टिप्पणी
शिव चौक से जिला अस्पताल तक इंटरलॉकिंग काम चल रहा है। कथित रूप से यह सौन्दर्यीकरण का हिस्सा है। निर्माण कार्य शुरू होने पर दावे किए गए थे कि यह पूरा हो जाएगा तो जयपुर व चंडीगढ़ की तरह दिखाई देगा, लेकिन दावों की हवा 'सौन्दर्यीकरण' पूरा होने से पहले ही निकल रही है। इस काम को देख कर मन में सहज ही एक सवाल उठता है कि यह काम किसके लिए हो रहा है? क्यों हो रहा है? तथा इसका लाभ किसे मिलेगा? क्या सोचकर इस छोटे से टुकड़े का चयन किया गया? इससे अच्छा तो इस मार्ग को अतिक्रमण मुक्त करवा दिया जाता। इससे यहां से गुजरने वालों के लिए बहुत बड़ी राहत होती, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस काम से जिम्मेदारों को हासिल क्या होता? विकास पर स्वार्थ हावी है। खैर, कछुआ गति से काम जारी है। इंटरलॉकिंग के नाम पर सड़क चौड़ी हो रही है, लेकिन हकीकत में हो उलटा रहा है। वर्तमान में इस छोटे से टुकड़े की बड़ी समस्या अतिक्रमण है। सड़क पर खुलेआम रेता बजरी का कारोबार होता है। दिन भर रेता बजरी के ट्रक और टै्रक्टर से रास्ता बाधित होता है। कई बार तो लंबा जाम तक लग जाता है। यह काम क्यों हो रहा है? किसका संरक्षण है इस काम के पीछे? क्यों जिम्मेदार यहां आंख मूंद लेते हैं? क्यों चंद लोगों के कारोबार के आगे लाखों लोगों को परेशान किया जा रहा है? अतिक्रमण करने वाले इन चंद लोगों से इतने स्नेह की आखिर वजह क्या है? इन सब सवालों को दरकिनार कर फिलहाल सौन्दर्यीकरण के नाम पर जमकर पैसा बहाया जा रहा है। एक ऐसे काम के लिए जिसका संभावित अंजाम शीशे की तरह साफ दिखाई दे रहा है। अतिक्रमण करने वालों को जिस विभाग ने शह दे रखी है वह कल इंटरलॉकिंग होने के बाद उनको हटा देगा, यह किसी भी सूरत में संभव नहीं लगता। खास बात देखिए, जहां इंटरलॉकिंग हो गई है, वहां फिर से वाहन खड़े होने लगे हैं। कई पेड़ व खंभे भी इस इंटरलॉकिंग की जद में आ रहे हैं लेकिन उनको हटाया नहीं जा रहा है। यही पेड़ व पोल तो अतिक्रमण का प्रमुख आधार बनते हैं। जहां इंटरलॉकिंग हो गई है वहां बेरोकटोक वाहन खड़े होने लगे हैं। इससे जाहिर हो रहा है कि इस सड़क पर जो कारोबार चल रहा है, वह उसी अंदाज में चलता रहेगा। बिना अतिक्रमण हटाए इंटरलॉकिंग करना एक तरह से पैसे की बर्बादी है। कथित रूप से इंटरलॉकिंग की गई जगह फुटपाथ के काम आएगी। दुपहिया वाहन चालक व पैदल राहगीर इस फुटपाथ का उपयोग करेंगे, लेकिन कब्जे काबिज रहने की सूरत में फुटपाथ का उपयोगी होना संदेहास्पद है। सड़क और फुटपाथ के बीच में एक छोटी सी दीवार खड़ी करके क्षेत्राधिकार तय किया जा रहा है, इससे हाइवे और भी सिकुड़ गया है। बड़ा सवाल यह भी है कि फुटपाथ पर जब वाहन खड़े होंगे, रेता व बजरी का कारोबार होगा तो दुपहिया वाहन व पैदल राहगीर कहां से निकलेंगे? जाहिर सी बात है वो वहीं से गुजरेंगे, जहां से अब गुजर रहे हैं। तो फिर यह इंटरलॉकिंग किसके लिए है और क्यों है? इतना ही नहीं अमानक सामग्री से बिना अभियंता की देखरेख में हो रहे काम की गति भी बेहद धीमी है। निर्माण कार्य के चलते यहां रोज जाम लगने लगा है। इधर पैदल राहगीर सिवाय धूल फांकने और व्यवस्था को कोसने के अलावा कुछ कर नहीं पा रहा है। जिम्मेदारों को इस तरह के काम तो कतई नहीं करने चाहिए जहां आमजन को लाभ भी न मिले और सरकारी राशि भी खर्च हो जाए। उन्हें यह बात हमेशा जेहन में रखनी चाहिए कि चंद लोगों के लाभ के लिए इस तरह आमजन की अनदेखी करना कभी-कभी भारी भी पड़ जाता है।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 7 अप्रेल 18 के अंक में प्रकाशित
