Monday, September 16, 2013

आज मैं ऊपर...

बस यूं ही
 
हो सकता है शीर्षक पढ़कर आप चौंक जाएं लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। दरअसल आज मेरी एक बहुप्रतीक्षित मुराद पूरी हो गई। बस उसी खुशी में यह गीत गुनगुना रहा था, अच्छा लगा तो शीर्षक दे दिया। खुशी इस बात की, कि कॉलेज लाइफ से दूर होने के करीब १६ साल बाद एक और डिग्री हासिल करने का मार्ग प्रशस्त हुआ है। परिणाम भी मंगलवार को ही जारी हुआ है। परिणाम जानने की बेताबी का आलम ऐसा था कि पिछले दो माह से राजस्थान विश्वविद्यालय की वेबसाइट को कोई सौ बार से ज्यादा देख चुका हूं। कई बार ऐसा भी हुआ कि साइट खुल ही नहीं पाई। कई बार खुली तो रिजल्ट का विवरण नहीं देख पाया। आज भी शाम चार बजे के करीब बड़ी उम्मीद के साथ वेबसाइट खोली थी। रिजल्ट पर जैसे ही क्लिक किया तो खुशी से उछल पड़ा। उस पर एमजेएमसी फाइनल का परिणाम शो हो रहा था। धड़कन तेज हो गई थी। परिणाम की साइट खुली तो रोल नम्बर मांगे गए। नम्बर भूल चुका था। प्रवेश पत्र भी घर पर रखा हुआ था। परीक्षा भी तो अप्रेल में हो चुकी थी, इतना लम्बे समय तक रोल नम्बर भला याद कैसे रख पाता। घर पर श्रीमती को फोन करने ही वाला था कि अचानक दूसरे विकल्प पर पड़ी। उसमें नाम लिखने को कहा गया था। जैसे ही नाम लिखकर की बोर्ड पर इंटर मारा। मार्कशीट खुल गई थी। परिणाम उम्मीद से बेहतर आया। परीक्षा देते समय जितने अंक का अनुमान लगाया था उससे कहीं ज्यादा अंक देखकर खुशी दोगुनी हो गई। मेरा प्रयास था कि किसी तरह 55 प्रतिशत अंक बन जाए ताकि आगे कोई और डिग्री लेने में दिक्कत ना हो। पूर्वाद्ध और उतराद्र्ध दोनों के अंक जोडऩे के लिए श्रीमती की मदद लेनी पड़ी। उसने फोन पर मार्कशीट देखकर नम्बर बताए तो प्रतिशत 59.44 के करीब आए। डिग्री हासिल करने की खुशी इसलिए ज्यादा है क्योंकि इसको मैंने चार साल की मेहनत के बाद हासिल किया है। वैसे तो यह दो साल में ही मिल जाती है। मैं यहां बात मास्टर इन जर्नलिज्म एंड मास कम्प्युनिकेशन (एमजेएमसी) की कर रहा हूं। इस डिग्री को हासिल करने की कहानी बड़ी ही दिलचस्प व रोचक है, इसलिए तो सभी के साथ साझाा कर रहा हूं। एमजेएमसी पूर्वाद्ध तो मैंने 2010में ही उत्तीर्ण कर ली थी। इसके बाद 2011 में जैसे ही एमजेएमसी उतराद्र्ध का परीक्षा टाइम टेबल घोषित हुआ मेरा तबादला झुंझुनू से छत्तीसगढ़ हो गया। छत्तीसगढ़ में ज्वाइनिंग 13 अप्रेल तक देनी थी। इसी चक्कर में मैं पहला एवं दूसरा पेपर नहीं दे पाया। बाद में बॉस से आग्रह किया तो शेष दो पेपरों की अनुमति मिल गई। जल्दबाजी में किसी तरह मैंने दो पेपरों की परीक्षा दे दी। स्थानांतरण के वक्त मैं केवल उतराद्र्ध का प्रेक्टिकल का पेपर ही दे पाया था, और दो पेपर लिखित के दिए। परिणाम तो जैसा पता था वैसा ही आया। खुशी इस बात की थी कि पे्रक्टिकल सहित बाकी दोनों विषयों में 60 प्रतिशत से ज्यादा अंक आए थे। लेकिन प्रथम एवं द्वितीय विषय के आगे डबल ए यानी अनुपस्थित (अबसेंट) लिखा गया था।
इसके बाद मैंने दोनों विषयों की परीक्षा अगले साल देने का निर्णय किया। परीक्षा फार्म व फीस आदि की औपचारिकता बीच में अवकाश लेकर पूरी कर गया था। परीक्षा तिथि घोषित हुई तो उसी के हिसाब से मैंने रेल टिकट का आरक्षित करवा लिए थे। दोनों पेपरों में सात दिन का गेप था लेकिन इतना लम्बा अवकाश एक साथ स्वीकृत नहीं हुआ, लिहाजा दो बार बिलासपुर से जयपुर आने एवं जाने का आरक्षण करवाया गया।
