Thursday, March 29, 2018

इस बदलाव का लाभ किसे?

टिप्पणी
लंबे समय बाद श्रीगंगानगर की कायापलट हो रही है। यह है तो 'क्षणिक', लेकिन एकबारगी तो सुकून देने वाली है। कहीं रास्तों से मलबा हट रहा है तो कहीं कूड़ा-कचरा भी साफ किया जा रहा है। सड़कों पर धूल न दिखे न उड़े, इसके लिए भी पूरी कवायद की जा रही है। कहीं डिवाइडरों पर रंग रोगन हो रहा है तो कहीं प्लास्टर किया जा रहा है। कुछ चौक चौराहों पर भी सजावट की गई है। यहां तक कि बदहाल कई सड़कों के दिन भी बदल गए हैं। लंबे समय से टूटी-फूटी सड़कें यकायक सुधर गई हैं। शहर को साफ दिखाने व सजाने में किसी तरह की कोई कमी नहीं छोड़ी जा रही है। यह सारी दौड़ धूप इसीलिए हो रही है, क्योंकि आज लंबे समय बाद प्रदेश की मुख्यमंत्री श्रीगंगानगर शहर में आ रही हैं। इस कारण प्रशासनिक अमले ने पूरी ताकत झौंक रखी है। दिन रात एक कर दिया है। पूरा जोर इसी बात पर है मुख्यमंत्री शहर को जैसा देखना चाहती हैं, सब कुछ वैसा ही दिखाई दे। कहीं किसी तरह की कमी नजर न आए। इस तरह की दौड़ धूप अक्सर किसी अधिकारी या बड़े मंत्री के आगमन पर होती रहती है। इस बार ज्यादा इसीलिए है, क्योंकि प्रदेश की मुखिया खुद आ रही हैं, लिहाजा साफ-सफाई व सजावट के तौर तरीकों में भी अंतर साफ देखा जा सकता है। लेकिन यह अस्थायी बदलाव कुछ स्थान विशेष तक ही सीमित है। सारा जोर केवल उन्हीं स्थानों पर है, जहां से मुख्यमंत्री का कारवां गुजरना प्रस्तावित है। जहां-जहां से वो गुजरेंगी, वहां सब कुछ चकाचक किया जा रहा है। इन कामों की गुणवत्ता की दो दिन बाद भले ही खिल्ली उड़े, लेकिन फौरी तौर पर तो यह कारगर ही है, साथ ही काम निकालने का नायाब नुस्खा भी है। 'जंगल में मंगल' करने की इस पूरी कवायद में निर्माण अधिकारियों सहित ठेकेदारों की भी पौ-बारह पच्चीस हो गई है। पानी की तरह सरकारी धन बहाया जा रहा है। अधिकतर निर्माण/मरम्मत कार्य बिना टेंडर जारी किए यानि पेट्टी वर्क के जरिए करवाएं जा रहे हैं, लिहाजा गुणवत्ता की परवाह ना करते हुए निकायों के मुखियाओं ने अपने खासमखास ठेकेदारों को काम बांट दिए हैं। विडम्बना देखिए जिन चौक चौराहों को सजाया गया है, उनको ही बधाई संदेश लगे होर्डिंग्स, बैनर व झंडों आदि से बदरंग कर दिया गया है। बाकी शहर उसी अंदाज में जी रहा है। इन स्थानों पर मुख्यमंत्री के पगफेरे का कोई असर दिखाई नहीं देता। 
बहरहाल, इस तरह की कवायद अगर महीने में एक बार भी हो जाए तो शहर की सूरत बदलते देर नहीं लगेगी। वैसे भी आनन-फानन में तात्कालिक रूप से किया जाने वाला बदलाव व काम स्थायी व दीर्घकाल तक कहां रह पाता है? कितना अच्छा होता यही काम गुणवत्ता के साथ स्थायी होता तो आमजन लाभान्वित तो होता ही, लगे हाथ सरकारी धन का सदुपयोग भी हो जाता। काश, ऐसा हो पाता।
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राजस्थान पत्रिका के श्रीगंगानगर संस्करण के 28 मार्च 18 के अंक में प्रकाशित  

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