Monday, September 16, 2013

सूर्यनगरी जोधपुर-2

बस यूं ही
 
उस वक्त जोधपुर की खूबियों और खासियतों की बारे में इतनी जानकारी भी नहीं थी। वैसे भी बचपन में इन सब का ध्यान रहता भी कहां है। खैर, समय के साथ जोधपुर के बारे में और जानकारी मिलती गई। गांव के काफी लोग भी काम के सिलसिले में जोधपुर रहते हैं। उनके मुंह से भी सूर्यनगरी की काफी तारीफ सुन चुका था। सेना में रहते हुए पापा भी जोधपुर जा चुके हैं। इतना कुछ सुनने और जानने के बाद जोधपुर के प्रति जेहन में अलग छवि बनना लाजिमी था। जोधपुर का इतिहास, वहां के ऐतिहासिक स्थल, मेहरानगढ़, मंडोर, वायुसेना स्टेशन, पत्थरों की नक्काशी व उम्मेद पैलेस आदि के बारे में जानने के बाद मेरी जोधपुर देखने की जिज्ञासा और भी बढ़ गई। बीच-बीच में जोधपुर से जुड़े समाचार लगातार मिलते रहे। कभी क्रिकेट मैच के आयोजन को लेकर तो कभी फिल्मों की शूटिंग के बारे में। 1998 में जोधपुर उस वक्त अचानक सुर्खियों में आया था जब फिल्म स्टार सलमान खान, सैफ अली खान, तब्बू और नीलम हिरण शिकार के मामले में फंस गए। यह सब चलता रहा लेकिन कभी जोधपुर जाना नहीं हो पाया। आखिरकार 2003 में पहली बार जोधपुर जाने का मौका मिला। आज भी याद है बड़ी बहन के साथ जयपुर से रात को जोधपुर के लिए बस पकड़ी थी। तारीख तो याद नहीं है लेकिन शायद अगस्त या सितम्बर में से कोई महीना रहा होगा। रात भर का सफर करने के बाद अलसभोर हम दोनों बुआजी के घर पहुंचे थे। दोनों को देखकर बुआजी भी विस्मित थी कि आखिर बिना सूचना के सुबह-सुबह ही अचानक यह लोग किस प्रयोजन से आ गए। मैं नित्यक्रम से निवृत्त होता तब तक बुआ-भतीजी दोनों बातों में ही मशगूल हो चुकी थी। इसी बीच हमारे जोधपुर आने का मकसद भी बुआजी जान चुकी थी। उस वक्त मैं श्रीगंगानगर में कार्यरत था, लिहाजा अवकाश मुश्किल से तीन या चार दिन का ही मिला था। अखबार का काम ही ऐसा है, लम्बे अवकाश की तो कल्पना भी नहीं की जा सकती। इसलिए जोधपुर घूमने-फिरने की बात गौण हो चुकी थी, पहली प्राथमिकता तो वह काम ही था, जिसके लिए जोधपुर गए थे। क्रमश: ...

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