मैं परीक्षा देने के लिए जिस दिन रवाना होने वाला था कि ठीक उसी रात्रि को अचानक श्रीमती का फोन आया कि उसके पेट में तेज दर्द है। उस वक्त में कार्यालय में ही था। जैसा कि अक्सर करता आया हूं मैं खुद घर नहीं गया और एक स्टाफर के हाथों दवा घर भिजवा दी। दवा देने के बाद भी श्रीमती को आराम नहीं मिला और उसने फिर फोन लगाया और घर जल्दी आने का आग्रह किया। उसके आग्रह को अनसुना करते हुए काम पूर्ण होने के बाद रात करीब डेढ़ बजे मैं घर पहुंचा तो उसकी हालत देखकर दंग रह गया। मेरे होश फाख्ता हो गए। मुझो खुद पर गुस्सा आ रहा था कि क्यों मैं फोन पर उसके दर्द को इतने हल्के में लेता रहा। वह दर्द के मारे बुरी तरह से छटपटा रही थी। पेट पकड़े हुए वह बार-बार करवट बदल रही थी लेकिन ऐसा करने से भी उसे राहत नहीं मिल रही थी। अंतत: रात ढाई बजे हिम्मत करके मैंने पड़ोसी डाक्टर को उठाया। उन्होंने दर्द निवारक इंजेक्शन लगा दिया, बोले इससे आराम मिल जाएगा और नींद भी आ जाएगी। इंजेक्शन लगाने के बाद बामुश्किल आधा घंटा ही बीता होगा श्रीमती फिर उसी तरह से करने लगी। रात के तीन बज चुके थे। समझा में नहीं आ रहा था कि क्या करूं। आखिरकार एक स्टाफ सदस्य को फोन लगाया और अलसुबह करीब चार बजे के करीब श्रीमती को अस्पताल में भर्ती करा दिया गया।
मैं घर पर बच्चों के साथ था। बच्चों की भी उस वक्त परीक्षा चल रही थी। मैंने सुबह उठकर उनको नहलाया। नाश्ते के लिए फल रखे थे वो ही टिफिन में डाल दिए। तब तक नीचे बच्चों का रिक्शा आ चुका था। उनको स्कूल के लिए रवाना करने के बाद में मैं अस्पताल पहुंचा। वहां देखा तो श्रीमती के ग्लूकोज चढ़ रहा था। चिकित्सकों ने अपेन्डिस की आशंका जताते हुए सोनाग्राफी करवाने की सलाह दे दी थी। आशंका सही निकली। स्टाफ सदस्यों की सलाह पर श्रीमती को उस अस्पताल से अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया। वह वहां पर तीन दिन तक भर्ती रही है। मैं तो दो पाटों के बीच फंसा था। एक तरफ घर पर बच्चे तो दूसरी तरफ श्रीमती। इस आपाधापी के बीच मैं परीक्षा कहां व कैसे दे पाता। रेल टिकट भी जैसे-तैसे रद़्द करवाए। इस तरह यह एक और साल भी यूं ही चला गया।
आखिरकार इस शैक्षणिक सत्र में तीसरी बार फिर फार्म भरकर परीक्षा के लिए आवेदन किया। अवकाश न मिलने के कारण फार्म भरने का काम परिचित के माध्यम से ऑनलाइन ही करवाया। फीस के पैसे भी उन्होंने ही दिए। फिर किसी प्रकार का व्यवधान ना हो, भगवान से इसी स्मरण के साथ मैं परीक्षा का इंतजार करने लगा। आखिरकार अप्रेल में परीक्षा की तिथि घोषित हुई। किसी तरह अवकाश मंजूर करवाकर नियत तिथि को परीक्षा देने पहुंचा। उसी वक्त परिचित के द्वारा दिए गए वो फीस के पैसे भी चुकाए। इसके बाद भिलाई लौट आया। परीक्षा की तैयारी कैसी थी, अब यह मत पूछना लेना। केवल टे्रन में जो वक्त मिला उसी दौरान कुछ नोट्स को पढ़ पाया। बाकी सब भगवान भरोसे था। पहला पेपर देने के बाद फिर बीमार पड़ गया, लेकिन गनीमत यह थी कि दोनों पेपरों के बीच सात दिन का गेप था और इस बार अवकाश भी आठ दिन का लिया था। इस प्रकार परीक्षा पूर्ण हुई। अब परिणाम के इंतजार में चार माह से अधिक का समय कैसे बीता मैं ही जानता हूं। बहरहाल, आज परिणाम आ गया है और खुशी का कोई ठिकाना नहीं है। फिलहाल ऑफिस में हूं लेकिन अपनी भावनाएं व्यक्त करने से खुद को रोक नहीं पाया। आखिर चार साल बाद एमजेएमसी उत्तीर्ण जो की है। तभी तो गा रहा हूं आज मैं ऊपर...

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