Thursday, March 29, 2018

इक बंजारा गाए-24

पत्रकार वार्ताओं की हकीकत
श्रीगंगानगर में पत्रकार वार्ताओं का प्रचलन अपेक्षाकृत कुछ ज्यादा ही है। इससे भी बड़ी बात यह है कि इनकी तिथि कभी भी तय हो सकती है। देर रात समाचार पत्रों में फोन या मैसेज के माध्यम से पत्रकार वार्ता की सूचना तक दे जाती है। इतना ही नहीं, इससे बड़ी बात तो यह है कि आजकल पत्रकार वार्ताओं के लिए बाकायदा प्रायोजक मिलने लगे हैं। यह संबंधित पक्ष व पत्रकारों के बीच बिचौलिये की भूमिका निभाते हैं। पत्रकारों को सूचना देने से लेकर कवरेज तक की गारंटी इन बिचौलियों द्वारा कथित रूप से दी जाती है। इस काम में हिसाब-किताब क्या रहता है, यह तो संबंधित पक्ष व प्रायोजक ही जानें लेकिन यह काम आजकल चरम पर है। खास बात यह है कि हर दूसरी या तीसरी पत्रकार वार्ता का प्रायोजक एक ही चेहरा मिलता है। हद तो कल परसों हो गई जबकि एक पुलिस एनकाउंटर में मारे गए एक गैंगस्टर के परिजनों की प्रेस वार्ता तक करवा दी गई। यह बात अलग है कि एनकाउंटर करने वाली पुलिस भी पंजाब की और गैंगस्टर भी पंजाब का। यहां पत्रकार वार्ता करने का सबब समझ ही नहीं आया। पता नहीं पत्रकार वार्ता करवाने वाले प्रायोजक ने गैंगस्टर के परिजनों को क्या सब्जबाग दिखाए।
भावनाओं का तड़का
किसी तरह का काम करवाना हो तो भावनाएं सबसे कारगर माध्यम मानी जाती हैं। जहां भावनाओं का तड़का लग जाता है, वहां कुछ होने की उम्मीद बंध जाती है। कुछ इसी तरह की सोच श्रीगंगानगर में भाजपा के लोगों की है। मुख्यमंत्री के दौरे को लेकर आमजन में जो संदेश प्रचारित किए जा रहे हैं, इनमें भावनाओं को शामिल किया जा रहा है। सोशल मीडिया के माध्यम से जो मैसेज भेजे जा रहे हैं, उनमें एक भावनात्मक अपील है। गुरुवार को मिनी सचिवालय का शिलान्यास कार्यक्रम प्रस्तावित है। इसी संदर्भ में यह मैसेज वायरल किए जा रहे हैं। मैसेज है, जिस प्रकार हमारे संस्कारों में सुबह का भूला शाम को घर आ जाए उसको भूला नहीं कहते। वही काम श्रीगंगानगर की जनता के लिए प्रदेश की मुख्यमंत्री का है। चलो चार साल बाद ही सही, उन्होंने श्रीगंगानगर की जनता को याद तो किया। अब हमें सब भुलाकर एकता का परिचय देते हुए कार्यक्रम में शामिल होना है। अब यह भावनात्मक अपील कितनी कारगर साबित होगी। कितने लोग इस अपील का मानकर कार्यक्रम में आएंगे यह तो कल पता चलेगा। फिलहाल भावनाओं का यह तड़का राजनीतिक गलियारों में जबरदस्त चर्चा का विषय बना हुआ है।
दूरी का सबब
कहते हैं कि चुनाव के समय दूरियां अक्सर नजदीकियों में तब्दील हो जाती हैं। विशेषकर राजनीतिक दल समाचार पत्रों के दफ्तरों व जनता के बीच अपने मुखबिर छोड़कर वास्तविक फीडबैक लेते रहते हैं। ऐसा लंबे समय से हो रहा है लेकिन इस बार इस परंपरागत तरीके में बदलाव देखा जा रहा है। मुख्यमंत्री के श्रीगंगानगर दौरे से पहले जनता की नब्ज भांपने के लिए जो तरीका अपनाया गया, वह तो यही कहता है। फीडबैक लेने में इतनी सावधानी बरती गई कि मीडिया को कानोकान खबर तक न हो। पहले दिन शहर के पार्षदों से जब फीडबैक लिया गया तो मीडिया का प्रवेश वर्जित रखा गया। इसी तरह दूसरे दिन जब किसानों से बात हुई तब भी खबरनवीसों को बाहर भेज दिया गया। मीडिया से इस तरह की दूरी से साफ जाहिर होता है कि कहीं न कहीं कुछ ऐसा अनुभव रहा है, जिसने इस तरह की दूरी बनाने को मजबूर किया है। शायद राजनीतिक नुमाइंदों को ऐसा लगता होगा कि मीडिया की मौजदूगी में वे सब नहीं कह सकते हैं जो ऑफ द रिकॉर्ड होता है। फिर भी कोई न कोई डर तो है ही जो ऐसा करने को मजबूर कर रहा है।
धर्म का सहारा
राजनीति में धर्म की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होती है। धर्म ने कइयों की डूबती नैया पार लगाई है। वैसे भी जब सियासत में जब सारे तौर तरीकों कारगर नहीं रहते तब धर्म ही ऐसा मसला है जो कुछ सफलता दिला सकता है। कुछ ऐसा ही शहर के एक नेताजी के साथ हो रहा है। लंबे समय से राजनीतिक हाशिये पर चल रहे इन नेताजी की कुछ दिन पहले ही अपने पुराने दल में वापसी हुई है। वापसी तो हो गई लेकिन तात्कालिक रूप से नेताजी ऐसा कोई काम नहीं कर पाए जो जनता की नजरों में उनको छवि को चमका सके। हालांकि उनका मीडिया मैनेजमेंट गजब का है लेकिन वह भी क्या करे जब करने को कुछ हो नहीं। खैर, लंबे समय से किसी मौके की ताक में बैठे नेताजी को राम का सहारा मिल गया। इस बहाने उन्होंने अपना शक्ति प्रदर्शन भी कर लिया। कहने वाले भले ही रामनवमी के परंपरागत कार्यक्रम को हाइजैक करने का आरोप लगाएं लेकिन नेताजी ने अपना काम बखूबी कर लिया। वैसे इन नेताजी के बारे में कहा तो यह भी जाता है कि यह खुद तो नहीं जीत सकते लेकिन जिसके साथ लग जाते हैं, उसकी राह जरूर आसान कर देते हैं। देखने की बात है नेताजी का आशीर्वाद इस बार किसके साथ रहता है और किसकी राह आसान होती है।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण में 29 मार्च 18 के अंक में प्रकाशित 

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