शिव चौक से जिला अस्पताल तक इंटरलॉकिंग काम चल रहा है। कथित रूप से यह सौन्दर्यीकरण का हिस्सा है। निर्माण कार्य शुरू होने पर दावे किए गए थे कि यह पूरा हो जाएगा तो जयपुर व चंडीगढ़ की तरह दिखाई देगा, लेकिन दावों की हवा 'सौन्दर्यीकरण' पूरा होने से पहले ही निकल रही है। इस काम को देख कर मन में सहज ही एक सवाल उठता है कि यह काम किसके लिए हो रहा है? क्यों हो रहा है? तथा इसका लाभ किसे मिलेगा? क्या सोचकर इस छोटे से टुकड़े का चयन किया गया? इससे अच्छा तो इस मार्ग को अतिक्रमण मुक्त करवा दिया जाता। इससे यहां से गुजरने वालों के लिए बहुत बड़ी राहत होती, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इस काम से जिम्मेदारों को हासिल क्या होता? विकास पर स्वार्थ हावी है। खैर, कछुआ गति से काम जारी है। इंटरलॉकिंग के नाम पर सड़क चौड़ी हो रही है, लेकिन हकीकत में हो उलटा रहा है। वर्तमान में इस छोटे से टुकड़े की बड़ी समस्या अतिक्रमण है। सड़क पर खुलेआम रेता बजरी का कारोबार होता है। दिन भर रेता बजरी के ट्रक और टै्रक्टर से रास्ता बाधित होता है। कई बार तो लंबा जाम तक लग जाता है। यह काम क्यों हो रहा है? किसका संरक्षण है इस काम के पीछे? क्यों जिम्मेदार यहां आंख मूंद लेते हैं? क्यों चंद लोगों के कारोबार के आगे लाखों लोगों को परेशान किया जा रहा है? अतिक्रमण करने वाले इन चंद लोगों से इतने स्नेह की आखिर वजह क्या है? इन सब सवालों को दरकिनार कर फिलहाल सौन्दर्यीकरण के नाम पर जमकर पैसा बहाया जा रहा है। एक ऐसे काम के लिए जिसका संभावित अंजाम शीशे की तरह साफ दिखाई दे रहा है। अतिक्रमण करने वालों को जिस विभाग ने शह दे रखी है वह कल इंटरलॉकिंग होने के बाद उनको हटा देगा, यह किसी भी सूरत में संभव नहीं लगता। खास बात देखिए, जहां इंटरलॉकिंग हो गई है, वहां फिर से वाहन खड़े होने लगे हैं। कई पेड़ व खंभे भी इस इंटरलॉकिंग की जद में आ रहे हैं लेकिन उनको हटाया नहीं जा रहा है। यही पेड़ व पोल तो अतिक्रमण का प्रमुख आधार बनते हैं। जहां इंटरलॉकिंग हो गई है वहां बेरोकटोक वाहन खड़े होने लगे हैं। इससे जाहिर हो रहा है कि इस सड़क पर जो कारोबार चल रहा है, वह उसी अंदाज में चलता रहेगा। बिना अतिक्रमण हटाए इंटरलॉकिंग करना एक तरह से पैसे की बर्बादी है। कथित रूप से इंटरलॉकिंग की गई जगह फुटपाथ के काम आएगी। दुपहिया वाहन चालक व पैदल राहगीर इस फुटपाथ का उपयोग करेंगे, लेकिन कब्जे काबिज रहने की सूरत में फुटपाथ का उपयोगी होना संदेहास्पद है। सड़क और फुटपाथ के बीच में एक छोटी सी दीवार खड़ी करके क्षेत्राधिकार तय किया जा रहा है, इससे हाइवे और भी सिकुड़ गया है। बड़ा सवाल यह भी है कि फुटपाथ पर जब वाहन खड़े होंगे, रेता व बजरी का कारोबार होगा तो दुपहिया वाहन व पैदल राहगीर कहां से निकलेंगे? जाहिर सी बात है वो वहीं से गुजरेंगे, जहां से अब गुजर रहे हैं। तो फिर यह इंटरलॉकिंग किसके लिए है और क्यों है? इतना ही नहीं अमानक सामग्री से बिना अभियंता की देखरेख में हो रहे काम की गति भी बेहद धीमी है। निर्माण कार्य के चलते यहां रोज जाम लगने लगा है। इधर पैदल राहगीर सिवाय धूल फांकने और व्यवस्था को कोसने के अलावा कुछ कर नहीं पा रहा है। जिम्मेदारों को इस तरह के काम तो कतई नहीं करने चाहिए जहां आमजन को लाभ भी न मिले और सरकारी राशि भी खर्च हो जाए। उन्हें यह बात हमेशा जेहन में रखनी चाहिए कि चंद लोगों के लाभ के लिए इस तरह आमजन की अनदेखी करना कभी-कभी भारी भी पड़ जाता है।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 7 अप्रेल 18 के अंक में प्रकाशित
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