Monday, May 30, 2011

मेरा बचपन...१

हो सकता है इस ब्लॉग का शीर्षक पढ़कर आप चौंक जाएं और सोचें भला यह भी कोई विषय है। आप सोचते रहें लेकिन अपने को इस विषय पर लिखना है। लिखना इसलिए भी है कि बचपन की यादें सभी के लिए खास होती हैं। मेरे लिए भी हैं। मैं यहां जिन यादों का जिक्र कर रहा हूं वे सभी स्कूल में प्रवेश लेने से पहले की हैं। मतलब उस समय मैं यही कोई चार-पांच साल का था उस दौरान के यह सभी वाकये हैं। मेरी प्रारंभिक शिक्षा मेरे गांव के ही सरकारी स्कूल में ही हुई है। बचपन की यादों की रूप में वैसे तो मुझे कई घटनाएं याद हैं लेकिन विशेष रूप से मैं उन खास घटनाओं का जिक्र करना उचित समझूंगा जो कि अलग-अलग स्थानों से संबंधित हैं और कुछ अनूठी भी हैं।
शुरुआत ख्वाजा साहब की नगरी अजमेर से करता हूं। पापाजी यहीं पर नौकरी करते थे। परिवार सारा गांव ही रहता था, बस पापाजी माह में एक बार गांव आते थे। एक बार मैं जिद करके पापाजी के साथ अजमेर आ गया। अधिकतर बार तो पापाजी के साथ उनके कार्यालय चला जाता। आखिरकार एक दिन उन्होंने कहा कि तू पड़ोस में स्कूल है उसमें चला जा। पापाजी के कहने पर मैं पड़ोस के स्कूल में चला गया। यह इलाका सुभाष नगर कहलाता है। यहां पास से ही रेलवे लाइन गुजरती है और उसी के पास स्थित था वह सरकारी स्कूल। मैं बिना प्रवेश लिए ही उस स्कूल में जाने लग गया। माहौल अपने अनुकूल देखा तो यह क्रम लगातार हो गया,  हालांकि इस स्कूल में मैं ज्यादा नहीं गया लेकिन जब भी गया उछलकूद और मौजमस्ती ही ज्यादा की। आखिरकार बचपन में अच्छे-बुरे का कहां ख्याल होता है, वह तो निर्दोष होता है। एक दिन पता नहीं मुझे एवं मेरे हमउम्र साथियों को क्या सूझी और हम सब रेलवे लाइन के पास एकत्रित हो गए। वैसे यह काम हम रोज ही करते थे। वहां से गुजरने वाली मालगाड़ियों के गार्ड को हम हाथ हिलाकर टाटा करते थे और प्रत्युत्तर में गार्ड भी हाथ हिला देते थे।  हां, तो मैं कह रहा था कि एक दिन में हम रेलवे लाइन के पास एकत्रित हो गए और सभी ने लाइन के पास पड़े पत्थरों को उठा लिया। इतने में एक मालगाड़ी वहां से गुजरी और हम सब ने उस पर पत्थरों से बौछार कर दी। बच्चों की यह कारस्तानी देखकर आखिरकार मालगाड़ी को आपात परिस्थितियों में रोक दिया गया।  गार्ड अंकल नीचे आए। हम सब लोग वहीं खड़े थे लेकिन काफी सहमे हुए थे। गार्ड ने आते ही हम सब को प्यार से समझाया और भविष्य में कभी ऐसा न करने के लिए कहा। यह बचपन की उसी सीख का कमाल था कि मैंने आज तक कभी कोई गलत काम नहीं किया। मेरा कोई साथी अगर करता भी है तो मैं उसे डांट देता। मैंने यह बार डांटा भी है। यह क्रम आज भी बरकरार है। वास्तव में उस घटना का मेरे जीवन में काफी गहरा असर पड़ा। कहा भी गया है कि बचपन कच्ची मिट्‌टी के समान होता है। उसमें बच्चे को हम जैसी शिक्षा एवं मार्गदर्शन देंगे वह उसी के हिसाब से ढल जाएगा। शायद यह उन अजनबी गार्ड अंकल की सीख का ही कमाल है कि आज तक इस प्रकार की घटना की पुनरावृत्ति नहीं हुई है और ना ही ताउम्र होगी।

3 comments:

  1. mahendra ji mai bhi aapki trh hi tha .........aapki post padhkr bachpn ki yaad aa gi

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  2. kya bat hai banna ji.....am\b main khud ki bat nahi bata sakta hu....

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  3. एक थप्पड़ हमको क्या क्या सीखा देता है |

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