Thursday, March 29, 2018

इस सोच व प्रबंधन को सलाम

बस यूं ही
शेयर की गई पोस्ट मैंने सितम्बर 2016 में लिखी थी। तब से लेकर आज तक दो मोटे बदलाव हुए हैं। पहला तो यह है कि स्टेट बैंक ऑफ बीकानेर एंड जयपुर जो कि अब स्टेट बैंक ऑफ इंडिया हो गई की झुंझुनूं शाखा में बतौर मुख्य प्रबंधक कार्यरत बड़े भाईसाहब श्री विद्याधरजी झाझड़िया अब सेवानिवृत्त हो चुके हैं। दूसरा बदलाव यह है कि कल 25 मार्च को उनके लाडले डा. जोगेन्द्र झाझड़िया की शादी थी। शादी का कार्ड जरिये व्हाटसएप मेरे पास नौ मार्च को ही पहुंच गया था। कार्ड मिलते ही मैंने बहुत-बहुत बधाई लिखकर भेजा तो उनका मैसेज आया कि भाईसाहब आपको शादी समारोह में जरूर पहुंचना है। यह मेरा विनम्र निवेदन है। मैंने शादी में आने का वादा किया। इस बीच जयपुर की आफिस की मीटिंग होने के कारण मैं 23 मार्च को प्रीतिभोज जिसको गांव में मेळ कहते हैं, में शामिल नहीं हो पाया। अगले दिन 24 मार्च को भाईसाहब के कुएं पर बालाजी के छोटे से मंदिर में मृूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा का कार्यक्रम था। हालांकि गांव में बुलावे के माध्यम से सबको निमंत्रण सुबह ही दे दिया गया था लेकिन मैं दोपहर पौने एक बजे के करीब गांव पहुंचा। मुझे किसी दूसरे माध्यम से सूचना मिली तो मैं भी भाईसाहब के घर धार्मिक कार्यक्रम में शामिल होने रवाना हो गया। वहां गांव के मौजिज लोग बैठे थे। महिलाएं भजन कीर्तन में तल्लीन थी। सबसे खास बात इस उपलक्ष्य में आयोजित हवन में सभी ग्रामीणों की ओर से आहूति डालना। यहां सभी समाजों के लोग समान रूप से अपनी भागीदारी निभा रहे थे। सच में यह नजारा देखकर दिल को सुकून मिला। जिस जातिवाद को लेकर समूचे देश में हाय तौबा मची है। लोग एक दूसरे की जान की दुश्मन बने हैं, वहां इस तरह का माहौल सच में खुशी देता है। इसके साथ परिवार के हर सदस्य का प्रत्येक ग्रामीण से मुलाकात व अटेंड करना। यह प्रबंधन भी वाकई काबिलेगौर था। प्रसाद के रूप में गुड़ लेकर वहां से रवाना हो ही रहा था कि शाम के भोजन के लिए बाकायदा प्यार भरी मनुहार कर दी गई थी। शाम को मैं घर पर ही था कि अचानक दरवाजे पर दस्तक हुई, देखा तो विद्याधर जी भाईसाहब ही थे। खास बात देखिए भाईसाहब मेरे से कम से 20 साल बड़े हैं, इसके बावजूद मेरे को महेन्द्रजी भाईसाहब ही कहते हैं। कहने लगे चलो कार लेकर आया हूं, शाम का भोजन वहीं करना है। मैंने कहा भाईसाहब आप चलो मैं आ ही रहा हूं। करीब साढ़े आठ बजे जब उनके घर की तरफ रवाना हुए तो भाईसाहब फिर कार लेकर रास्ते में मिल गए, कहने लगे आपको लेने आया हूं। तब मैं भतीजे के साथ बाइक पर था। हम उनके आगे और वो पीछे-पीछे। हम घर तक पहुंचे तब तक सारे लोग भोजन कर चुके थे जबकि अभी पौने नौ ही बजे थे। गांव में भोजन का काम शाम होते ही शुरू हो जाता है, इसलिए यह एक तरह से लेट ही था। सिर्फ चार पांच लोग रिश्तेदार व मित्र आदि बचे थे जो भोजन कर रहे थे। हम सब भोजन के बाद हथाई करने बैठे। विद्याधरजी भाईसाहब के बड़े भाई साहब हनुमानसिंह जी के जानकार भी मिले। जोधपुर में डाक्टर। बेटा भी डाक्टर। पूरा परिवार ही शादी में