पीड़ा
अभी कुछ दिन पहले गांव गया था तो जिला मुख्यालय से होकर गुजरा। शहर के हृदय स्थल गांधी चौक में एक बड़ा सा बधाई संदेश देख कर चौंका। बड़े से साइनबोर्ड पर झुंझुनूं के सभापति को बड़ा सा फोटो लगा था। साथ में गणतंत्र दिवस पर सम्मानित होने के उपलक्ष्य में बधाईसंदेश था। बड़ा ही आकर्षक होर्डिंग्स। जगह एेसी कि अनायास ही सबकी नजर उस पर पड़ जाए। विडम्बना देखिए इसी होर्डिंग्स के ठीक बगल में गांधी चौक में लगी राष्ट्रपिता की प्रतिमा अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही हैं। इस पार्क में स्वच्छ भारत मिशन की धज्जियां तो सरेआम उड़ रही हैं। इससे भी बड़ी बात है कि गांधीजी की लाठी टूटी हुई है। इस लाठी का बजट इतना सा है कि किसी वार्ड का सामान्य पार्षद भी इसकी मरम्मत करवा सकता है लेकिन धन्ना सेठों के नगर झुंझुनूं में गांधी जी एक अदद लाठी को तरस रहे हैं। इससे भी बड़ी खेदजनक बात यह है कि इनकी इस लाठी को जुगाड़ के सहारे जोड़ दिया गया है। कुछ जागरूक लोगों ने इस टूटी लाठी की तरफ से ध्यान दिलाने का प्रयास भी किया लेकिन जनप्रतिनिधियों को खुद के प्रचार से फुरसत मिले तब गांधीजी को संभाले। झुंझुनूं का गांधी पार्क वैसे कई एेतिहासिक सभाओं का साक्षी रहा है। शहर के बीचोबीच होने के कारण झुंझुनूं आने वाले लोग इस पार्क में सुस्ता लेते हैं लेकिन पार्क का रखरखाव भी उस स्तर का नहीं है कि यहां बैठकर सुकून महसूस हो या खुशी का एहसास हो। वैसे गांधी पार्क पचास साल से भी अधिक पुराना है। पार्क का शिलान्यास हुए भी पचास साल से ज्यादा समय बीत गया लेकिन कभी किसी ने न तो पार्क की सुध ली और न ही गांधी जी की। बहरहाल, देखने की बात यह है कि दोनों ही राजनीतिक दलों के प्रिय गांधीजी की इस दशा तथा उनकी टूटी लाठी पर किसको तरस आता है। मेरी दिली ख्वाहिश तो यह है कि यह काम कोई भामाशाह ही कर दे ताकि जनप्रतिनिधियों को बेहतर ढंग से आइना दिखाया जा सके क्योंकि यह पार्क भी एक भामाशाह की ही बदौलत है। देखते हैं, इस सार्थक पहल के लिए कौन आगे आता है।
अभी कुछ दिन पहले गांव गया था तो जिला मुख्यालय से होकर गुजरा। शहर के हृदय स्थल गांधी चौक में एक बड़ा सा बधाई संदेश देख कर चौंका। बड़े से साइनबोर्ड पर झुंझुनूं के सभापति को बड़ा सा फोटो लगा था। साथ में गणतंत्र दिवस पर सम्मानित होने के उपलक्ष्य में बधाईसंदेश था। बड़ा ही आकर्षक होर्डिंग्स। जगह एेसी कि अनायास ही सबकी नजर उस पर पड़ जाए। विडम्बना देखिए इसी होर्डिंग्स के ठीक बगल में गांधी चौक में लगी राष्ट्रपिता की प्रतिमा अपनी बदहाली पर आंसू बहा रही हैं। इस पार्क में स्वच्छ भारत मिशन की धज्जियां तो सरेआम उड़ रही हैं। इससे भी बड़ी बात है कि गांधीजी की लाठी टूटी हुई है। इस लाठी का बजट इतना सा है कि किसी वार्ड का सामान्य पार्षद भी इसकी मरम्मत करवा सकता है लेकिन धन्ना सेठों के नगर झुंझुनूं में गांधी जी एक अदद लाठी को तरस रहे हैं। इससे भी बड़ी खेदजनक बात यह है कि इनकी इस लाठी को जुगाड़ के सहारे जोड़ दिया गया है। कुछ जागरूक लोगों ने इस टूटी लाठी की तरफ से ध्यान दिलाने का प्रयास भी किया लेकिन जनप्रतिनिधियों को खुद के प्रचार से फुरसत मिले तब गांधीजी को संभाले। झुंझुनूं का गांधी पार्क वैसे कई एेतिहासिक सभाओं का साक्षी रहा है। शहर के बीचोबीच होने के कारण झुंझुनूं आने वाले लोग इस पार्क में सुस्ता लेते हैं लेकिन पार्क का रखरखाव भी उस स्तर का नहीं है कि यहां बैठकर सुकून महसूस हो या खुशी का एहसास हो। वैसे गांधी पार्क पचास साल से भी अधिक पुराना है। पार्क का शिलान्यास हुए भी पचास साल से ज्यादा समय बीत गया लेकिन कभी किसी ने न तो पार्क की सुध ली और न ही गांधी जी की। बहरहाल, देखने की बात यह है कि दोनों ही राजनीतिक दलों के प्रिय गांधीजी की इस दशा तथा उनकी टूटी लाठी पर किसको तरस आता है। मेरी दिली ख्वाहिश तो यह है कि यह काम कोई भामाशाह ही कर दे ताकि जनप्रतिनिधियों को बेहतर ढंग से आइना दिखाया जा सके क्योंकि यह पार्क भी एक भामाशाह की ही बदौलत है। देखते हैं, इस सार्थक पहल के लिए कौन आगे आता है।
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