आया। करीब दस बजे वहां से मैंने घर आने की अनुमति मांगी। तब परिवार के सभी सदस्य मौजूद थे। मैं इस सम्मान से बेहद अभिभूत था। सुबह दस बजे के करीब बारात का बुलावा आ गया था। समय दिया गया दोपहर बाद तीन बजे। मैं निर्धारित समय पर तय स्थान पर पहुंच गया लेकिन अभी वक्त था। मैं वापस भाईसाहब के घर की तरफ आने लगा तो रास्ते में निकासी मिल गई। आगे डीजे पर झूमने वाले, फिर महिलाएं और आखिर में बग्घी पर सवार दूल्हा। दो सफेद घोड़े इस बग्घी में जुटे थे। यह बग्घी भी संभवत: गांव में पहली बार ही आई थी। पीछे- पीछे गाड़ियों का सिलसिला। आखिरी कार में हनुमानसिंह जी भाईसाहब उतरे और एक साफा मेरे सिर पर रख दिया। कहने लगे गांव में कोई बांधने वाला नहीं है। जोधपुर से 21 साफे बंधवाकर लाए। गाड़ी में एक साथ इतने ही आए। मैंने साफा सिर्फ खुद की शादी में ही पहना था, यह दूसरा मौका था। गुलाबी गोल साफा पहनकर सबसे पहले खुद की सेल्फी ली और तत्काल एफबी पर अपलोड कर दी। वृतांत लंबा हो रहा है लेकिन यहां मकसद किसी तरह की बड़ाई का न होकर इतना बताना है कि बड़ी बारात होने के बावजूद एक-एक आदमी को आत्मीयता से इस तरह अटेंड करने तथा नम्रता के साथ सम्मान देने की कला मौजूदा दौर में बहुत कम या न के बराबर ही दिखाई देती है। विद्याधर जी भाईसाहब को कई बार देखा है। वो मेरा हाथ पकड़कर परिचय करवाकर बहुत खुश होते हैं। यह उनकी अच्छी आदत है। यहां भी अपने रिश्तेदारों व मित्रों से उन्होंने मेरा परिचय करवाया। परिचय के लिए संबोधन वो ही चिर परिचित अंदाज में कि यह महेन्द्र जी भाईसाहब हैं। फलां, फलां हैं। खैर, गाड़ी में भी जब पीछे बैठने लगा तो हाथ पकड़कर बोले नहीं आगे बैठो। मैंने कहा आज तो हम आपके नेतृत्व में हैं, आप आगे बैठो, लेकिन कहां माने, बोले दोनों ही बैठ जाते हैं और फिर दोनों ही बैठे। 
गांव से बारात रवाना हुई। रास्ते में घोड़ीवारा गांव में बालाजी के धोक लगाने के मकसद से रुके तो वहां विदेशियों के एक दल ने दूल्हे को घेर लिया। खूब फोटो लिए। संभवत: राजस्थानी शादी और दूल्हे के परिधान इन विदेशियों को पसंद आ गए थे। आखिरकार बारात बलारां गांव पहुंची। यहां भी नाच गान- खूब हुआ। विद्याधर जी भाईसाहब यहां भी परिचय करवाकर खुश थे। पहले अपने समधी जी से करवाया। फिर सुपुत्र के साढू जी से करवाया। आशीर्वाद समारोह में परिवार के सदस्यों के साथ हाथ पकड़कर स्टेज पर लेकर गए। बीच में रामकरण जी भाईसाहब हालचाल पूछ जाते तो कभी रामनिवास जी भाईसाहब आकर संभाल जाते....। यही बात रोहिताश्व भाईसाहब की थी। सच में प्रेम से रची पगी मनुहार देखकर मैं कायल हो गया। खास बात यह है कि दुल्हन भी डॉक्टर ही है। और सबसे अच्छी अनुकरणीय बात बिना दहेज की शादी। बिलकुल दुल्हन ही दहेज है कि तर्ज पर। सच में सीखना हो तो इस परिवार की सोच, प्रबंधन व लगाव से काफी कुछ सीखा जा सकता है। विशेषकर संबंधों को निभाने की कला का कोई जवाब नहीं। इस खूबी को मेरा सलाम। इस उम्मीद के साथ कि भलाई की हमेशा मार्केटिंग करनी चाहिए ताकि दूसरे लोग भी इससे प्रेरणा लें। कुछ सीख सकें।

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